‘हंसाने के लिए बहुत रोया’
हंसना आसान है पर हंसाना बहुत मुश्किल-प्रवीण कुमार
Friday March 13, 2015 , 8 min Read
हम बचपन से सुनते आए हैं कि ज़िंदगी के जद्दोजहद में इंसान का हँसना कम होता जाता है। असल में हँसना कठिन है। कठिन इसलिए कि समय के साथ हालात बदल जाते हैं। खुलकर हंसे तो कई बार महीनों हो जाते हैं। ये बात और है कि इस देश में स्टैंडअप कॉमेडी का चलन बढ़ा है। इधर के कुछ वर्षों में तो टेलीविजन के कई रिअलिटी शो की वजह से इसमें लगातार इज़ाफा हुआ है। आम लोग अकसर किसी की नकल उतारना (मिमेकरी)और स्टैंडअप कॉमेडी दोनों को एक ही मानते रहे हैं। लेकिन अब स्टैंडअप कॉमेडी को उसकी जगह मिलने लगी है।
स्टैंडअप कॉमेडी की वजह से एक ऐसे शख्स को नया जीवन मिला जिनके स्टेज पर जाने के बाद लोग ताने मारते थे। फब्तियां कसते थे। और तो और कई बार तो गुब्बारे फोड़ने लगते थे। उस शख्स का नाम है प्रवीण कुमार। प्रवीण कुमार बचपन से ही दूसरों के चेहरे पर हंसी खुशी देखना चाहते थे। उन्होंने इसका सबसे अच्छा ज़रिया निकाला स्टैंडअप कॉमेडियन बनने का। इसलिए शुरू से ही प्रवीण कुमार की दिली ख्वाहिश रही स्टेज पर जाना और अपना जौहर दिखाकर लोगों को हंसाना। लेकिन न तो किसी ने उत्साह बढ़ाया और न ही इस कला में मांजने की कोशिश की। प्रवीण कुमार जब पढ़ाई के दौरान बीट्स पिलानी पहुंचे तो खुद को स्टैंडअप कॉमेडियन के तौर पर स्थापित करने के लिए एड़ी चोटी एक कर दी। दोस्तों के बीच में स्टैंडअप कॉमेडी करना प्रारंभ किया। धीरे-धीरे कॉलेज के कार्यक्रमों में हिस्सा लेना शुरू किया। इसका नतीजा ये हुआ कि सैकड़ों छात्रों के बीच अपनी कला का प्रदर्शन करने और उन्हें हंसाने का मौका मिलने लगा। लोगों की हंसी से इनकी आत्म तृप्त होती। लेकिन पढ़ाई खत्म करने के बाद हर भारतीय छात्र की तरह नौकरी की तलाश में अपनी सारी खूबियां दफ्तर के चक्कर काट-काटकर धिस दी।
स्टैंडअप कॉमेडी के लिए असल में श्रोता और दर्शक भी उसी मिज़ाज के चाहिए। वरना हंसी से ज्यादा आंसू आने लगते हैं। बहरहाल, दोस्तों के सामने किसी तरह कॉमेडी का तड़का 2008 तक लगाते रहे। जब 2008 में प्रवीण कुमार की शादी हुई तो हंसने और हंसाने के लिए पूरा व्यंजन घर में ही मिलने लगा। प्रवीण अब अपने स्टैंडअप कॉमेडी को लेकर पहले से ज्यादा गंभीर दिखने लगे। इसी दौरान उन्होंने स्टैंडअप कॉमेडियन और ओपन माइक करने वाले पापा सीजे का अखबार में एक लेख पढ़ा। इसके बाद प्रवीण ने अपनी इस कला को बाक़ायदा एक प्रोफेशन बनाने की सोची। ठीक इसी समय कॉलेज में पुराने छात्रों के मिलने के लिए एक कार्यक्रम रखा। इस कार्यक्रम में प्रवीण कुमार को भी दस मिनट का एक स्टैंडअप कॉमेडी का एकल शो करने को मिला। बड़ी संख्या में दर्शकों के बीच खुद को दिखाने का ये पहला बड़ा मौका था प्रवीण कुमार के लिए। उनकी तैयारी भी ज़ोरदार थी। जब उन्होंने स्टैंडअप कॉमेडी शुरू की तो दर्शकों ने हंसना शुरू कर दिया। प्रवीण का उत्साह बढ़ा। उन्हें लगा कि दर्शकों को मज़ा आ रहा है। लेकिन तुरंत ही समझ में आ गया कि दर्शक उनकी कॉमेडी पर नहीं बल्कि उनपर हंस रहे हैं। समय पूरा होते होते दर्शकों की हूटिंग भी तेज़ हो गई। इस घटना ने प्रवीण को एक ज़ोरदार झटका दिया। उनके दोस्त काफी निराश हो गए। लेकिन कहते हैं जिसमें कुछ करने का जज़्बा होता है उसे बुरी स्थितियां आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।
