सीवर के पानी को पीने लायक बना रहा बेंगलुरु का यह वैज्ञानिक, 30 पेटेन्ट्स पर है कब्जा
बेंगलुरू के डॉ. विजय कुमार ने इजाद की एक ऐसी तकनीक, जो बिना केमिकल्स की मदद के पानी को बनायेगी फिर से इस्तेमाल में लाने योग्य...
बेंगलुरू के डॉ. विजय कुमार ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जो बिना केमिकल्स, पानी को फिर से इस्तेमाल में लाने योग्य बना सकती है। डॉ. विजय की तकनीक में पानी के ट्रीटमेंट के लिए केमिकल्स नहीं बिजली का इस्तेमाल होता है। उनकी यह तकनीक ओमान तक पहुंच चुकी है। डॉ. कुमार के नाम पर 30 से ज्यादा पेटेन्ट्स हैं। हाल ही में डॉ. कुमार ने कीमोथेरपी के साइडइफेक्ट्स को कम करने के एक ड्रग डिलिवरी सिस्टम के पेटेन्ट के लिए भी दावा किया है...
डॉ. राजा विजय कुमार की यह तकनीक बेंगलुरु आधारित कंपनी 'डी स्कालेनी' में विकसित की गई। इस तकनीक में एक खास तरह के रिऐक्टर का इस्तेमाल होता है, जिसे फाइन पार्टिकल शॉर्टवेव थ्रॉमबॉटिक ऐगलोमरेशन रिऐक्टर (FPSTAR) कहा जाता है।
तमिलनाडु के इरोड में कावेरी नदी को औद्योगिक इकाईयों के गंदे पानी से सुरक्षित रखने के लिए राज्य सरकार ने इस तकनीक को अपनाया है। कंपनी की ऐक्वार्टन बूमट्यूब रेजोनेटर की मदद से दो यूनिट्स लगाने की योजना है।
वर्तमान समय में पीने के पानी की समस्या, वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय बना हुआ है। देश के विकास में सहयोगी औद्योगिक इकाईयां, पीने के पानी स्त्रोतों के लिए खतरा बनी हुई हैं। ऐसे में बेंगलुरु के एक वैज्ञानिक डॉ. राजा विजय कुमार अपनी नायाब तकनीक के जरिए सीवर के पानी को पीने योग्य बना रहे हैं और ऐसा करके वह देश और प्रकृति दोनों के प्रति अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं।
उनकी यह तकनीक ओमान तक पहुंच चुकी है। विजय कुमार द्वारा इजात किए गए बूम ट्यूब रेजोनेटर (मेड इन इंडिया) का सेटअप ओमान में भी लगाया गया है। डॉ. कुमार की इस बेहतरीन तकनीक की मदद से न सिर्फ सीवर के पानी से पीने योग्य पानी निकाला जाता है, बल्कि इस प्रक्रिया से बतौर बायप्रोडक्ट अच्छे फर्टिलाइजर्स (उर्वरक) भी मिलते हैं।
डॉ. कुमार के नाम पर 30 से ज्यादा पेटेन्ट्स हैं। हाल ही में डॉ. कुमार ने कीमोथेरपी के साइडइफेक्ट्स को कम करने के एक ड्रग डिलिवरी सिस्टम के पेटेन्ट के लिए भी दावा किया है। कुमार का कहना है कि उनका यह सिस्टम सिर्फ कैंसर सेल्स को टारगेट करेगा और हेल्दी सेल्स कीमोथेरपी के प्रभाव से सुरक्षित रहेंगी।
बिना केमिकल्स, साफ हो रहा पानी
एक सवाल यह भी उठता है कि यदि गंदे पानी को साफ और इस्तेमाल के लायक बनाने के लिए केमिकल्स का इस्तेमाल हो तो क्या पीने के इस्तेमाल के लिए ऐसा पानी सुरक्षित होगा? इसका हल ढूंढते हुए विजय कुमार ने ऐसी तकनीक विकसित की, जो बिना केमिकल्स, पानी को फिर से इस्तेमाल में लाने योग्य बना सकती है। डॉ. विजय की तकनीक में पानी के ट्रीटमेंट के लिए केमिकल्स नहीं बिजली का इस्तेमाल होता है।
डॉ. कुमार 8 सालों के लंबे शोध के बाद इस तकनीक को विकसित कर सके और उन्होंने पानी के प्योरीफिकेशन का यह नायाब तरीका निकाला। यह तकनीक बेंगलुरु आधारित कंपनी 'डी स्कालेनी' में विकसित की गई। इस तकनीक में एक खास तरह के रिऐक्टर का इस्तेमाल होता है, जिसे फाइन पार्टिकल शॉर्टवेव थ्रॉमबॉटिक ऐगलोमरेशन रिऐक्टर (FPSTAR) कहा जाता है। इसकी मदद से सीवर के पानी को भी पीने योग्य बनाया जा सकता है।
