रेस्त्रां में बेयरा अॉर्डर के तुरंत बाद क्यों उठा लेते हैं मेन्यू कार्ड?
विकल्पों का इंसान की ज़िंदगी में विशेष महत्व है, लेकिन विकल्प जब ज़रूरत से ज्यादा हो जाते हैं तो परेशानी की वजह भी बन सकते हैं, आप भी जानें कैसे! क्योंकि इस बात को समझने का इससे बेहतर कोई और तरीका हो नहीं सकता...
"विकल्प का द्वार दुविधा की मंजिल है। दुविधा में रहने वाले न खुद खुश रहते हैं, न सामने वाले को खुश रहने देते हैं।"
क्या आपने कभी सोचा है कि किसी रेस्त्रां में जब आप खाने जाते हैं तो बेयरा आपके ऑर्डर के तुरंत बाद मेन्यू कार्ड उठा कर क्यों ले जाता है? क्या आपने किसी बेयरा से कभी ये सवाल पूछा है? आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा ऐसी अजीब-अजीब बातें क्यों करते हैं? आप ये भी सोच सकते हैं कि उनके मन में ऐसे अजीब से सवाल उठते ही क्यों है? ऑर्डर दे दिया, अब मेन्यू कार्ड का क्या काम?
मेरे मन में ये सवाल कई बार उठा। मैंने कई बार बेयरा से पूछा भी। सबने यही कहा कि उन्हें नहीं पता, पर ऐसी ट्रेनिंग उन्हें मिली है कि ऑर्डर के बाद मेन्यू कार्ड उठा लेना है। कुछ ने ये भी कहा कि मेन्यू कार्ड अगर टेबल पर रहेगा तो उस पर खाना गिर सकता है। वो गंदा हो जाएगा। मेरा मन इस तर्क को स्वीकार नहीं करता था। अगर ठीक से सोचा जाए तो मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल चुका था। मुझे भी बाकी लोगों की तरह शांत हो जाना चाहिए था। पर ऐसा नहीं हुआ और मुझे जब मौका मिला, मैंने इस सवाल का जवाब फिर से पूछा।
पिछले दिनों मैं अहमदाबाद गया था। वहां किसी ने मुझसे कहा कि संजय जी ‘दाना-पानी’ में खाना खाने जाइएगा। वहां का खाना अच्छा है। मैं अहमदाबाद कई बार गया हूं। वहां के कई थीम ढाबा में मैंने खाना खाया है। गुजराती थाली मुझे बहुत पसंद है। पर उस दिन शाम को मैं 'दाना-पानी' रेस्त्रां चला गया। बहुत पुराना रेस्त्रां है। ढाबानुमा। खाना भी सस्ता।
दिवाली के बाद पूरे गुजरात में एक हफ्ते की छुट्टी होती है। पूरा शहर शांत हो जाता है। लोग अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाने बाहर चले जाते हैं। दुकानें बंद रहती हैं। बताने वाले ने मुझे बताया था कि उस रेस्त्रां में काफी भीड़ रहती है। पर मैं दिवाली के तुरंत बाद वहां गया था, इसलिए मुझे भीड़ नहीं मिली। मैंने बेयरा को बुलाया, उससे पूछा कि यहां की कौन सी चीज़ मशहूर है। जो मशहूर है, वही मेरे लिए ले आओ।
बेयरा ने कई नाम मुझे बताए कि हमारे यहां ये बहुत अच्छा है, ये बहुत स्वादिष्ट है और फिर मैंने उसी की मर्ज़ी से एक-दो ऑर्डर दिए। मेरे ऑर्डर देने के तुरंत बाद ही वो मेन्यू कार्ड उठाने लगा तो मैंने उसे रोका। इसे अभी रहने दो। मैं इसे पढ़ूंगा। और क्या-क्या है, ये देखूंगा। बेयरा ने कहा कि सर, आप अभी का ऑर्डर दे दीजिए, फिर जब आप कहेंगे तो मैं दुबारा मेन्यू कार्ड आपको दे दूंगा। मेरे मन में वही सवाल फिर खड़ा हो गया। "आप लोग मेन्यू कार्ड वापस क्यों ले जाते हैं? इसे यहीं रहने दीजिए। क्या पता मैं कुछ और ऑर्डर कर दूं।" बेयरा ने कहा यही तो मुश्किल है सर। हम इसीलिए मेन्यू कार्ड ले जाते हैं ताकि आप एक ऑर्डर को कैंसिल करके दुबारा कुछ और ऑर्डर न कर दें।
मैं चौंका! “एक मिनट रुको। ये तुमने क्या क्या कहा?” वो चुपचाप खड़ा हो गया। “तुम कह रहे थे कि कहीं हम अॉर्डर बदल न दें, इसलिए मेन्यू कार्ड ले जा रहे हो? ये क्या बात हुई?” हमारी बातचीत चल ही रही थी कि रेस्त्रां के मैनेजर मेरे सामने आकर खड़े हो गए। “क्या हुआ सर? कोई बात हो गई क्या?”