प्रवीण कुमार ने अपनी कोशिश नहीं छोड़ी। अपने ऑफिस के कार्यक्रमों में उन्होंन कई शो किए। यहां बात थोड़ी बनती सी दिखी भी। जुलाई 2009 में प्रवीण कुमार ने पहली बार ओपन माइक में हिस्सा लिया। लेकिन अगले दिन कार्यक्रम के आयोजक ने उन्हें बुलाया और बताया कि कॉमेडी एक सीरियस काम है और चूंकि उनके बोलने का लहजा साउथ इंडियन है ऐसे में स्टैंडअप कॉमेडियन का ख्वाब छोड़ देना चाहिए। प्रवीण कुमार को तो ऐसा लगा मानों पैर के नीचे से ज़मीन खिसक गई। एक पल के लिए निराशा हुई पर उम्मीद ने अब भी साथ नहीं छोड़ा था। सितंबर 2009 में ओपन माइक प्रतियोगिता के लिए वीर दास बैंगलोर आए। प्रवीण कुमार ने वीर दास और संदीप राव से मुलाकात की। इन दोनों ने प्रवीण कुमार का काफी उत्साह बढ़ाया। प्रवीण कुमार के ओपन माइक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और इसके विजेता बने। ये शो प्रवीण कुमार के जीवन का टर्निंग प्वाइंट था।
ओपन माइक प्रतियोगिता की जीत से प्रवीण का उत्साह सातवें आसमान पर था और विश्वास दुनिया को जीत लेने का। लेकिन अब भी बहुत कुछ था जो उनके जिम्मे था। नवंबर 2009 में प्रवीण को स्टैंडअप कॉमेडियन का बतौर पहला कॉरपोरेट शो मिला। शो के लिए बीस मिनट का समय मिला। शुरू के पांच मिनट तक तो ऑडिटोरियम में शांति छाई रही। उसके बाद दर्शकों ने तालियां बजानी शुरू कर दी। प्रवीण को लगा लोगों को उनकी कॉमेडी पसंद आने लगी। पर थोड़ी देर में ही महसूस हुआ कि दर्शक तालियां उन्हें रोकने के लिए बजा रहे हैं। वे दर्शकों की इस प्रतिक्रिया को भी झेलते रहे। लेकिन दर्शक भी कहां चुप बैठने वाले थे। देखते ही देखते दर्शकों ने गुब्बारे फोड़ने शुरू कर दिए। ज़ाहिर है स्टैंडअप कॉमेडी के दौरान ऐसी हरकत का मतलब निकाला जा सकता है। प्रवीण को समझ में आ गया अब आगे क्या करना है। उन्होंने स्टेज बीच में छोड़ दिया और पेमेंट की परवाह किए बिना सीधा बाहर निकल आए। दर्शकों की इस करतूत ने प्रवीण को तोड़ दिया। पूरा दिन काटना मुश्किल हो गया था उनके लिए। आंखों से आंसू निकलते रहे। ऐसे में परिवार और दोस्तों ने प्रवीण कुमार को मानसिक बल दिया। उन्होंने लगातार उत्साह बढ़ाने की कोशिश की।
उत्साह को बटोरकर प्रवीण कुमार ने खुद को फिर से खड़ा करने की कोशिश शुरू की। 