बार-बार अस्पताल जाने से बचें, घर पर ही केयर करेगा 'केयर एट माई होम'...
सुस्त स्वास्थ्य सेवाओं के कारण एक हेल्थकेयर (स्वास्थ्य सेवा) के शुरू होने की कहानी
भारत में होम केयर इंडस्ट्री की कीमत लगभग 2 से 4 बिलियन डॉलर की है, यह सालाना 25% से बढ़ रही है। 2025 तक अनुमान है कि 20% आबादी वरिष्ठ नागरिकों की होगी। उनमें से 70% वे लोग होंगे जिनकी उम्र 65 साल से अधिक होगी और उन्हें जीवन में एक बार लम्बी स्वास्थ्य सेवा की जरूरत होगी । ऐसे में इंडस्ट्री के अव्यवस्थित और बिखरे हुए होने के कारण, यहाँ पहले से कई गुना बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने वालों की सख्त है।
सितंबर 2013 में शुरू हुई “केयर एट माई होम” सेवा ने, डिस्चार्जड रोगियों को घर में ही स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने का एक विश्वसनीय कदम रखा है। केयर एट माई होम ने पहला कदम अपने उत्पाद “इन्चार्जर” के रूप में रखा। “इन्चार्जर” बदलाव और होम केयर मॉडल है, जिसका उद्देश्य सेवाओं को अस्पताल से घर सरलता से उपलब्ध कराना है, जिससे अस्पताल में रोगियों के दुबारा भर्ती होने के मामलों को कम किया जा सके। केयर एट माई होम फिजियोथेरपी, स्पीच थेरपी के साथ नर्सिंग की जरूरतों को उपलब्ध कराती है।
केयर एट माई होम का प्राथमिक लक्ष्य, घर पर रह रहे रोगी, किसी बड़ी बीमारी या सर्जरी के बाद अस्पताल से डिस्चार्ज हुए रोगी और रोजमर्रा के जीवन में स्वास्थ्य परेशानियों का सामने करने वाले वरिष्ठ नागरिक हैं। पिछले 10 महीनो में केयर एट माई होम ने 100 से भी ज्यादा ग्राहकों को हेल्थ केयर की सुविधायें दी हैं।
अलग प्रयास
इस समय परामर्श और शिक्षा के पहलुओं को होम केयर सेवा में, पूरी तरह से अनदेखा किया जा रहा है। केयर एट माई होम, “इन्चार्जर” के द्वारा इसकी कमी को पूरा करता है। यह संस्था इस समय गम्भीर हालत से गुज़र रहे रोगियों से बात करने की कोशिश कर रहे हैं, जो जल्द ही अस्तपाल से डिस्चार्ज होने वाले हैं।
इलाज और सर्जरी पर ही विशेष ध्यान देने से वैश्विक स्तर पर पुनर्वास क्षेत्र को पीछे छोड़ दिया है। ऐसा लगता है कि घरेलू सेवा देने वालों को कोई तकनीक सिखाने का कोई जरिया ही नहीं है। मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे देने के बाद, उसे और उसके परिवार को उनके हालात पर छोड़ दिया जाना, मरीज के दुबारा ठीक होने से जुड़ी बड़ी परेशानी रही है।
6 महीने बहुत से घरेलू देखभाल मॉडल (होम केयर मॉडल) को पढ़ने पर पता चला कि दूसरे देशों में इकोसिस्टम और संक्रमण से बचाव के चलते, बड़े जोखिम वाले मामलों में अस्पताल में दुबारा भर्ती होने के मामले 20% कम हुए हैं।
“विकासशील देशों ने इस तरह के मॉडल को अपनाकर करोड़ों रूपये बचाए हैं।”
टीम
सीएएमएच के प्रमुख डॉ.युवराज सिंह और प्रणव शिरके हैं। डॉ.युवराज सिंह फिजियोथेरेपिस्ट हैं जबकि प्रणव शिरके इंजीनियरिंग और मैनजेमेंट बैकग्राउंड से आते हैं। इनका संगठन बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने वाले समर्पित पेशेवरों से मजबूत बना है।
“हमारे पास युवा और प्रतिभाशाली केयर मैनेजर्स, फिजियोथेरेपिस्टस, स्पीच थेरेपिस्टस और हेल्थ अटेंडेंटस की टीम हैं, इस टीम ने होम केयर की जरूरतों से जुड़ी शिक्षा प्राप्त की है।”
इस इंडस्ट्री से मिले अनुभव को बताते हुए डॉ.सिंह कहते हैं कि ग्लैमर से दूर दरअसल उद्यमिता तनावपूर्ण होने के साथ रोमांचक भी है। चंद लोग ही इस तरह से जीवन का चाव ले पाते हैं। लगातार कुछ नया करना बहुत जरूरी है। शिरके का मानना है कि शुरुआत में धैर्य होना बहुत जरूरी है, चीज़ें विकसित और व्यवहार में आने के लिए समय लेती हैं।
