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'सौर-सैनिक', ज़िंदगी में कूट-कूटकर रौशनी भरने का दम

“भारत के असंख्य गाँवों का यथार्थ यह है कि वहाँ अभी विद्युतीकरण भी नहीं हो पाया है और कुछ सुविधासम्पन्न गाँवों की विडंबना यह है कि विद्युतीकरण तो हो गया है मगर बिजली की आपूर्ति के लिए तरस रहे हैं।”

'सौर-सैनिक', ज़िंदगी में कूट-कूटकर रौशनी भरने का दम

Sunday July 19, 2015 , 5 min Read

फटी-पुरानी साड़ी में लिपटी एक बुजुर्ग महिला नीची छत वाले मिट्टी के झोपड़ी में बैठी है। माथे पर गहरी लकीरें और आँखों में झलकती निराशा से वह अपना सिर उठाकर एक झूलते हुए तार से लटकते हुए बल्ब की तरफ देखती है। अपने जीवन में उसने उसे जलते हुए दो या तीन बार ही देखा है। वह बल्ब उसके अपने जीवन में या उस घर में रोशनी फैलाएगा, इसकी उसे कोई आशा नहीं है। पर हृदय की गहराई में कहीं वह कामना करती है कि उसके बच्चे, या कम से कम उसके नाती-पोते उस व्यर्थ सी लटकती हुई वस्तु का उपयोग कर पाएँ।

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यह किसी चलचित्र का दृश्य नहीं है, न ही यह किसी चमकीली पत्रिका के मुख-पृष्ठ का वर्णन है, जो किसी अविकसित देश की व्यथा को दर्शा रहा है। यह भारत के ऐसे असंख्य गाँवों का प्रत्यक्ष यथार्थ है, जहाँ अभी विद्युतीकरण नहीं हो पाया है और ऐसे सुविधासंपन्न गाँवों का भी, जहाँ विद्युतीकरण तो हो गया है मगर जो बिजली की आपूर्ति के लिए तरस रहे हैं। सरकार की नीति यह है कि अगर किसी गाँव के 10 प्रतिशत घरों को बिजली के तारों से जोड़ा गया है तो इस बात का विचार किए बिना कि उन तारों में बिजली दौड़ रही है या नहीं, उन्हें पूरी तरह एलेक्ट्रिफाइड मान लिया जाता है।

भारत के सबसे घनी आबादी वाले और सबसे कम विद्युतीकृत राज्य, उत्तरप्रदेश के सुदूर अंचल का एक गाँव है, गुलाबगंज और उसकी भी यही कहानी है कि सरकारी रिकॉर्ड में पूरी तरह विद्युन्मय (electrified ) होते हुए भी वहाँ बिजली की आपूर्ति नहीं है। पिछले 25 सालों से गुलाबगंज के निवासी पूर्णिमा की रात को ही सबसे अधिक प्रकाशित देखते हैं। विडम्बना यह कि गुलाबगंज एक अंबेडकर गाँव है, अर्थात जिसे राज्य की कल्याणकारी योजनाओं के लाभ प्राप्त करने का विशेषाधिकार प्राप्त है। सरकारों, राजनेताओं और स्थानीय नेताओं के झूठे वादों से निराश गुलाबगंज के निवासी बिजली आपूर्ति से जुड़े किसी भी प्रस्ताव पर विश्वास नहीं करते और उन प्रस्तावों को झूठे वादे मानकर सीधे खारिज कर देते हैं।

संकल्प एनर्जी की संस्थापक, कनिका खन्ना और उनकी टीम गाँव में बिजली लाने का वादे के साथ जब गुलाबगंज पहुँची तो लोगों ने उन्हें भी इसी संदेह भरी नज़रों से देखा। जब पहले-पहल उन्होंने गुलाबगंज को सौर ऊर्जा के माध्यम से बिजली आपूर्ति में आत्मनिर्भर बनाने की बात की होगी तब लोगों के उपहास और उनकी नज़रों में दिखाई दिए अविश्वास का एहसास करके उन्हें कैसा लगा होगा, कल्पना की जा सकती है। संकल्प एनर्जी सौर ऊर्जा के लिए तैयारशुदा समाधान मुहैया करते हैं और चाहते थे कि अपने समाधान उन जगहों पर स्थापित करें, जहाँ उनकी सबसे ज़्यादा जरूरत है लिहाजा वे ऐसे ग्रामीण इलाकों की खोज में थे, जहाँ गाँवों का विद्युतीकरण सौर ऊर्जा द्वारा किया जा सके। चयन के लिए उनके पास विकल्पों की कमी नहीं थी क्योंकि भारत में एक लाख से अधिक गाँव हैं, जिनका विद्युतीकरण नहीं हुआ है।