2010 में संजय मनकताला और संदीप राव के साथ मिलकर स्टैंडअप कॉमेडियन की एक तिकड़ी बनाई और अलग-अलग शो करना शुरू किया। इनकी इस तिकड़ी में सल यूसुफ ने भी अपना सहयोग दिया और अब ये चार साथी हो चुके थे। इन चारों ने मिलकर स्टैंडअप कॉमेडी में बैंगलोर में एक जगह बनानी शुरू कर दी। लोगों में इनकी पहचान बनने लगी। इनकी कॉमेडी धीरे-धीरे करके लोगों में मशहूर होने लगी। लेकिन इसी दौरान एक और घटना घटी। प्रवीण के एक शो के बाद एक ब्रिटिश शख्स ने आकर कहा कि प्रवीण के पूरे शो के दौरान कही गई एक बात भी समझ में नहीं आई। वजह है प्रवीण का साउथ इंडियन होना। वो ब्रिटिश शख्स कोई और नहीं उस शो का मालिक था। उसने ये भी कहा कि आगे से वो प्रवीण को शो नहीं देगा। बात इतनी बड़ी थी कि प्रवीण को लगा जैसे सिर पर आसमान टूट पड़ा है। अब क्या किया जाए। कहते हैं मारने वाले से बड़ा होता है बचाने वाला। इसी दौरान प्रवीण की मुलाकात हुई मुंबई में अश्विन से। अश्विन ने उन्हें बताया कि स्टैंडअप कॉमेडी के लिए सबसे ज़रूरी बात है कि आप जैसे हैं वैसा ही स्टेज पर दिखें। अश्विन ने बताया कि अगर तुम तमिल हो तो स्टेज पर वो दिखना चाहिए। प्रवीण के जीवन का ये तीसरा बड़ा मोड़ था। अश्विन के इस वक्तव्य ने प्रवीण में कुछ कर गुजरने के लिए नई जान फूंक दी। प्रवीण ने आगे के शो में किया बिलकुल वैसा ही। दर्शकों के सामने खुद के बारे में सबसे पहले बताना करना शुरू कर दिया। इससे दोनों को फायदा हुआ प्रवीण का आत्मविश्वास बढ़ा और दर्शकों को भी मज़ा आने लगा।
नए उत्साह के साथ प्रवीण कुमार और उनके दोस्तों ने ओपन माइक शो बैंगलोर में शुरू किया। अब कहानी बदल गई। लोग कॉमेडी का लुप्फ उठाने लगे और प्रवीण का काम चल निकला। पिछले तीन वर्षों से हर बुधवार को ओपन माइक शो का आयोजन किया जाता है। इसकी बदौलत उनके पास कॉरपोरेट शो की भरमार होने लगी। आलम ये हुआ कि अब प्रवीण कुमार देश के दूसरे हिस्सों में भी लगातार अपनी कॉमेडी का जौहर दिखाने जाते हैं।
साल 2014 की शुरुआत में प्रवीण कुमार ने दो बड़े फैसले किए। पहला तो ये कि उन्होंने द टिकल माइंडेड नाम से एक घंटे का एक शो शुरु कर दिया। और दूसरा ये कि उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर फुल टाइम कॉमेडियन के तौर पर काम शुरु कर दिया। एक घंटे का पहला शो उन्होंने 4 जनवरी 2014 को किया। जिसकी अपार सफलता ने उनमें नया जोश भर दिया। अब क्या था। पूरा समय सिर्फ कॉमेडी के लिए था प्रवीण के पास। उन्होंने अब थीमबेस्ड शो करने शुरू कर दिए। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने ओपन माइक का शो करना जारी रखा। प्रवीण कुमार का मानना है कि अच्छा कॉमेडियन बनने के लिए ओपन माइक का हिस्सा बने रहना ज़रूरी है।
फिलहाल बैंगलोर में ओपन माइक के हफ्ते में दिन तीन शो होते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बैंगलोर में स्टैंडअप कॉमेडी का क्रेज़ किस कदर है। इसमें हर उम्र के दर्शक पूरे उत्साह से शामिल होते हैं।
प्रवीण कुमार का मानना है कि बहुत सारे काम करने से अच्छा है कि वो करें जिसे आप बखूबी कर सकते हैं। उनका मानना है कि दिल की आवाज़ सुनो और दिमाग के साथ तालमेल बिठाकर उसे सही रूप दो। दुनिया में आसान कुछ भी नहीं है पर ज़िंदगी को अपने तरीके से जीने के लिए उस दिशा में काफी मेहनत की ज़रूरत है। ये तय है कि सही दिशा में ईमानदार कोशिशें ही कामयाबी का रास्ता तय कराती हैं।