अमेरिका में मानव तस्करी रोक रही हैं भारत की मीनल पटेल
आज मानव तस्करी विश्व का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध बन चुकी है। ऐसे भयानक दौर में भारतीय मूल की मीनल पटेल डेविड को मानव तस्करी रोकने के लिए अमेरिका में सम्मानित किया गया है। इस समय वह अमेरिका के चौथे सबसे बड़े शहर ह्यूस्टन के मेयर सिलवेस्टर टर्नर का विशेष सलाहकार हैं।
आज देश-दुनिया में मानव तस्करी भी मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर हो रही है। मानव तस्करी भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक है। आज तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया, जिससे भारत में तस्करी किए गए बच्चों के सही आंकड़े का पता चल सके।
भारत से जाकर अमेरिका में बस गए अपने माता-पिता प्रथम अमेरिकी संतान एवं कनेक्टिकट विश्वविद्यालय से एमबीए, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाली भारतीय मूल की मीनल पटेल डेविस को अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने मानव तस्करी से लड़ने में उत्कृष्ट योगदान के लिए ह्यूस्टन में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया। ह्यूस्टन के मेयर सिलवेस्टर टर्नर की मानव तस्करी पर विशेष सलाहकर हैं मीनल पटेल। मीनल पटेल को जुलाई, 2015 में अमेरिका के चौथे सबसे बड़े शहर ह्यूस्टन के मेयर सिलवेस्टर टर्नर का विशेष सलाहकार नियुक्त किया गया था।
मानव तस्करी के मसले पर मीनल ने नीतिगत मामलों के साथ ही सम्बंधित व्यवस्थाओं में भी भारी बदलाव लाकर मानव तस्करी से निबटने में स्थानीय स्तर पर बड़ा योगदान किया। मीनल को गत सप्ताह व्हाइट हाउस में एक कार्यक्रम में मानव तस्करी से लड़ने के लिए राष्ट्रपति पदक प्रदान किया गया। यह इस क्षेत्र में देश का सर्वोच्च सम्मान है। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी मौजूद रहे। मीनल कहती हैं - 'इतना बड़ा सम्मान तो मेरे लिए अविश्वसनीय है। मेरे माता-पिता भारत से यहां आये थे। मैं अमेरिका में जन्म लेने वाली अपने परिवार की पहली सदस्य हूं। कई साल पहले मेयर कार्यालय से अब व्हाइट हाउस तक आना भी मेरे लिए अविश्वसनीय है।'
विदेश मंत्री माइक पोंपियो कहते हैं कि आधुनिक युग में मानव तस्करी के लिए कोई जगह नहीं है। वह दुनिया को आश्वस्त करना चाहता हैं कि आने वाले वर्षो में अमेरिकी नेतृत्व इसे खत्म करने के लिए अपना प्रयास जारी रखेगा। पाकिस्तान सरकार ने तस्करी को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए न्यूनतम मानकों को पूरा नहीं किया है, हालांकि उसने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम जरूर उठाए हैं। अमेरिकी सरकार ने पिछली अवधि की तुलना में अपने प्रयासों में वृद्धि की है, इसलिए पाकिस्तान को टियर-2 सूची में जगह दी गई है। अमेरिकी विदेश विभाग की टियर-2 सूची में वे देश शामिल होते हैं, जो न्यूनतम मानकों को पूरा नहीं करते हैं लेकिन इसके पालन में महत्वपूर्ण कदम जरूर उठाते हैं।
यह कदम एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय निगरानी संस्था द्वारा पाकिस्तान को 'ग्रे सूची' नाम से प्रसिद्ध अपनी निगरानी सूची में शुमार करने के बाद उठाया गया है। 'ग्रे सूची' आतंकियों को धन इकठ्ठा करने की इजाजत देने वाले देशों की सूची है। गौरतलब है कि पिछले साल 2017 में अमेरिका ने मानव तस्करी से जुड़ी अपनी सालाना रिपोर्ट में भारत को टियर-2 सूची में डाल दिया था। उस समय कहा गया था कि भारत भी इस समस्या को खत्म करने के लिए न्यूनतम मानकों पर पूरी तरह खरा नहीं उतरता। यद्यपि वह इस समस्या को कम करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रहा है। मीनल पटेल डेविड की तरह ही फिलहाल, मीनल पटेल ह्यूस्टन के मेयर के 'एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग प्लान' के क्रियान्वयन पर काम कर रही हैं। वह संयुक्त राष्ट्र के 'विश्व मानवतावादी सम्मेलन' को भी संबोधित कर चुकी हैं।
