पानी की एक-एक बूंद बचा कर लोगों को जीवन का संदेश दे रहे प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आबिद सुरती
दरवाजे-दरवाजे जाकर पानी की एक-एक बूंद इस तरह बचाते हैं आबिद...
देश के जाने-माने कार्टूनिस्ट, व्यंग्यकार, लेखक, नाटककार आबिद सुरती सिर्फ कलम और तूलिका के ही धनी नहीं, महाराष्ट्र में पानी बचाओ मुहिम के भी महारती हैं। वह कहते हैं- 'गंगा को तो नहीं बचा सकता, पानी की बर्बादी तो रोक सकता हूं।' हफ्ते के छह दिन सृजन और एक दिन (रविवार को) 'पानी बचाओ' मुहिम। वह मुंबई महानगर में अब तक लाखों लीटर पानी नष्ट होने से बचा चुके हैं।
मार्च 2008 में वॉटर कंसरवेशन पर फिल्म बना रहे फिल्ममेकर शेखर कपूर ने अपनी वेबसाइट पर आबिद की दिल खोल कर तारीफ की। मीडिया में आबिद के काम का जिक्र शुरू हो चुका था, फिल्म स्टार शाहरुख खान भी उनके मुरीद हो गए।
इस महीने की 11 तारीख को उदयपुर (राजस्थान) में महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउंडेशन की ओर से 36वें वार्षिक सम्मान समर्पण समारोह में प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट, व्यंग्यकार, लेखक एवं समाजसेवी आबिद सुरती को सम्मानित किया जाएगा। पहली बार देश ही नहीं, पूरी दुनिया में सुरती जी की ख्याति कार्टून पात्र 'ढब्बू जी' से फैली। स्वभाव से यथार्थवादी होते हुए भी सुरती फंतासी और काल्पनिकता के माध्य से जिंदगी के तमाम तरह के सच का सामना करते हैं। वह अस्सी साल से अधिक के हो चुके हैं लेकिन मुंबई महानगर में वह अपनी 'पानी बचाओ' मुहिम के लिए खासे चर्चित हो गए हैं। इसके लिए उनको 'योगदान' की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है।
प्रतिष्ठित कथाकार आर.के. पालीवाल कहते हैं कि आबिद सुरती एक ऐसे विरल कथाकार और कलाकार हैं, जो अपनी कलम से हिन्दी और गुजराती साहित्य को पिछले कई दशकों से निरंतर समृद्ध कर रहे हैं। वह फिल्म लेखन के साथ ग़ज़लें भी लिखते हैं। एक सचेत-सजग कलाकार की तरह आबिद अपनी कहानियों में सदियों से चली आ रही जड़-रूढ़ियों, परंपराओं पर जमकर प्रहार करते हैं। वह कला को महज़ कला नहीं, ज़िन्दगी की बेहतरी का सबसे सशक्त माध्यम मानते हैं। वह आज भी महाराष्ट्र में पानी की एक-एक बूँद बचाने के लिए लगातार जन जागरण में जुटे हुए हैं।
हर रविवार को वह आज भी मुंबई महानगर के मीरा रोड इलाके में एक प्लंबर के साथ घर-घर घूमकर लीक हो रहे नलों की टोंटियां ठीक करना नहीं भूलते हैं। इस काम में हर सप्ताह उनके करीब छह-सात सौ रुपए खर्च हो जाते हैं। इस काम के लिए उन्होंने सुनियोजित तरीके से 'ड्रॉप डेड' एनजीओ बना रखा है। इस काम में उनका सिर्फ दो लोग साथ देते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने अभी तक करीब 55 लाख लीटर पानी बर्बाद होने से रोका है।
वह बताते हैं कि उनका बचपन पानी की किल्लत के बीच गुजरा। सन् 2007 में वह अपने दोस्त के घर बैठे थे कि उनकी नजर अचानक एक लीक करते पानी के टैप पर पड़ी। जब उन्होंने इस ओर अपने दोस्त का ध्यान दिलाया, तो आम लोगों की तरह ही उसने इस बात को कोई खास तवज्जो नहीं दी। इस बीच उन्होंने कोई आर्टिकल पढ़ा, जिसके मुताबिक अगर एक बूंद पानी हर सेकंड बर्बाद होता है, तो हर महीने क़रीब एक हजार लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। यहीं से शुरुआत हुई एक नई क्रान्ति की।
पहली दिक्कत आई प्रॉजेक्ट को शुरू करने के लिए पैसों की, लेकिन इसी दौरान उन्हें हिंदी-साहित्य संस्थान उत्तर प्रदेश की ओर से एक लाख रुपए का पुरस्कार मिल गया। आबिद सुरती कहते हैं, 'मैं पानी की अहमियत अच्छे से समझता हूं, मैंने अपने जीवन में काफी समय फुटपाथ पर भी गुज़ारा है और लोगों को पानी के लिए तरसते देखा है। मैंने 2007 में अभियान 'द ड्राप डेड फाउंडेशन' की शुरूआत की। उस समय चार सौ से ज़्यादा ऐसे नल थे जिनसे पानी टपक रहा था, लोगों को अंदाज़ा भी नहीं होता की बूंद-बूंद से कितना पानी बह जाता है। इन सभी नलों को मैंने ठीक करना शुरू किया और अंदाज़न 4 लाख़ लीटर से भी ज़्यादा पानी बचा लिया।'
