जिसे IIT ने ठुकराया, उस दृष्टिहीन ने खड़ी कर ली अपनी खुद की कंपनी
दृष्टिहीन फाउंडर एण्ड सीईओ
कई बार ऐसा होता है कि छोटी दुर्घटनाएं भी हमें अंदर तक झकझोर देती हैं और हम उसे ही अपनी किस्मत समझ कर कदम पीछे खींच लेते हैं, लेकिन श्रीकांत बोला जिनका जन्म ही बिना नज़रों के साथ हुआ, मानते हैं कि हमारा हर दिन किसी खास मौके से कम नहीं...
आईआईटी ने दाखिला लेने से मना कर दिया तो श्रीकांत स्कॉलरशिप पर पढ़ाई करने के लिये यूएस के टॉप-4 इंस्टीट्यूट MIT, स्टैनफॉर्ड, बेर्कली और कार्निज मेलन में चुन लिए गए। 2012 में श्रीकांत ने बोलंट इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लि. नाम से कंपनी शुरू की, जिसमें इको-फ्रेंडली चीजें बनाई जाने लगीं और खास दिव्यांगों को नौकरी दी गई।
कितनी बार ऐसा हुआ होगा, कि अपनी परेशानियों से तंग आकर आपने हार मान ली होगी। कई बार ऐसा होता है कि छोटी दुर्घटनाएं भी हमें अंदर तक झकझोर देती हैं और हम उसे ही अपनी किस्मत समझ कर कदम पीछे खींच लेते हैं। खुद पर से भरोसा खत्म हो जाता है और हम सपने तक देखना बंद कर देते हैं। पर श्रीकांत बोला जिनका जन्म ही बिना नज़रों के साथ हुआ, मानते हैं कि हमारा हर दिन किसी खास मौके से कम नहीं ।
श्रीकांत के जन्म के बाद रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने उनके माता पिता से कहा कि बच्चे को उसके हाल पर छोड़कर उससे किनारा कर लो। पर उन्होंने किसी को तवज्जो नहीं दी, और अपने बच्चे को हर संभव दुनिया कि हर खुशी देने की कोशिश की। आर्थिक तौर पर कमज़ोर होने के बावजूद उन्होंने श्रीकांत को पढ़ाया।
श्रीकांत ने भी अपने मां-बाप को कभी निराश नहीं किया, और अंधेपन को दरकिनार करते हुए 10वीं की परीक्षा में 90% अंक प्राप्त किये। उनके दिव्यांग होने की वजह से आगे की पढ़ाई के लिये स्कूल प्रबंधन ने उन्हें विज्ञान की पढाई करने से रोक दिया। श्रीकांत ने इस बात को स्वीकार ना करते हुए स्कूल पर केस कर दिया, और 6 महीने बाद केस जीत कर साइंस की पढाई पूरी की। 12वीं में 98% अंक प्राप्त कर उन्होंने हर उस व्यक्ति के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा माचा जिन्होंने उन्हें पढ़ने से रोका था।
श्रीकांत के लिये लेकिन परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई। इंजीनियरिंग की पढाई के लिये जब उन्होंने आईआईटी में दाखिला लेना चाहा, तो उन्हें एंट्रेंस परीक्षा के लिये प्रवेश पत्र ही नहीं दिया गया। श्रीकांत हार नहीं माने और स्कॉलरशिप पर पढ़ाई करने के लिये यूएस के 4 टॉप स्कूलों एमआईटी, स्टैनफॉर्ड, बेर्कली और कार्निज मेलन में चुने गए। आखिर में उन्होंने एमआईटी में दाखिला लेकर पहले अंतर्राष्ट्रीय ब्लाइंड स्टूडेंट का तमगा हासिल किया। ग्रैजुएशन पूरी होने के बाद भारत वापस आए, और एक एनजीओ ‘समनवई’ की शुरूआत कर दिव्यांगों के हित के लिये काम करना शुरू कर दिया। ब्रायल साक्षरता पर उन्होंने ज़ोर दिया, और डिजिटल लाइब्रेरी की स्थापना की। साथ ही ब्रायल प्रिंटिंग के लिये प्रेस शुरू किया। इन सबकी सहायता से अब तक 3000 ब्लाइंड बच्चों को साक्षर बनाया जा सका है, और उनकी उच्चतम शिक्षा पर काम जारी है।
इसके बाद श्रीकांत ने अंधे लोगों की नौकरी के लिये अपना योगदान देना शुरू कर दिया। 2012 में श्रीकांत ने बोलंट इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लि. शुरू किया जिसमें इको-फ्रेंडली चीजें बनाई जाने लगीं। खास दिव्यांगों को नौकरी दी गई। श्रीकांत बिना आंखों के एक दूरदर्शी व्यक्ति साबित हुए हैं अपनी कोशिशों से और उन्हें साथ मिला इन्वेस्टर रवि मान्था का। इसके बाद रतन टाटा ने भी श्रीकांत के प्रयासों से प्रभावित होकर एक खास रकम देखकर उनके फैक्ट्री और एनजीओ की मदद की।
श्रीकांत ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के साथ लीड इंडिया प्रोज्कट पर भी काम किया, जिसके ज़रिये युवाओं से वैल्यू-बेसड पढ़ाई को और मज़बूत किया जा रहा था। तो एक ऐसा व्यक्ति जो कहने को तो दिव्यांग है पर उसका हौंसला, दृढ़ इच्छाशक्ति ने साबित कर दिया, कि चाह लो तो दुनिया कि हर परेशानी छोटी है, हर कुछ मुमकिन है।
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