रासायनिक उत्पादों से खुद को बचाएं, ‘रस्टिक आर्ट’ को अपनाएं...
महाराष्ट्र के सतारा में रहने वाली मौसी और भांजी की जोड़ी पांडिचेरी के गांव की महिलाओं से तैयार करवा रही हैं जैविक साबुनसबसे पहले वर्ष 2011 में इन्होंने पुराने उत्पादों की सहायता से घैर पर साबुन बनाना शुरू किया थाफिलहाल बैंगलोर के अलावा पंजाब, दिल्ली, गोवा और पश्चिम बंगाल से मिल रहा है अच्छा व्यापारउपभोक्ताओं को बड़े ब्रांडों की खतरनाक रासायनों से बनी सामग्रियों से बचाकर जैविक उत्पादों के लिये जागरुक करने का है मकसद
वर्ष 2012 में भारत के एफएमजीसी बाजार का कुल व्यापार करीब 36.8 बिलियन अमरीकी डाॅलर था और वर्ष 2015 के अंत तक इसके 47.3 बिलियन अमरीकी डाॅलर को पार करने का अनुमान लगाया जा रहा है। इस विस्तृत बाजार का 32 प्रतिशत हिस्सा मुख्यतः व्यक्तिगत देखरेख (22 प्रतिशत), बालों की देखभाल (8 प्रतिशत) और बच्चों की देखभाल (2 प्रतिशत) के खाते में जाता है। बीते दीन दशकों से भी अधिक समय से हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड अपने सबसे लोकप्रिय उत्पाद ‘फेयर एंड लवली’ के माध्यम से व्यक्तिगत देखभाल के बाजार पर कब्जा करे बैठा है। गोदरेज, डाबर, इमामी और पीएण्डजी जैसी कंपनियां भी अधिक पीछे नहीं हैं। इन सब आंकड़ों से साफ है कि भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में बेहद खतरनाक रसायनों के प्रयोग से बने व्यक्तिगत देखभाल के उत्पादों का बोलबाला है और विकल्पों के अभाव में इन क्षेत्रों के निवासी इन उतपादों को प्रयोग करने के लिये मजबूर हैं।
समूचे बाजार पर ऐसी बड़ी कंपनियों का कब्जा है जो ऐसे उत्पादों का निर्माण करती हैं जो पर्यावरण की दृष्टि पर खरे नहीं उतरते और ऐसे में हस्तनिर्मित प्रसाधन सामग्रियों (टाॅयलेटरीज़) के निर्माताओं के लिये खुद को बनाए रखना और विस्तारित करना एक बड़ी चुनौती है। लेकिन वर्तमान में बेहतर, सुरक्षित और स्वस्थ उत्पादों की बढ़ती हुई मांग के चलते जैविक प्रसाधन सामग्रियों की एक नई फसल ने बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। ऐसी ही एक कंपनी है ‘रस्टिक आर्ट’।
वर्ष 2011 के प्रारंभ में महाराष्ट्र के सतारा इलाके में रिश्ते में मौसी और भांजी की जोड़ी स्वाति माहेश्वरी और सुनीता जाजू ने खुरचन से साबुन बनाना शुरू किया। स्वाति कहती हैं, ‘‘अपने घर पर हम लोग शुरू से ही लगभग हर चीज के प्राकृतिक विकल्पों के इस्तेमाल करने का प्रयास करते आए हैं।’’ ऐसे समय में जब पूरा देश रिन, सर्फ और एरियल का प्रयोग कर रहा है सुनीता और उनका परिवार अभी भी नारियल के तेल से बनी एक प्राकृतिक साबुन का इस्तेमाल करते हैं।