खून जमने की प्रक्रिया से प्रेरित
डॉ. कुमार के रिश्तेदार शैलेश नायर के मारफत जानकारी मिली कि इस तकनीक की अवधारणा हमारे शरीर की ही एक प्रक्रिया से ली गई है। इस रिऐक्टर की तकनीक मानव शरीर में खून जमने की प्रक्रिया से प्रेरित है। इसमें पूरी तरह से ऑटोमैटिक, कम्प्यूटर से संचालित होने वाला सिस्टम है, जिसमें कई चरण हैं। वाइब्रेशन के जरिए छोटी तरंगे पैदा करके गंदगी को दूर किया जाता है। इस तकनीक में किसी केमिकल का नहीं बल्कि बिजली का इस्तेमाल होता है।
डॉ. कुमार बताते हैं कि पीरियॉडिक साइकल में हर एलिमेंट की अपनी एक निर्धारित फ्रीक्वेंसी होती है। रेजोनेटिंग फ्रीक्वेंसी पर अगर हिट किया जाए तो इन एलिमेंट्स के पार्टिकल अपना चार्ज छोड़ देते हैं। इसको आधार बनाकर ही अशुद्धियों या गंदगी को अलग कर लिया जाता है। ये अशुद्धियां हाइड्रोफोबिक होती हैं और इन्हें फिल्टर्स की सहायता से अलग किया जा सकता है। कुमार कहते हैं कि जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं, वह संक्रमित नहीं होता। यही पानी तब खराब हो जाता है, जब इसमें मल-मूत्र या औद्योगिक गंदगियां आदि मिल जाती हैं। साफ पानी का कुछ हिस्सा गंदगी के साथ मिल जाता है और कुछ रह जाता है।
बेहद छोटे पार्टिकल्स या कण (नैनोमीटर्स में) इलेक्ट्रोस्टैटिक चार्ज की वजह से लगातार गति में रहते हैं और इस वजह से ही वह एक-दूसरे को रिपेल करते हैं। एक बार जब उनका चार्ज खत्म हो जाता है तो साफ पार्टिकल्स एक-दूसरे से टकराना शुरू कर देते हैं और वैंडर वॉल फोर्सेस के प्रभाव में जुड़ जाते हैं। बूम ट्यूब रेजोनेटर हाई इन्टेनसिटी वाली शॉर्टवेव इस्तेमाल करता है। जब संक्रमित पानी एक खास रेजोनेटिंग कॉलम से गुजरता है तो यह साफ पार्टिकल्स को रेजोनेट करता है। इस वजह से ये अच्छे पार्टिकल्स इलेक्ट्रॉन्स छोड़ देते हैं और इनका चार्ज खत्म हो जाता है।
कब हुई शुरूआत
इस तकनीक को बतौर पायलट प्रोजेक्ट 2014 में कर्नाटक के कोडगु जिले में आजमाया गया। इस तकनीक की मदद से 25,000 लीटर संक्रमित कॉफी-वॉश वॉटर को फिल्टर किया जाता था। धीरे-धीरे अब इसे वॉटर ट्रीटमेंट सेक्टर में स्थापित किया जा रहा है और इसे अपनाने के लिए सरकारी इकाईयों से भी संपर्क किया जा रहा है। तमिलनाडु के इरोड में कावेरी नदी को औद्योगिक इकाईयों के गंदे पानी से सुरक्षित रखने के लिए राज्य सरकार ने इस तकनीक को अपनाया है। कंपनी की ऐक्वार्टन बूमट्यूब रेजोनेटर की मदद से दो यूनिट्स लगाने की योजना है। हर यूनिट में रोज 1.2 लाख लीटर पानी को शुद्ध करने की क्षमता होगी।
वर्ल्ड डिवेलपमेंट रिपोर्ट (WDR) 2003 के मुताबिक, विकासशील देशों में 70 प्रतिशत औद्योगिक गंदगी को बिना किसी ट्रीटमेंट के नदियों आदि में छोड़ दिया जाता है और इस वजह से पीने और घरेलू कामों में इस्तेमाल होने वाला पानी भी प्रद्रूषित होता है। हालांकि, ट्रीटमेंट की कई तकनीक विकसित हो चुकी हैं, लेकिन फिर भी लगभग 40-50 प्रतिशत गंदा पानी साफ नहीं किया जा रहा। हालिया दौर में जब पीने के पानी की इतनी समस्या है और महाराष्ट्र के लातूर जैसी जगहों के बारे में हम जानते ही हैं, पानी की हर एक बूंद सच में अमृत के ही समान है।
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