इस अभियान को जारी रखते हुए वे हर रविवार को एक बिंल्डिंग चुन लेते हैं। आम तौर पर कोई चॉल या ऐसी जगह देखते हैं, जहां गरीब लोगों की आबादी ज़्यादा हो। हम वहां जाकर अपने अभियान के पोस्टर लगाते हैं। सप्ताह के अंत में हम उनके घर जाकर खराब नलों की मरम्मत करते हैं। मुंबई में कोई किसी के बारे में इतना ध्यान नहीं देता। जब लोगों इस अभियान के बारे में पता चलने लगा, वे भी अपने बच्चों को पानी बचाने के लिए प्रेरित करने लगे। आज उनकी वजह से हमारे बच्चे पानी की अहमियत समझने लगे हैं। सुरती साहब के घर-परिवार के बच्चे तो सेटल हो गए हैं, अलग-अलग अपने ठिकानों पर रहते हैं लेकिन वह खुद सप्ताह के छह दिन सृजन आदि में और एक दिन नलों के लीकेज ठीक करने में बिता देते हैं। वह कहते हैं कि अपनी सेवा तो हर कोई करता रहता है लेकिन समाज का मजा ही कुछ और है।
मार्च 2008 में वॉटर कंसरवेशन पर फिल्म बना रहे फिल्ममेकर शेखर कपूर ने अपनी वेबसाइट पर आबिद की दिल खोल कर तारीफ की। मीडिया में आबिद के काम का जिक्र शुरू हो चुका था, फिल्म स्टार शाहरुख खान भी उनके मुरीद हो गए। इस तरह उन्हें लोग एक अलग तरह की सामाजिक सक्रियता के लिए जानने-सुनने लगे। वह कहते हैं कि 'वॉटर कंसरवेशन की जंग कोई भी अपने इलाके में लड़ सकता है।' एक जमाने में देश की लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिका 'धर्मयुग' में अनवरत तीन दशकों तक 'कार्टून कोना ढब्बूजी' के नाम से जाने-पहचाने जाते रहे। 'ढब्बूजी' यानी आरके लक्ष्मण की तरह आम आदमी की प्रतिकृति। 'ढब्बूजी' ने अपनी तीक्ष्णता और कटाक्ष से हर खासोआम को रिझाया। बताते हैं कि सुरती साहब ने 'ढब्बूजी' की प्रतिछवि अपने अधिवक्ता पिता से ली थी।
'धर्मयुग' के ख्यात संपादक धर्मवीर भारती ने कभी सुरती जी की व्यंग्य कृति 'काली किताब' के लिए लिखा था - 'संसार की पुरानी पवित्र किताबें इतिहास के ऐसे दौर में लिखी गयीं जब मानव समाज को व्यवस्थित और संगठित करने के लिए कतिपय मूल्य मर्यादाओं को निर्धारित करने की ज़रूरत थी। आबिद सुरती की यह महत्वपूर्ण ‘काली किताब’ इतिहास के ऐसे दौर में लिखी गयी है, जब स्थापित मूल्य-मर्यादाएँ झूठी पड़ने लगी है और नए सिरे से एक विद्रोही चिंतन की आवश्यकता है ताकि जो मर्यादाओं का छद्म समाज को और व्यक्ति की अंतरात्मा को अंदर से विघटित कर रहा है, उसके पुनर्गठन का आधार खोजा जा सके। महाकाल का तांडव नृत्य निर्मम होता है, बहुत कुछ ध्वस्त करता है ताकि नयी मानव रचना का आधार बन सके। वही निर्ममता इस कृति के व्यंग्य में भी है।'
आबिद सुरती आज वन मैन एनजीओ ही नहीं, उनकी 80 से अधिक किताबें छप चुकी है। कई पुस्तकों के लिए उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में वह लिख रहे हैं। ‘अतिथि तुम कब जाओगे’ फिल्म की कहानी भी उनकी एक कहानी से प्रेरित बताई जाती है। उनके बनाए कार्टून भारत की सभी प्रमुख पत्रिकाओं और पत्रों में प्रकाशित हो चुके हैं और होते रहते हैं। कॉमिक कैरेक्टर ‘बहादुर’ उन्हीं की पैदाइश है। उनके कार्टून पसंद करने वालों में अटल बिहारी वाजपेयी, आशा भोंसले, ओशो जैसी हस्तियां रही हैं।
शाहरुख खान उनके बड़े प्रशंसक हैं। उनके एनजीओ में बिना स्वार्थ काम कर रहे दो लोगों में एक तो ब्लंबरी करता है, दूसरा घर-घर घूमकर ये पता करता रहता है कि कहीं नल तो नहीं टपक रहा है। अब तो वाटर सप्लायर टैंकरों के नल भी ठीक करने लगे हैं। आबिद सुरती का कहना है कि वह गंगा को नहीं बचा सकते तो कम-से-कम अपने आसपास, अपने शहर के कुछ मोहल्लों की पानी की बर्बादी तो रोक सकते हैं। मेरी तरह अगर अन्य लोग भी इस ओर गौर फरमाने लगें तो हमारे देश के किसी कोने में पानी की कोई किल्लत न रहे।
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