Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

मिलें झारखंड के देव कुमार वर्मा से, जो बेहतर शिक्षा देकर संवार रहे हैं कोयला खदानों में काम करने वाले मज़दूरों के बच्चों का भविष्य

देव कुमार वर्मा: कोल माइनर का बेटा अच्छी शिक्षा देकर संवार रहा 400 से अधिक बच्चों की जिंदगियां

 कोल माइनर के बेटे देव कुमार वर्मा झारखंड के धनबाद में आज 3 प्राथमिक विद्यालय चला रहे हैं जिनमें कोयला खदानों में काम करने वाले गरीब लोगों के 400 से अधिक बच्चे पढ़ने आते हैं। पहले स्कूल की शुरूआत अपने घर से की और आज वे इन बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन देकर उनका भविष्य संवारने में प्रयासरत हैं।


h

स्कूली बच्चों के साथ देव कुमार वर्मा (फोटो साभार: देव कुमार वर्मा)



एक पान की दुकान के मालिक और धनबाद जिले के कतरास गाँव में कोयला मजदूर के घर जन्मे देव कुमार वर्मा को भी पिता के साथ खानों में काम करना पड़ा। गरीबी और मुश्किल हालात के बावजूद खुद की पढ़ाई जारी रखते हुए एमबीए करने वाले देव ने कोल इंडिया में नौकरी की।


अब वे अपने गांव कतरास में कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इसके लिये उन्होंने तीन प्राथमिक विद्यालय खोले हुए हैं। देव अब इन बच्चों के लिये हाई-स्कूल और उसके बाद यूनिवर्सिटी खोलना चाहते हैं।

कोयले में बीता बचपन

देव कुमार वर्मा का जन्म 3 अक्टूबर 1984 को धनबाद के कतरास में एक कोयला श्रमिक के परिवार में हुआ था। देव का बचपन कोयले के इर्द-गिर्द ही बीता। न कृषि, न कारखाने, न बाजार। बड़े पैमाने पर गरीबी थी। ऐसे में देव ने 6-7 साल की उम्र में ही परिवार को सपोर्ट करना शुरू कर दिया। शुरूआत में वे अपने पिता के साथ कोयले की खदानों में जाते थे, बाद में जब पिता ने वहां पान की दुकान की तो देव उसे भी संभाला करते थे।


इन मुश्किल हालातों में भी देव ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और महज 13 साल की उम्र में उन्होंने बिहार बोर्ड से दसवीं कक्षा की परीक्षा सेंकड डिवीजन से पास कर ली।


देव बताते हैं,

उस जमाने में बिहार बोर्ड का रिजल्ट मात्र 8 प्रतिशत हुआ करता था। ऐसे में जब मैंने परीक्षा पास की तब लोगों ने मेरी काफी सराहना की और इस बात ने मेरी हौसलाअफजाई की। मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। इस तरह मैंने साइंस स्ट्रीम से ग्रेजुएशन पूरी कर ली। ”

देव ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद परिवार को सपोर्ट करने के लिये बतौर एलआईसी एजेंट भी काम किया। इसके साथ ही वे अपने रिश्तेदारों के यहां ज्वैलरी की दुकानों पर कारीगर के रूप में भी काम किया करते थे। देव को आभुषण बनाने में भी महारत हासिल है।



ज़िंदगी का टर्निंग पॉइन्ट

दो-तीन साल एलआईसी एजेंट और ज्वैलरी की दुकान पर काम करने के बाद देव ने आगे की पढ़ाई करने की ठानी और एमबीए करने के लिये कैट (कॉमन एडमिशन टेस्ट) के पहले ही प्रयास में सफलता का स्वाद चखा। देव ने एनआईटी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) दुर्गापुर से एमबीए पास कर लिया।


इसके बाद देव को अलग-अलग कंपनियों से नौकरियों के ऑफर मिले। तब देव ने कोल इंडिया को जॉइन करते हुए कोलकाता स्थित हेडऑफिस में नौकरी ले ली।


नौकरी करते हुए देव की ज़िंदगी अच्छा-खासी चल रही थी। और, यही वह समय था जब उन्होंने समाज के लिए कुछ करने की ठानी।


साल 2014 में देव वापस अपने गांव कतरास लौट आए और उन्होंने भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (BCCL) में बतौर मैनेजर नौकरी शुरू कर दी।



