खुद संघर्ष कर 12वीं तक पढ़े, अब शिक्षक बन दूसरों को पढ़ा रहे हैं रैनखोल के राजकुमार
राजकुमार ने घुमंतु जनजाति का मिथक तोड़ा...
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
पहाड़ी कोरवा जनजाति के कई लोग अब तक शिक्षा से वंचित हैं। इसी वजह से कोरवा परिवार जीवन बड़ा कष्ट में गुजरता है। इसी मिथक को तोड़ते हुए रैनखोल के राजकुमार ने चार साल पहले 2014 में जीव विज्ञान से हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास की। अब खुद शिक्षक बनकर दूसरों को पढ़ा रहे हैं।
राजकुमार की इस सफलता से पहाड़ी कोरवा समाज भी प्रेरित हुआ। पहाड़ पर बसे रैनखोल में सरकारी स्कूल खुल गए। बच्चे पढ़ने लगे। सरकार ने पहले सौर ऊर्जा से संचालित संयंत्र लगाए थे।
मुख्यधारा से कटे इस समाज के लिए राजकुमार उम्मीद की किरण से कम नहीं। उनसे प्रेरित होकर समाज के दूसरे परिवार भी अपने बच्चों को स्कूलों में दाखिल कर रहे हैं। समाज में एक नई क्रांति आई है। आपको बता दें कि जिले में घुमंतु वर्ग की संख्या आबादी की दो फीसदी ही है। इसमें 250 से 300 पहाड़ी कोरबा जनजाति के लोग हैं। ये मौसम के अनुकूल अपने जीविकोपार्जन के लिए स्थान बदलते रहते हैं। पहाड़ी कोरबा जनजाति के कई लोग अब तक शिक्षा से वंचित हैं। इसी वजह से कोरबा परिवार जीवन बड़ा कष्ट में गुजरता है। इसी मिथक को तोड़ते हुए रैनखोल के राजकुमार ने चार साल पहले 2014 में जीव विज्ञान से हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास की। अब खुद शिक्षक बनकर दूसरों को पढ़ा रहे हैं। बारहवीं की परीक्षा देने के लिए उसे कोरबा जिले के बेहरचुआं गांव जाना पड़ता था। रैनखाेल से इसकी दूरी आठ किमी थी। राजकुमार पैदल जाता और परीक्षा देकर उसी रास्ते से लौटता था।
इससे पहले वर्ष 2005 में 5वीं पास करने के बाद 2008 में आठवीं की परीक्षा दिलाई। फिर पारिवारिक कारणों से पढ़ाई में बाधा आई। उसने स्कूल छोड़ दिया। अनुकूल परिस्थितियां बनीं तो दो साल बाद फिर मौका मिला और राजकुमार ने दोबारा पढ़ाई शुरू कर दी। वर्ष 2012 में 10वीं की परीक्षा दिलाई और सफलता प्राप्त की। फिर बायोलॉजी लेकर आगे पढ़ने लगा। उनके पिता जय सिंह तथा माता बैसाखी बाई बहुत खुश हैं। सुविधाहीन क्षेत्र से शिक्षा के प्रति ललक दिखाने वाले राजकुमार को ग्रामवासियों से भी सहयोग मिला। साथ ही कोरबा व जांजगीर-चांपा जिले में पहाड़ी कोरवा जनजाति के उत्थान की दिशा में कार्य कर रहे एनजीओ के अधिकारी आरके शुक्ला ने भी राजकुमार को प्रोत्साहित किया।
शुक्ला ने राजकुमार को शासन की विभिन योजनाओं की जानकारी देते हुए उसका लाभ दिलाने हरसंभव प्रयास किया है। राजकुमार की इस सफलता से पहाड़ी कोरवा समाज की प्रेरित हुआ। पहाड़ पर बसे रैनखोल में सरकारी स्कूल खुल गए। बच्चे पढ़ने लगे। सरकार ने पहले सौर ऊर्जा से संचालित संयंत्र लगाए थे। अब खंभे और ट्रांसफार्मर लगाकर गांव तक बिजली पहुंचाई जा चुकी है। कोरवा पहाड़ी जनजाति के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने लगा है। पहले पहाड़ पार करना मुश्किल होता था और अब आवाजाही आसान हो गई है। गांव में 90 परिवार है और इसमें से 30 फीसदी कोरवा जनजाति के हैं। इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सरकार विभिन्न योजनाएं चला रही हैं। पानी, बिजली, सड़क आदि मूलभूत सुविधाओं के साथ इनके रोजगार के भी प्रबंध किए जा रहे हैं। गांव में चल रहे विकास कार्यों को लेकर सरकारी अफसर लगातार दौरे करते हैं। उन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जा रहा है। ग्रामीणों में इसे लेकर खासा उत्साह है और वे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की तारीफ करते नहीं थकते। कहते हैं कि पहले गांव तक पहुंचना मुश्किल था। सोलर लाइट थी पर जलती नहीं थी, लेकिन सरकार ने इन दोनों व्यवस्थाओं को दुरुस्त कर बेहतर काम किया है।
"ऐसी रोचक और ज़रूरी कहानियां पढ़ने के लिए जायें Chhattisgarh.yourstory.com पर..."
यह भी पढ़ें: मोटराइज्ड ट्रायसायकल ने दी है गैंदराम जैसे कई दिव्यांगों की जिंदगी को नयी रफ्तार