3 इडियट्स का रियल लाइफ 'फुंसुख वांगड़ू' ला रहा है लद्दाख में बड़े-बड़े बदलाव
असल ज़िन्दगी के सोनम वांगचुक, फिल्मी पर्दे के 'फुंगसुक वांगड़ू' से बड़े हीरो हैं...
पिछले 20 सालों से एक व्यक्ति दूसरों के लिए पूरी तरह समर्पित होकर का काम कर रहा है। वास्तव में असल ज़िन्दगी के सोनम वांगचुक, फिल्मी पर्दे के 'फुंगसुक वांगड़ू' से बड़े हीरो हैं। वागंचुक को लद्दाख में बर्फ स्तूप कृत्रिम ग्लेशियर परियोजना के लिए लॉस एंजिलिस में पुरस्कृत भी किया जा चुका है। आईये डालते हैं एक नज़र डालते हैं उनकी कहानी पर...
सोनम वांगचुक पिछले 20 सालों से दूसरों के लिए पूरे समर्पण के साथ काम कर रहे हैं।
वांगचुक ने 1988 में लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तान में शिक्षा की सुधार का जिम्मा उठाया और स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख की स्थापना की। वांगचुक का दावा है कि सेकमॉल अपने तरह का इकलौता स्कूल है, जहां सबकुछ अलग तरीके से किया जाता है। वह आधुनिक शिक्षा का मॉडल रखने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और काफी हद तक इसमें सफल भी हुए हैं।
3 इडियट्स फिल्म के फुंसुख वांगड़ू का किरदार लद्दाख के रहने वाले इंजिनियर सोनम वांगचुक से प्रेरित था। वांगचुक उन प्रतिभावान बच्चों के सपनों को पूरा करने का काम कर रहे हैं, जिन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल पाता। उन्होंने इसके लिए एजुकेशनल ऐंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख नाम का संगठन बनाया है। पिछले 20 सालों से वो दूसरों के लिए पूरी तरह समर्पित होकर काम कर रहे हैं। वास्तव में असल ज़िन्दगी के सोनम वांगचुक, फिल्मी पर्दे के 'फुंगसुक वांगड़ू' से बड़े हीरो हैं। वागंचुक को लद्दाख में बर्फ स्तूप कृत्रिम ग्लेशियर परियोजना के लिए लॉस एंजिलिस में पुरस्कृत भी किया गया है। यह कृत्रिम ग्लेशियर 100 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। इसे अनावश्यक पानी को इकटट्ठा करके बनाया गया है।
वांगचुक का सबसे अलहदा स्कूल
बचपन में वांगचुक सात साल तक अपनी मां के साथ एक रिमोट लद्दाखी गांव मेें रहे। यहां उन्होंने कई स्थानीय भाषाएं भी सींखीं। बाद में जब उन्होंने लद्दाख में शिक्षा के लिए काम करना शुरू किया, तो उन्हें अहसास हुआ कि बच्चों को सवालों के जवाब पता होते हैं लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी भाषा की वजह से होती है।
वांगचुक ने 1988 में लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तान में शिक्षा की सुधार का जिम्मा उठाया और स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख की स्थापना की। वांगचुक का दावा है कि सेकमॉल अपने तरह का इकलौता स्कूल है, जहां सबकुछ अलग तरीके से किया जाता है। वह आधुनिक शिक्षा का मॉडल रखने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और काफी हद तक इसमें सफल भी हुए हैं। वह आधुनिक शिक्षा का मॉडल रखने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और काफी हद तक इसमें सफल भी हुए हैं।
वांगचुक एक ऐसे वैकल्पिक विश्वविद्यालय की स्थापना की योजना बना रहे हैं, जो शिक्षा में सुधार के उनके बीड़े को आगे बढ़ाएगा।
वांगचुक चाहते हैं कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में बदलाव हो, किताबों से ज्यादा स्टूडेंट्स को प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए। वांगचुक के मुताबिक, 'देश की शिक्षा प्रणाली सड़ चुकी है। स्कूल और कॉलेजों में सिर्फ नंबर पर फोकस किया जाता है और उन्हीं नंबरों के आधार पर छात्र को पास या फेल किया जाता है। ये क्या है? आप इनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। कॉलेज से निकलने के बाद इनके पास रोजगार नहीं होता तो दूसरी तरफ उद्यमों के पास योग्य कर्मचारियों की कमी रहती है।'
वांगचुक अब अपनी इस समृद्ध सोच को आगे बढ़ाते हुए एक ऐसे वैकल्पिक विश्वविद्यालय की स्थापना की योजना बना रहे हैं, जो शिक्षा में सुधार के उनके बीड़े को आगे बढ़ाएगा। यह वैकल्पिक विश्वविद्यालय सभी तरह के छात्रों के लिए खुला होगा जहां छात्र रट्टू तोता बनने की जगह प्रैक्टिकल तौर पर सीखेंगे।
बर्फीली और रेतीली जगहों पर पानी की सप्लाई का अनोखा मॉडल
वांगचुक ने बहुत से पानी को जमा करके उन्हें लैंडस्केप की शेप दे दी जिसकी वजह से इस पानी का इस्तेमाल खेती के लिए अप्रैल और मई के महीनों में किया जा सकता था। अपने लद्दाखी साथी चेवांग नोर्फेल के काम से प्रेरणा लेते हुए वांगचुक ने आइस स्तूपा बनाए। इससे मौसम में गर्मी बढ़ने के साथ ही धीरे-धीरे ये ग्लेशियर पिघलते हैं। जिसकी मदद से आसानी से खेती हो सकती है।
उनके इस अनोखे काम के लिए रॉलेक्स अवॉर्ड भी मिल चुका है।
पुरस्कार में मिली राशि से वांगचुक अब ऐसे 30 मीटर बड़े 20 आईस स्तूप बनाना चाहते हैं, जिसकी मदद से लाखों मिलियन पानी सप्लाई किया जाएगा। भविष्य में एक ऐसी यूनिवर्सिटी बनाई जाएगी जो युवाओं को वातावरण के साथ इंगेज करेगी।
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