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विकास शाह पर जीतने का जुनून कुछ इस तरह से सवार हुआ कि उन्हें चुनौतियों से प्यार हो गया

दिमाग तेज़ था लेकिन दिलचस्पी पढ़ाई-लिखाई में नहीं खेल-कूद में थी ... दसवीं में जब नंबर कम आये तो अहसास हुआ कि माता-पिता को दुख दिया है ... पछतावा ऐसा हुआ कि खुद को बदलने की ठान ली ... बदलाव भी ऐसा कि सामान्य से मेधावी हो गए ... इसी बदलाव के दौरान दिल-दिमाग पर छाया था जीत का जुनून, जोकि अब तक है बरकरार ... कहानी विकास शाह की है, जिन्होंने कारोबार, रणनीति, नेतृत्व और प्रबंधन में नयी ऊँचाइयाँ प्राप्त कीं, बुलंदियों तक अपनी पहुँच बनाई । 

विकास शाह पर जीतने का जुनून कुछ इस तरह से सवार हुआ कि उन्हें चुनौतियों से प्यार हो गया

Monday June 06, 2016 , 8 min Read

विकास शाह के पिता जम्मू विश्वविद्यालय में विज्ञान-विभाग के डीन थे जबकि उनकी माँ स्कूल चलाती थीं। माता-पिता दोनों अपने ज्ञान और क़ाबिलियत की वजह से जम्मू-कश्मीर में खूब मशहूर थे। विकास शाह की बड़ी बहन भी पढ़ाई-लिखाई में काफी तेज़ थीं, लेकिन विकास शाह की दिलचस्पी पढ़ाई-लिखाई में कम थी। उनका सारा ध्यान एनसीसी, स्काउट एंड गाइड और खेल-कूद जैसे पाठ्येतर गतिविधियों में रहता था। दसवीं की परीक्षा में विकास शाह के नंबर उतने नहीं आये थे, जितने उनके माता-पिता उम्मीद कर रहे थे। उनकी क्लास में 78 बच्चे थे और दसवीं की परीक्षा में उनका रैंक क्लास में 38वाँ था। स्वाभाविक था कि माता-पिता अपने बेटे के इस प्रदर्शन से दुखी हों। इस दुख का अहसास विकास को भी हुआ। उन्हें लगा कि उन्होंने अपने माता-पिता के साथ न्याय नहीं किया है, अपने माता-पिता की शोहरत के साथ भी नाइंसाफी की है। इस आत्म-बोध के बाद विकास शाह ने खुद को बदलने की ऐसी ठानी कि उन्होंने हर परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया और परिश्रमी और बुद्धिमान छात्र कहलाये।

विकास शाह ने बताया,"चूँकि माता-पिता दोनों टीचर थे, घर में अनुशासन बहुत था। मेरा फोकस पढ़ाई पर कम था और दूसरे कामों में ज्यादा। ऐसा नहीं था कि मेरा दिमाग़ तेज़ नहीं था और मैं पढ़ नहीं सकता था, लेकिन मेरी दिलचस्पी खेलने-कूदने और घूमने-फिरने में ज्यादा थी। मैं सुबह को घर से निकलता तो रात को आठ बजे वापस आता था। मेरे पेरेंट्स ने मुझे कभी इस बात के लिए नहीं डांटा कि मेरे नंबर कम आये हैं। ये सवाल भी नहीं पूछा कि तुम अपनी बहन की तरह ब्रिलियंट स्टूडेंट क्यों नहीं हो ? लेकिन जब दसवीं में मेरे नंबर कम आये तब मुझे बहुत शर्मिन्दिगी हुई। मुझे अहसास हुआ कि शिक्षा के क्षेत्र में जिनका इतना नाम है, उन्हें अपने बेटे के खराब नंबरों पर कितना दुख हुआ होगा। तभी मैंने फैसला कर लिया था कि मैं फिर कभी अपने माता-पिता को निराश नहीं करूंगा।"