स्वाति कहती हैं, ‘‘लोगों के पास पुरानी चीजों को दोबारा इस्तेमाल लायक बनाने का समय ही नहीं है। लोगों को इस्तेमाल के लिये तैयार किसी भी उत्पाद की तलाश रहती है और व्यक्तिगत देखभाल एक ऐसा कार्य है जिसे प्रतिदिन करने की आवश्यकता होती है। इसी वजह से हमने ‘रस्टिक आर्ट’ की नींव रखी।’’ हालांकि इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती इस प्रकार के उत्पादों के प्रति जागरुकता की कमी थी। ‘‘लोगों को लगता था कि जैविक उत्पाद काफी महंगे होते हैं और इसी के चलते वे इनके उपयोग के लिये खुद को मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पाते हैं। और अगर ऐसा नहीं भी होता है तो उन्हें इसमें कोई घोटाला लगता है।’’ ‘रस्टिक आर्ट’ का सबसे लोकप्रिय उत्पाद इनके द्वारा तैयार किया गया एलोवेरा जेल है। अक्सर कुछ छोटे-मोटे निर्माता थोक में एलोवेरा खरीदने के लिये ‘रस्टिक आर्ट’ से संपर्क करते हैं। वे कहती हैं, ‘‘कई बार मेरे पास मात्र 20 किलो ऐलोवेरा खरीदने वालों के फोन आते हैं। जब मैं उनसे पूछती हूँ कि वे इतने कम एलोवेरा का क्या करेंगे तो उनका जवाब होता है, ‘अरे! हमें अपने उत्पाद को एलोवेरा साबित करने के लिये कुद एलोवेरा जेल मिलाने की आवश्यकता है।’’
‘रस्टिक आर्ट’ के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती उपभोक्ताओं की आदतों को लेकर है। बड़ी कंपनियां बड़े पैमाने पर उत्पादों का उत्पादन कर अपने उपभोक्ताओं को बड़ी मात्रा में उतपाद खरीदने के लिये प्रेरित करती हैं। ऐसे में आम उपभोक्ता प्रतिमाह अपने घरेलू उपयोग के लिये प्रसाधन सामग्रियों को इकट्ठा कर लेता है। लेकिन हस्तनिर्मित उत्पाद इस मामले में काफी अलग होते हैं। वे कम झाग देने वाले होते हैं और छोटी जीवनावधि होने के चलते इन्हें कम समय के लिये इकट्ठा करके रखा जा सकता हैलेकिन स्वाति कहती हैं, ‘‘फिर भी ये एक महीने से भी अधिक समय तक चलते हैं क्योंकि आपको नके बहुत कम उपयोग की आवश्यकता होती है। और इस प्रकार से अंत में ये काफी किफायती साबित होते हैं।’’
‘रस्टिक आर्ट’ के पर्यावरण के प्रति सजग उपभोक्ता स्वाति और सुनीता को लगातार अपने उत्पादों के लिये ‘रीफिल’ का विकल्प लाने के अनुरोध करते। हालांकि स्वाति कहती हैं कि पैकेजिंग के लिये लिये ये जिस प्लास्टिक का इस्तेमाल करती हैं वह पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है। लेकिन फिर भी उनके उपभोक्ता कहते हें कि अगर बोतल बिल्कुल ठीक है तो क्यों न कचरे को अधिक बढ़ाने के बजाय उसे दोबारा भरकर प्रयोग में लाया जाए।
स्वाति का मानना है कि अगर लोगों को लगता है कि उन्हें आवश्यकता से अधिक उत्पादों का प्रयोग करना चाहिये तो वे बेशक करें लेकिन कम से कम उन्हें यह तो मालूम हो कि जिस उत्पाद को वे इस्तेमाल कर रहे हैं वह वास्तव में है क्या। वे कहती हैं, ‘‘यह बेहद विचित्र है कि हमारे पास नवजात शिशुओं के लिये इतने सारे उत्पाद हैं। आप अपने नवजात के लिये कम से कम इतना कर सकते हैं कि आपको यह लेबल पर दर्शाई गई सामग्री के बारे मे पता हो।’’