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गुलाबगंज की बिजली आपूर्ति की लड़ाई को संकल्प ने अपने हाथ में ले लिया है और अपने ‘सौर सैनिकों’ के माध्यम से उसे जीतने के लिए कमर कस ली है-गाँव की ऊर्जा-ज़रूरत को सौर ऊर्जा द्वारा पूरा करने के उद्देश्य से उन्होंने ज़्यादा से ज़्यादा लोगों से धन इकट्ठा करने की मुहीम (crowd funding campaign) चलाई। परियोजना का शुरुआती खर्च जननिधि से पूरा हो जाने के बाद, रख-रखाव का खर्च बहुत ही कम है, जिसे ग्रामीणों द्वारा बिजली आपूर्ति के नगद भुगतान मात्र से पूरा किया जा सकता है। इस तरह पूरा गाँव बिजली आपूर्ति में आत्मनिर्भर बन जाएगा। अधिकतम 2 किलोवाट क्षमता का एक बिजलीघर निर्मित करने की उनकी योजना है, जो गाँव के प्रत्येक घर में 2 बल्ब, 1 पंखा और 1 चार्जिंग पॉइंट के लिए बिजली उपलब्ध कराने में सक्षम होगा। वे पाठशालाओं, दुकानों और उन सभी को बिजली उपलब्ध कराएँगे, जो इसका लाभ उठाना चाहते हैं। गाँव का ही एक व्यक्ति मीटरों की देख-रेख, शुल्क-उगाही और धन-संग्रहण तथा सौर-ऊर्जा-बिजलीघर के रख-रखाव का काम देखेगा।

कनिका आश्चर्यचकित रह गईं जब उन्हें अपने अनुमान से कहीं अधिक मैदानी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। “शुरू में लोग हमारी बात पर भरोसा नहीं करते थे और अभियान के बारे में समझाने, उन्हें राज़ी करने और ग्राम पंचायत से अनुमोदन प्राप्त करने में हमें काफी मशक्कत करनी पड़ी और समय भी बहुत लगा। जन-भागीदारी और सार्वजनिक कार्यों के लिए सामान्य लोगों से धन प्राप्त करना अभी शहरी भारत के लिए भी नया विचार है, गुलाबगंज के निवासियों को यह समझाना कि वे इस परियोजना के लिए अपना पैसा खर्च करें, असंभव सा था," कनिका कहती हैं। पंचायत को सहमत करने और 93% घरों को परियोजना के लिए राज़ी कर लेने के बाद अभियान की शुरुआत को लेकर आ सकने वाली की सारी चुनौतियाँ लगभग खत्म हो गयी हैं। सौर-सैनिक अब निम्न स्तर पर मीटर लगाने, सक्षम माइक्रो-ग्रिड तैयार करने तथा उत्पादन और वितरण व्यवस्था को बिजली चोरी से पूरी तरह सुरक्षित करने में लगे हुए हैं। प्राथमिक पूंजी निवेश का 20 प्रतिशत, यानी 2500 यू एस डॉलर की व्यवस्था कर पाने में सफलता ने और अपने प्रयत्नों के लिए जन सामान्य से प्राप्त सकारात्मक प्रतिक्रियाओं ने इस पाँच सदस्यीय टीम को जोश और रोमांच से भर दिया है।

यदि आप सौर सेना से जुड़ना चाहते हैं, तो आगे बढ़िए और अपना सहयोग प्रदान कीजिए। आप भी किसी के जीवन को प्रकाश से आलोकित कर सकते हैं।