ऊर्जा क्षेत्र में भारत का क्रांतिकारी कदम, बेंगलुरु में विकसित होगा अनोखा वर्कशॉप
बेंगलुरु में विकसित होगा ऊर्जा खपत को कम करने वाला अनोखा सेमीकंडक्टर
बेंगलुरु में स्थित देश के सबसे बड़े साइंस कॉलेज 'इंडियन इंस्ट्यूट ऑफ साइंस' को सरकार की ओर से अनोखे नैनो मटीरियल गैलियम नाइट्राइड का उत्पादन करने के लिए 3,000 करोड़ रुपये मिलने वाले हैं। सरकार की तरफ से मिलने वाले पैसों से एक फाउंड्री (वर्कशॉप) बनाई जाएगी जहां पर गैलियम नाइट्राइड का उत्पादन होगा। यह वर्कशॉप उसी जगह स्थापित होगी जहां पहले से इसपर काम चल रहा है। इसकी देखभाल एसोसिएट प्रोफेसर श्रीराम के निर्देशन में होगी।
इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि इसके उत्पादन से 2020 तक 700 मिलियन डॉलर तक का रेवेन्यू हासिल होगा। अभी लगभग 300 मिलियन का रेवेन्यू अर्जित हो रहा है।
बेंगलुरु में स्थित देश के सबसे बड़े साइंस कॉलेज 'इंडियन इंस्ट्यूट ऑफ साइंस' को सरकार की ओर से अनोखे नैनो मटीरियल गैलियम नाइट्राइड का उत्पादन करने के लिए 3,000 करोड़ रुपये मिलने वाले हैं। इस मटीरियल को आने वाले समय का सबसे किफायती सेमी कंडक्टर माना जा रहा है। इसका इस्तेमाल रेडार और कम्यूनिकेशन सिस्टम में किया जा रहा है। सरकार की तरफ से मिलने वाले पैसों से एक फाउंड्री (वर्कशॉप) बनाई जाएगी, जहां पर गैलियम नाइट्राइड का उत्पादन होगा।
यह वर्कशॉप उसी जगह स्थापित होगी जहां पहले से इसपर काम चल रहा है। इसकी देखभाल एसोसिएट प्रोफेसर श्रीराम के निर्देशन में होगी। प्रोफेसर एस ए शिवशंकर के मुताबिक यह प्रस्ताव सरकार की प्राथमिकता में है। इसमें लगभग 3,000 करोड़ की लागत आएगी। इसे स्ट्रैटिजिक सेक्टर में इन्वेस्टमेंट के तौर पर देखा जा रहा है। नैनो मटीरियल गैलियम नाइट्राइड सिलिका आधारित बनने वाले सेमीकंडक्टर्स का अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं।
मिलेगा बड़ा रेवेन्यू
इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि इसके उत्पादन से 2020 तक 700 मिलियन डॉलर तक का रेवेन्यू हासिल होगा। अभी लगभग 300 मिलियन का रेवेन्यू अर्जित हो रहा है। 2014 में ब्लू लाइट डायोड के क्षेत्र में काम करने पर फिजिक्स का नोबल पाने वाले जापानी वैज्ञानिक इसामू अकासाकी, हिरोशी अमानो और शूजू नाकामूरा से प्रभानित होकर भारत में इसकी नींव रखी गई थी। यह तकनीक स्टोरेज सिस्टम में भी काम आ सकती है।
कम्यूनिकेशन सिस्टम होगा विकसित?
DRDO के डायरेक्टर आरके शर्मा बताते हैं कि गैलियम नाइट्राइड टेक्नॉलजी से काफी हद तक अगली पीढ़ी के रेडार और संचार प्रणालियों के विकास में मदद मिलेगी और हल्के लड़ाकू विमान की तरह प्रणालियों में उपयोगी साबित हो सकता है। शर्मा मे कहा, 'हमें किफायती ऊर्जा उभगोग सिस्टम विकसित करने के लिए स्ट्रेटिडिक प्रणाली की जरूरत थी, गैलियम नाइट्राइड से बने कंडक्टर उसी का जवाब हैं।' DRDO के निदेशक ने बताया कि चीन जैसे देश इस क्षेत्र में काफी निवेश कर रहे हैं और भारत को भी ऐसा करने की जरूरत है।
क्या होते हैं सेमीकंडक्टर्स?
सभी इलेक्ट्रानिक प्रॉडक्ट्स में एक चिप लगी होती है। इसका निर्माण सेमीकंडक्टर यूनिट में होता है। किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन में लगने वाले मूल्य में इसकी हिस्सेदारी करीब 25 प्रतिशत होती है। भारत इस समय ये पूरी तरह आयात करता है। यानी भारत को अभी काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं और सिलिका से बने सेमीकंडक्टर तो और कम किफायती होते हैं इसलिए गैलियम नाइट्राइड से बने सेमीकंडक्टर्स का विकल्प विकसित किया जा रहा है।