“ये जरुरी नहीं है कि जो हम तय करे वो सब संभव हो जाए। सह-संथापक के रूप में, यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी प्रेरणा का स्तर बनाये रखें जो कि आसान नहीं है।
बढ़ते कदम
जल्द ही सीएएमएच मुंबई से किसी हॉस्पिटल्स के साथ साझेदारी की उम्मीद कर रहा है। साथ ही एक नई मोबाइल एप्प के द्वारा दुनिया भर के मरीजों को रेहेब्लीटेशन की जरूरतों के बारे में बताया जाएगा।
सीएएमएच मजबूरी के कारण स्कूल छोड़ चुकी लड़कियों को आजीविका कमाने की शिक्षा भी देता है। यह युवा लड़कियां आम तौर पर सामजिक व आर्थिक क्षेत्र में निचले तबके से आती हैं, और इनके पास बहुत कम मौके होते हैं। यहाँ तीन महीनों के दौरान इन्हें मानव शरीर रचना, स्वच्छता, व्यक्तिगत देखभाल और संचार बेहतर करने के बारे में शिक्षा दी जाती है, इससे वे हेल्थ अटेंडेंटस बनने के लिए तैयार हो जाती है। इस कार्यक्रम में मिली 20 सफलताओं के साथ सीएएमएच अब तीसरे बैच के छात्रों को प्रशिक्षण दे रहा है।
इसके आलावा 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के स्वास्थ्य, फिटनेस और अभ्यास के कार्यक्रम भी किये गए हैं।
सीएएमएच का घरेलू देखभाल को लेकर समग्र और कल्याण आधारित नज़रिया है। सीएएमएच के लोगों को उनकी रेकोव्री में मदद देने की प्रेरणा व्यक्तिगत अनुभवों से आती है। डॉ.सिंह के लिए, उनकी प्रेरणा उनके दोस्त रहे, जिन्होंने अपने पिता को खो दिया। एक बड़े दिल एक दौरे के बाद उनको खाना निगलने में दिक्कत थी, जिस कारण उन्हें नसो-गैस्ट्रिक फीडिंग ट्यूब पर निर्भर रहना पड़ा।
डॉ. सिंह कहते हैं कि “किसी ने भी उन्हें यह नहीं बताया कि रोगी को घर पर खाना खिलाते समय कम से कम 45 डिग्री पर होना चाहिए।l घर पर वे उन्हें बिस्तर पर सीधा लिटाकर खिलाते थे, जिसके कारण फेफड़ो में इन्फेक्शन कि सम्भावना बढ़ गयी।
डॉ. सिंह गुस्सा जताते हुए कहते हैं, कि इस तरह डिस्चार्ज के बाद देखभाल की कोई प्रकिया ना होने के कारण उनकी ज़िन्दगी खोने लगी और फिर इस अनुभव ने मेरे लिए काम किया।
शिरके के लिए उन रोगियों कि कहानियां प्रेरणा बनी, जिनके मामलों में सर्जरी तो सफलतापूर्वक होती है लेकिन घर सही देखभाल ना होने के कारण, रोगी की हालत बिगड़ जाती है और कई मामलों में मौत भी हो जाती है।
बड़ी चुनौतीयों के साथ बड़ी समस्याएं
डॉ. सिंह के लिए सबसे बड़ी चुनौती पूँजी की थी, जिसके चलते वह पार्ट टाइम फिजियोथेरेपी अभ्यास खर्चे निकालने के लिए कर रहे थे। अपनी अच्छी खासी जॉब को छोड़ कर एक नई संस्था शुरू करना, वो भी तब जब पत्नी को बच्चा होने वाला हो, बड़े हिम्मत का काम है। ऊपर से हेल्थकेयर के क्षेत्र में शुरुआत के लिए जानकारियों की भी कमी है। लेकिन लक्ष्य मुश्किलों को पार कर के ही मिलते हैं।
डॉ. सिंह कहते हैं कि केयर एट माय होम और प्रैक्टिस के चलते, उनके लिए बेटी अनीशा के लिए समय निकाल पाना बड़ा ही मुश्किल हो गया था।
दूसरी तरफ शिरके कहते हैं कि रणनीति बनाने में बाहर से ही चीज़ों को देखा जाना और रणनीति लागू करते हुए छोटी से छोटी बात पर ध्यान देना, एक ही समय में यह दोनों कार्य दिलचस्प चुनौती है।
डॉ. सिंह “किसी चीज के लिए अच्छी सैलरी वाली जॉब छोड़ना मेरे लिए अभी तक का सबसे बड़ा जोख़िम रहा है। वैसे भी हेल्थकेयर मेरे लिए अपरिचित विषय है जिसका मतलब कि मुझे अभी बहुत कुछ हेल्थकेयर इकोसिस्टम के बारे में जानना है और अपना रास्ता ढूंढना है।
“यह एक ऐसा खुश कर देने वाला अनुभव है जिसे बयां नहीं किया जा सकता”