बीते चार वर्षों में ‘रस्टिक आर्ट’ को बैंगलोर में सबसे अधिक व्यापार मिला है। इसके अलावा उन्हें पंजाब, दिल्ली, गोवा और पश्चिम बंगाल में भी उपभोक्ताओं से अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। इसके बावजूद पांडिचेरी के एक गुमनाम से गांव की महिलाओं द्वारा हाथ से निर्मित किये जाने वाले एक उत्पाद पर निर्भर व्यवसाय जो बिना किसी मशीनरी के तमिलनाडु और केरला के जैविक खेती के लिये प्रमाणिक फार्मों से आई सामग्री पर निर्भर है के लिये विस्तार के बारे में सोचना एक बहुत बड़ी चुनौती है। ‘‘हमारा मासिक राजस्व करीब 6 से 7 लाख रुपये का है। हमारी अपनी कैसी भी दुकानें नहीं हैं। हम सिर्फ खुदरा विक्रेताओं और आॅनलाइन माध्यामों से अपने उत्पाद बेचते हैं।’’ उनका दावा है कि यह एक स्थायी व्यवसाय है लेकिन कई बार यही इनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी बन जाती है। वे आगे कहती हैं, ‘‘हम चाहकर भी एक बड़ा ब्रांड नहीं बन सकते हैं। हमारी पहुंच बिल्कुल जमीनी स्तर पर है। हमारे लिये बड़ा बनने का सिर्फ एक ही रास्ता है और वह है अधिक विनिर्माण इकाइयों को सफलतापूर्वक स्थापित करना।’’
स्वाति का मानना है कि देश के जैविक व्यक्तिगत देखरेख के बाजार के लिये कड़े नियम समय की सबसे बड़ी आवश्यकता हैं। यह बड़े ब्रांडों को अपने उत्पादों को विश्वसनीय बनाने में मदद करेगा और इसके चलते बाजार से नकली उत्पाद बनाने वाले खत्म होंगे। अन्यथा एक उपभोक्ता को यह विश्वास दिलवाना कि जो उत्पाद वह खरीद रहा हैं वह पूरी तरह स्थायी और जैविक है काफी मुश्किल है। उनके अनुसार अगला कदम उपभोक्ताओं के भीतर जागरुकता का भाव जगाना है। वे कहती हैं, ‘‘बड़े ब्रांडों को बेहद हानिकारक उत्पादों के साथ भारत के ग्रामीण बाजारों में प्रवेश करते देखना काफी निराशाजनक होता है। हमारे पास सताराके आसपास की कई ऐसी ग्रामीण महिलाएं हैं जो हमारा जैविक उत्पाद खरीदने के लिये हमारे पास आती हैं। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग अच्छे उत्पादों को खरीदने के लिये अधिक मूल्य देने के लिये भी तैयार रहते हैं और वे लोग शहरी लोगों के मुकाबले अधिक समझदार होते हैं।’’
‘रस्टिक आर्ट’ के भविष्य के बारे में बताते हुए स्वाति कहती हैं, ‘‘फिलहाल हम तेजी संे विकास की ओर अग्रसर हैं। वर्तमान समय में बहुत से लोग जैविक उत्पादों में तेजी से रुचि दिखा रहे हैं और ऐसे में वे हमारे उत्पादों को पूरा महत्व देते हैं। उन्हें मालूम है कि ये अच्छे उत्पाद हैं और वे इनका उपयोग आंखें मूंदकर कर सकते हैं। हमारे कई उपभोक्ता हमारे पास आकर हमसे पूछते हैं, ‘क्या आपके पास बच्चों के लिये जैविक फेयरनैस क्रीम है?’ यह क्रमिक है लेकिन हमें उम्मीद है कि समय के साथ चीजें बदलेंगी और लोग अपने शरीर पर प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं और पर्यावरण के प्रति जागरुक होंगे।’’