"कुछ नहीं। मैंने खाने का ऑर्डर दिया है। ये मेनू कार्ड ले जा रहा था। मैने रोका तो इसने बताया कि कहीं मेरा मन बदल न जाए, इसलिए मेनू कार्ड हटा रहा है।"
मैनेजर ने बेयरा को जाने का इशारा किया और मेरे सामने खड़ा हो गया। “ये ठीक कह रहा है सर।” “पर मैं कुछ और ऑर्डर करना चाहूं तो?” “आप कर सकते हैं सर।” “फिर मेन्यू कार्ड ले जाने का क्या मतलब?”
“सर, लोग यहां खाने आते हैं। एक बार में खूब सोच कर ऑर्डर करते हैं। हम खाना तैयार करते हैं। कई बार ऐसा होता है कि ऑर्डर देने के बाद ग्राहक का मन बदल जाता है। उसके सामने मेन्यू कार्ड हो तो उसका मन बदलने की गुंजाइश अधिक होती है। अब जब खाना तैयार हो गया, आपने यहां बैठे-बैठे मन बदल लिया और हमसे कह दिया कि वो नहीं, मुझे ये चाहिए तो हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचता सिवाय आपके पुराने ऑर्डर को कैंसिल करके नया ऑर्डर परोसने के। पर इस चक्कर में हमारा पिछला ऑर्डर बेकार हो जाता है। सर, इसीलिए हम चाहते हैं कि आपको जितना सोचना हो, पहले सोच लीजिए। एक बार ऑर्डर होने के बाद आपके पास विकल्प न बचे, इसलिए हम मेन्यू हटा लेते हैं।”
“मुझे तो किसी ने बताया था कि कहीं गंदा न हो जाए इसलिए हटा लेते हैं।” “नहीं सर। ये इतना महंगा नहीं है कि गंदा होने से हम पर फर्क पड़े। वैसे भी ये लैमिनेटेड है। इसमें कुछ खराब होने को नहीं है। बात यही है कि खाने की मेज पर विकल्प नहीं छोड़ना चाहते हम। आपने एक बार जो तय कर लिया, उसे स्वीकार करें, हम ये चाहते हैं।” “इसका मतलब, सभी रेस्त्रां वाले इसीलिए टेबल से मेनू हटा लेते हैं ताकि विकल्प न रहे?”
“हां सर। यही वजह है। आदमी को कोई भी फैसला बहुत सोच कर लेना चाहिए। कई बार उससे पीछे हटने की गुंजाइश नहीं बचती। हम यही चाहते हैं कि जो भी ग्राहक हमारे पास आए, खूब सोच कर ऑर्डर करे। एक बार जब आपकी डिश तैयार हो गई तो फिर हमारे पास गुंजाइश नहीं बचती। हम कुछ भी रेडीमेड नहीं रखते, आपके ऑर्डर के बाद तैयार करते हैं। पर आपके पास मेन्यू रुपी विकल्प छोड़ दें तो आप कह सकते हैं कि ये नहीं, ये ले आओ। फिर हमें मुश्किल होती है।”
संजय सिन्हा ने मैनेजर को धन्यवाद कहा और खाने के बाद जब रेस्त्रां से निकले तो मन एकदम शांत था। ज़िंदगी में बहुत विकल्प नहीं होने चाहिए। जो भी तय कीजिए, सोच कर कीजिए। विकल्प का द्वार दुविधा की मंजिल है। दुविधा में रहने वाले न खुद खुश रहते हैं, न सामने वाले को खुश रहने देते हैं।
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