और, विकास शाह ने किया भी ऐसे ही। दसवीं के बाद उनकी पहली प्राथमिकता पढ़ाई-लिखाई हो गयी और खेल-कूद पीछे चले गए। नतीजा ये हुआ कि वे एक सामान्य छात्र से मेधावी छात्र बन गए। विकास शाह ने बैंगलोर के सर विश्वेश्वरय्या इंजीनियरिंग कॉलेज से डिस्टिंक्शन में बीटेक की डिग्री हासिल की। इसके बाद जब उन्होंने जम्मू विश्वविद्यालय से एमबीए किया तब उनका रेंक तीसरा था। विकास शाह ने कहा,"मेरे पास दिमाग़ था। पहले मैंने उसे पढ़ाई-लिखाई में अप्लाई नहीं किया था, जब अप्लाई किया तो नतीजे अच्छे आये। इस बदलाव के दौरान मुझपर एक जुनून सवार हो गया था - जीतने का जूनून। ये जुनून हमेशा मेरे साथ रहा और अब भी है।"

मज़ेदार बात ये भी है कि अपने कज़िन्स की देखा-देखी विकास शाह ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई का मन बनाया था। उन्होंने कहा,"मुझे मालूम ही नहीं था कि इंजीनियरिंग होता क्या है।मेरे सभी बारह कजिन इंजीनियर थे, मैंने भी उसी कड़ी को आगे बढ़ाया। परिवार में सब इंजीनियर थे तो मैं भी बन गया। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते समय भी मैं अपने आप से पूछता था - मैं ये क्यों कर रहा हूँ ?"

विकास शाह ये मानते हैं कि वे लोग बहुत खुशनसीब हैं, जिन्हें जिस काम से प्यार है और वो उसी काम में निपुण भी हैं। वे सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली का उदाहरण देते हुए कहते है,"दोनों में क्रिकेट के लिए जुनून है और दोनों क्रिकेट खेलने में महारत रखते हैं।" विकास शाह ने आगे कहा,"नब्बे फीसदी लोग ऐसे हैं, जिनका प्यार कुछ और है और वे किसी और काम को बढ़िया तरीके से करते हैं। मेरे हिसाब से लोगों को वो करना चाहिए जिसमें वो अच्छे हैं।" एक सवाल के जवाब में विकास शाह ने कहा,"मैं पिछले बीस-बाईस साल से काम कर रहा हूँ और किसी भी दिन मैं बेमन से ऑफिस नहीं गया। मुझे अपने काम से हमेशा मुहब्बत रही है।"

नौकरीपेशा ज़िंदगी में आयी चुनौतियों के बारे में जानकारी देते हुए विकास शाह ने कहा,"हर दिन एक नयी चुनौती होती है, कुछ देखने की, कुछ समझने की और कुछ करने की। बिज़नेस के प्रति मेरे अंदर एक अलग-सा प्यार छिपा है। मुझे कारोबार करना बहुत पसंद है। अगर कोई मुझसे ये कह देता है कि ये काम नहीं हो सकता, तो मैं उसे एक चुनौती की तरह लेता हूँ और तब तक उसे नहीं छोड़ता, जब तक कामयाब न हो जाऊं। मुझे चुनौतियां बहुत पसंद हैं।"

विकास शाह को इस बात का बड़ा मलाल है कि वे टाटा टेलीसर्विसेस को घाटे से नहीं उबार पाये। वे इसे अपनी नाकामी मानने से ज़रा भी नहीं हिचकते हैं, बल्कि वे इसे अपने जीवन की सबसे बड़ी नाकामी मानते हैं। वे कहते हैं,"मैंने उस कंपनी में दस साल काम किया। मैंने अपना तन-मन-धन सब लगा दिया था उसमें। एक मायने में अकेले दम पर मैंने कंपनी को खड़ा किया था। मैं कंपनी के सबसे पुराने कर्मियों में एक था। मेरा एम्प्लॉइ नंबर 31 था और जब मैंने इस कंपनी को छोड़ा था तो 12700 नंबर चल रहा था। मुझे बहुत दुख हुआ कम्पनी छोड़ते हुए। वैसे मैं एक ही बिज़नेस यूनिट चला रहा था, लेकिन कंपनी को मुनाफा नहीं हो रहा था। मैंने जब कंपनी ज्वाइन की थी, तब कंपनी का टर्नओवर हर महीने डेढ़ करोड़ रुपये था और जब मैंने कंपनी छोड़ी तब यही टर्नओवर बढ़कर 175 करोड़ रुपये महीना हो गया। बावजूद इसके कंपनी ने मुनाफा नहीं कमाया और मुझे लगा कि मैं एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहा हूँ। इसी लिए मैंने नौकरी छोड़ दी।"