मीनल पटेल की तरह ही हमारे देश के मुंबई महानगर में आरपीएफ सब इंस्पेक्टर रेखा मिश्रा अपनी एक साल की नौकरी में ऐसे 432 बच्चों को बचा चुकी हैं। सेंट्रल रेलवे के मुंबई डिविजन में रेलवे पुलिस ने वर्ष 2016 में 1150 बच्चों को बचाया था, जिसमें रेखा मिश्रा ने अकेले 434 बच्चों को बचाने में मदद की थी। वर्ष 2017 के शुरुआती तीन महीनों में वह सौ से ज्यादा बच्चों को बचा चुकी हैं। वह कहती हैं कि सीएसटी से बचाए गए बच्चों में या तो वे किसी वजह से परिवार से बिछुड़ गए थे या वे किसी मानव तस्कर गैंग के शिकार थे। देश के व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में से एक सीएसटी पर रेखा मिश्रा रोजाना करीब 12 घंटे ड्यूटी करती हैं। वो डरे सहमे लोगों को ढूंढती हैं और ऐसे में ज्यादातर मामलों में उन्हें बच्चे ही मिलते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि गायक दलेर मेहंदी को वर्ष 2003 के कबूतरबाजी मामले में इसी वर्ष मार्च में पंजाब की पटियाला कोर्ट ने दोषी पाया था।
उनको दो साल कैद की सजा सुनाई गई लेकिन अदालत ने उनको जमानत भी दे दी। दलेर मेहंदी और उनके भाई शमशेर सिंह पर आरोप था कि प्रशासन को धोखे में रखकर कुछ लोगों को अपनी टीम के साथ वह विदेश ले गए। इसके लिए उन्होंने काफी रकम भी वसूली थी। इसी साल मार्च 2018 में अमेरिका में मोटल चलाने वाले भारतीय दंपति विष्णुभाई चौधरी और लीलाबेन चौधरी को मानव तस्करी का दोषी पाते हुए अमेरिकी अदालत दो वर्ष की कैद की सजा सुनाने के बाद वापस भारत भेज चुकी है। इस भारतीय दंपति ने हमारे देश से अवैध अप्रवजन एवं श्रमिकों का शोषण करते हुए उन्हें किमबेल में अपने सुपर 8 मोटल में बिना किसी दस्तावेज के अक्टूबर 2011 से फरवरी 2013 तक रखा। वहां ये दोनो भारतीय श्रमिकों से बिना मजदूरी दिए हफ्ते के सातों दिन कई-कई घंटे काम करवाते थे। विरोध करने पर उन श्रमिकों को प्रताड़ित भी किया गया।
आज देश-दुनिया में मानव तस्करी भी मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर हो रही है। मानव तस्करी भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक है। आज तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया, जिससे भारत में तस्करी किए गए बच्चों के सही आंकड़े का पता चल सके। अमेरिकी अखबार 'न्यूयॉर्क टाइम्स' भारत में, खासकर झारखंड में मानव तस्करी की बढ़ती समस्या पर प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में बता चुका है कि छोटी उम्र की लड़कियों को नेपाल से तस्करी कर भारत लाया जाता है। मानव तस्करी के मामले में कर्नाटक भारत में तीसरे नंबर पर है। अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में भी मानव तस्करी हो रही है। चार दक्षिण भारतीय राज्यों में से प्रत्येक में हर साल ऐसे 300 मामले और पश्चिम बंगाल-बिहार में सौ मामले दर्ज हो रहे हैं।
चार वर्षों में कर्नाटक में मानव तस्करी के 1379, तमिलनाडु में 2244, आंध्र में 2157 मामले सामने आ चुके हैं। इसी साल जुलाई 2018 में दक्षिणी दिल्ली के मैदानगढ़ी इलाके के एक बड़े फ्लैट में मानव तस्करी का धंधा पकड़ा गया था। वहां से 19 लड़कियों को छुड़ाया गया, जिनमें 16 लड़कियां नेपाल की और तीन जलपाईगुड़ी की थीं। इस मामले में तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया। गौरतलब है कि इस समय नशीली दवाओं और हथियारों के कारोबार के बाद मानव तस्करी विश्व में तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध बन चुका है। दुनिया भर में 80 प्रतिशत से ज्यादा मानव तस्करी यौन शोषण के लिए की जा रही है, और बाकी बंधुआ मजदूरी के लिए। भारत को एशिया में मानव तस्करी का गढ़ माना जाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। सन् 2011 में लगभग 35,000 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई थी, जिसमें से 11,000 से ज्यादा तो सिर्फ पश्चिम बंगाल से थे। इसके अलावा यह माना जाता है कि कुल मामलों में से केवल 30 प्रतिशत मामले ही रिपार्ट किए गए और वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।
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