जरूरतमंद बच्चों के चेहरे पर एक मुस्कान लाने में जुटे हैं लखनऊ के ये युवा
हम और आप जब इस कड़ाके की ठंड में रजाई में बैठ कर गर्म कॉफी और चाय का आनंद ले रहे हैं, तब यूपी के कुशमौरा के गरीब बच्चे सिर्फ इसलिये स्कूल नहीं जाते क्योंकि उनके पास इस ठंड से लड़ने के लिये बदन पर गर्म कपड़े तक नहीं हैं...
लखनऊ के कुछ शहरी युवाओं ने गांवों में जाकर लोगों की मदद का बीड़ा उठाया है, बच्चों के खिलखिलाते चेहरे ही इन युवाओं के लिए पारितोषिक हैं।
लखनऊ की निकिता द्विवेदी और अग्रिमा खरे नाम की दो युवतियों ने अपने तीन अन्य दोस्तों और परिवारों के साथ मिलकर इन गरीब बच्चों को आगे बढ़ाने के लिये कोशिशें शुरू कर दी हैं। दो लड़कियों के प्रतिनिधित्व में ये टीम कोशिश कर रही है कि ज्यादा से ज्यादा जरूरत का सामान इन बच्चों के लिये इकट्ठा कर सकें, ताकि इनकी पढ़ाई जारी रह सके।
मरहूम शायर निदा फ़ाज़ली का मशहूर शेर है, "अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाये, घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए। घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।" बच्चे दुनिया के नायाब तोहफे हैं, जो मुश्किल से मुश्किल वक्त में आपके चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं। उनके चेहरे पर छोटा सा दुख भी आपके मन में दर्द जगा सकता है, क्योंकि वो होते ही इतने मासूम हैं। भले ही देश की तरक्की की कितनी भी बातें कर ली जाएं, पर सच यह भी है कि हमारे देश के भविष्य की जिंदगियां आज भी अंधेरे में ही नजर आती हैं। हम और आप जब इस कड़ाके की ठंड में रजाई में बैठ कर गर्म कॉफी और चाय का आनंद ले रहे हैं, तब यूपी के कुशमौरा के गरीब बच्चे सिर्फ इसलिये स्कूल नहीं जाते क्योंकि उनके पास इस ठंड से लड़ने के लिये गर्म कपड़े तक नहीं हैं बदन पर। वो ठंड के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि फिर से अपनी पढ़ाई शुरू कर सकें। उन्हें किसी तरह ये बात कम से कम समझ आ गई है कि पढ़ाई के ज़रिये ही अपनी आगे कि जिंदगी वो सुधार सकते हैं।
हममें से निन्यानबे फीसदी लोग ऐसे होंगे जो किसी न किसी न रूप में जरूरतमंदों की मदद करना तो चाहते हैं लेकिन वही 'वक्त नहीं है' की बेड़ियां पावों में बंध जाती है। हर बार हममें समाजसेवा करने का उबाल आता है और हर बार वो काम की व्यस्तताओं के भंवर में फंसकर ठंडा हो जाता है। लेकिन इसी बीच लखनऊ के कुछ शहरी युवाओं ने गांवों में जाकर लोगों की मदद का बीड़ा उठाया है, बच्चों के खिलखिलाते चेहरे ही इन युवाओं के लिए पारितोषिक हैं। लखनऊ की निकिता द्विवेदी और अग्रिमा खरे नाम की दो युवतियों ने अपने तीन अन्य दोस्तों और परिवारों के साथ मिलकर इन गरीब बच्चों को आगे बढ़ाने के लिये कोशिशें शुरू कर दी हैं। दो लड़कियों के प्रतिनिधित्व में ये टीम कोशिश कर रही है कि ज्यादा से ज्यादा जरूरत का सामान इन बच्चों के लिये इकट्ठा कर सकें, ताकि इनकी पढ़ाई जारी रह सके।
योरस्टोरी से बातचीत में अग्रिमा ने बताया, 'हमने एक फेसबुक पोस्ट लिखकर लोगों को अपनी इस पहल के बारे में बताया और मदद की अपील की। हमें तो लगा था कि अगर सौ लोग भी सौ-सौ रुपए का योगदान करेंगे तो हमारे पास दस हजार इकट्ठा हो हीं जाएंगे। लेकिन लोगों ने इतना जबरदस्त उत्साह दिखाया कि कुछ ही दिनों में तकरीबन पैंतीस हजार रुपए इकट्ठा हो गए। हमारे पास बीस रुपए से लेकर कुछ हजार रुपयों तक के डोनेशन आए थे। हमने सबका शुक्रिया अदा किया और बच्चों के लिए ज्यादा से ज्यादा उपयोगी सामान जुटाने में लग गए। हमने जब लोगों से इन बच्चों के बारे में बात की तो अच्छा रिस्पॉन्स मिला। लोगों ने अपनी इच्छा से दिल खोल कर बच्चों के पैसों के अलावा कपड़े, और रजाईयां तक दान में दीं। इकट्ठा किये गए पैसों से बच्चों के लिये मोजे, बिस्किट के पैकेट, जूते, पेन्सिल बॉक्स खरीदे गए। कपड़ों को अच्छे धुलकर, इस्त्री कराकर, पॉलीकवर में पैक किया गया, ताकि जिनको ये दिया जाए वो एक तोहफे के तौर मिले न कि दान में दिए गए सामान की तरह। निकिता की मां ने खुद इन कपड़ों में से जिनकी सिलाई खुली थी, सिला और संवारा था।'
इन बच्चों के हौसले भी बुलंद हैं। कोई डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई पुलिसकर्मी। कोई अपने मां-बाप को और तकलीफ में नहीं देखना चाहता इसलिये खूब कमाना चाहता है। उन्हें पता है कि गरीबी क्या होती है और सबसे बड़ी कमी तो ज़िंदगी में पढ़ाई की है, जो वो छोड़ना नहीं चाहते। मां-बाप भी चाहते हैं कि उनके खूब पढ़ें। निकिता के मुताबिक स्प्रेड द स्माइल की शुरूआत के पीछे ये विचार था, उनकी जिंदगी की एक बड़े हादसे ने उन्हें रास्ता दिखाया। उनका छोटा भाई की किसी कारण से मौत हो गई। तब निकिता को लगा कि इस छोटी सी ज़िंदगी में जितनी खुशियां बांट लो, वही आपकी कमाई है। उसी दिन से बच्चों के लिये कुछ करने की हिम्मत जागी। अपने दोस्तों से इस बारे में बात किया, सोशल साइट्स पर लोगों से मदद की अपील की। और बिना किसी एनजीओ से जुड़े एक बड़ा काम इन्होंने शुरू कर दिया।
इकट्ठा पैसों को लेकर कोई मतभेद ना पैदा हो, इसलिये व्हाट्सएप ग्रुप बना कर हर काम या कलेक्शन की तस्वीरें साझा कर दी जाती हैं। निकिता का मां भले ही ग्रुप का हिस्सा ना हों, पर पूरा सहयोग करती हैं, इकट्ठा किये गए कपड़ों को धोना, सिलना, इस्त्री करना सब देखती हैं, ताकि बच्चों को सही चीजें मिलें। निकिता अपील करती हैं, कि एनजीओ से ना जुड़े होने की वजह से उन्हें फंड की कमी तो है, पर लोग चाहें तो उनसे जुड़कर खुद उनकी मदद कर सकते हैं। पेटीएम पर भी उनसे 8604882857 जुड़कर मदद की जा सकती है।
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