उन दिनों को अपने जीवन में सबसे बड़ी मुश्किलों वाले दिन बताते हुए विकास शाह ने कहा,"नौकरी छोड़ने के बाद मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं। मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा था। मानसिक रूप से मैं बहुत परेशान हो गया था। मैंने कंपनी में कई लोगों को नौकरी पर लगाया था। उन्हें ट्रेनिंग दिलवाई थी। मेरे नौकरी छोड़ने के बाद मुझे लगा कि इनकी ज़िम्मेदारी भी मेरी ही है। मैं उनका लीडर था। मैंने उन्हें विज़न दिया था, सपने दिखाए थे। मेरी ज़िम्मेदारी थी उन लोगों के सपनों को साकार करना। मैंने इन लोगों को सेटल करने के बाद ही दूसरी नौकरी की।"

विकास शाह वाटर हेल्थ इंटरनेशनल के मुख्य संचालन अधिकरी यानी सीओओ हैं। कई भाषाएँ जानते हैं। प्रबंधन के क्षेत्र में हज़ारों लोगों के साथ काम करने का अनुभव रखते हैं। वाटर हेल्थ इंटरनेशनल कंपनी दुनिया के 50 लाख लोगों तक सुरक्षित जल पहुँचाने का रिकार्ड रखती है और आने वाले वर्षो में 10 करोड़ लोगों तक पहुँचने का लक्ष्य है। विकास शाह ने सन 2012 में मैंनेजर ऑफ दि इयर का अवार्ड भी हासिल किया है। इसके अलावा दुनिया के कई सारे पुरस्कार उन्होंने प्राप्त किये हैं, लेकिन काम करते रहना ही उनके लिए सबसे बेहतरीन पुरस्कार है।

विकास शाह वॉटर हेल्थ इंटरनेशनल में अपनी नौकरी को भी चुनौतियों भरा मानते हैं। वे कहते हैं,"जब मैंने टेलीकॉम इंडस्ट्री ज्वाइन की थी तब वो तरक्की पर थी। मैं सही समय पर सही जगह था, लेकिन वॉटर हेल्थ के मामले में ऐसा नहीं था। मैं सही जगह तो था, लेकिन सही समय पर नहीं था। कम से कम कीमत पर पीने का साफ़ पानी लोगों तक पहुंचाने के इस कारोबार में ज्यादा रेवेन्यू नहीं है, लेकिन यही मेरी चुनौती भी है। मैंने चुनौती को स्वीकार किया है और पूरे मन से काम कर रहा हूँ। मेरे जीवन की अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी मैंने वॉटर हेल्थ में ही हासिल की है। और भी बहुत काम करने हैं। ज्यादा से ज्यादा ज़रूरतमंद लोगों तक पीने का साफ़ पानी न्यूनतम संभव कीमत पर पहुंचाना है।"

चुनौतियाँ बहुत हैं, लक्ष्य बड़े हैं - इन सब के बीच खुद को तन्दुरुस्त कैसे रखते हैं और तनाव से बचने के लिए क्या करते हैं ? इस सवाल के जवाब में विकास शाह ने कहा,"मैं बचपन से ही एथलिट था। जिम्नास्ट था। दिन-रात खेलता-कूदता था, लेकिन करीब डेढ़ साल पहले मैंने अपने आपको आईने में देखा तो हैरानी हुई। मैं मोटा हो गया था। इसके बाद मैंने फैसला कर लिया हर दिन कसरत करने का। अब मैं हर दिन दो घण्टे कठोर कसरत करता हूँ। मैंने घर में ही अपना जिम खोल लिया है। इस कसरत की वजह से दिनभर मैं चुस्त रहता हूँ।" उन्होंने इसी सन्दर्भ में आगे कहा,"तनावमुक्त रहने के लिए मैं कुछ समय अपनी छोटी बेटी के साथ बीतता हूँ। एक मुहावरा है - चाइल्ड इज़ दि फादर ऑफ़ मैन, मैं अपनी बेटी से भी नयी-नयी बातें सीखता हूँ।"

नयी पीढ़ी के उद्यमियों को सलाह देते हुए विकास शाह ने कहा,"लक्ष्य से फोकस नहीं डगमगाना चाहिए। जिस तरह से अर्जुन ने मछली की आँख पर फोकस किया था ठीक उसी तरह फोकस करना चाहिए। आगे बढ़ने और सुधार करने की गुंजाइश हमेशा रहती है, इसी वजह से कभी रुकना नहीं चाहिए। रुकने का मतलब खत्म होना है ।"