पाठशाला की शुरूआत

देव वर्मा ने जब गांव के नौवीं और दसवीं कक्षा छात्रों को पढ़ाई में पिछड़ा और कमजोर पाया तो वे दंग रह गए। तब उन्होंने अपनी पत्नी प्रियंका कुमारी, जो कि IIT (ISM) धनबाद से पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्तमान में और BIT सिंदरी में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर अपनी नौकरी कर रही हैं, के साथ मिलकर एक प्राथमिक स्कूल खोलने का निर्णय लिया।


पाठशाला

फोटो साभार: देव कुमार वर्मा

उन्होंने अपना पहला स्कूल अपनी निजी बचत के साथ अपने घर में शुरू किया। वे गरीब बच्चों को सीबीएसई पैटर्न के जरिये क्वालिटी एजुकेशन दे रहें हैं।


तत्कालीन सीएम रघुबर दास भी देव के प्रयासों की सराहना कर चुके हैं।

देव कहते हैं,

शिक्षा ही एकमात्र चीज है जो उन्हें उनकी गरीबी खत्म करने में मदद कर सकती है। शिक्षा ही उन्हें बेहतर भविष्य दे सकती है जिसके जरिये वे बेहतर समाज का निर्माण करते हुए राष्ट्र निर्माण में सहायक हो सकते हैं।

अगले पांच वर्षों में, दंपति ने तीन स्कूलों की स्थापना की, जिनका नाम "पाठशाला" है, जिनमें 400 से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं, जिन्हें बिल्कुल फ्री क्वालिटी एजुकेशन प्रदान की जा रही है।


क

देव, पाठशाला में बच्चों को पढ़ाते (फोटो साभार: देव कुमार वर्मा)

उन्होंने आगे बताया कि स्कूल प्रोजेक्टर, लैपटॉप, बायोमेट्रिक अटेंडेंस, आरओ वाटर प्यूरीफायर, लड़कों और लड़कियों के लिए अलग शौचालय, खेल के मैदान आदि से सुसज्जित हैं। सभी छात्रों को किताबें, स्टेशनरी, यूनिफॉर्म और ट्रांसपोर्टेशन मुफ्त मिलता है। छात्रों को कक्षाओं में जाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए, उन्होंने प्रत्येक छात्र के लिए बैंक खाते भी खोले हैं, जिसमें उनके खर्च के लिए हर महीने 100 रुपये जमा किए जाते हैं। लेकिन एक शर्त के साथ कि वे एक भी क्लास मिस नहीं करेंगे।


आगे की पढ़ाई के लिये वे 50 से अधिक गरीब बच्चों को दूसरे स्कूलों में दाखिला दिला चुके हैं। और उनका खर्च भी वहन कर रहे हैं।


आपको बता दें कि देव कुमार वर्मा को अब तक उनके इस नेक काम के लिये सरकार से सराहना तो काफी मिली है लेकिन स्कूल चलाने और उन्हें बेहतर बनाने के लिये आर्थिक तौर पर कोई सरकारी मदद नहीं मिली है।



कोरोना काल में नेकी

देव कुमार वर्मा और उनकी पत्नी प्रियंका कुमारी ने कोरोनावायरस (कोविड-19) महामारी चलते लगे लॉकडाउन के दौरान कई गरीब लोगों और जरूरतमंदों को अपनी निजी बचत के पैसों से खाना खिलाया और अन्य जरूरी चीजें उपलब्ध कराई है।

भविष्य की योजनाएं

देव इन बच्चों के बेहतर शिक्षा देने के अपने प्रयासों को आगे भी जारी रखना चाहते हैं। बच्चों के लिये भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं,


मैं एक हाई-स्कूल भी शुरू करना चाहता हूं, और एक विश्वविद्यालय भी। हम बच्चों को दिन में दो बार भोजन देना भी शुरू करना चाहते हैं। और यह सब मुफ्त में देंगे। मेरे चार भाई-बहन, मेरे पिता, मेरी पत्नी, वे सभी मुझे उन तीनों स्कूलों को चलाने में हर तरह से मदद करते हैं जो वे कर सकते हैं।

देव को इन बच्चों को भविष्य संवारने में अब सरकार और अन्य लोगों से मदद अपेक्षित है। इसके लिये देव ने मिलाप ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर फंड राइजिंग कैंपेन भी चलाया है।


यहां इस लिंक पर क्लिक करके आप डोनेशन दे सकते हैं।


आप नीचे दी गई बैंक डिटेल्स के जरिये डायरेक्ट पाठशाला के बैंक अकाउंट में दान कर सकते हैं-


बैंक ऑफ इंडिया

कतरास बाजार शाखा

खाता संख्या - 5873 2011 0000 209

नाम - पाठशाला

IFSC - BKID0005873