तय होगी पार्टियों को मिलने वाली कर राहत की सीमा
अब लगेगी चुनाव नहीं लड़ने वाले संगठनों द्वारा धन शोधन पर रोक।
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि सरकार कर राहत का लाभ ले रहे राजनीतिक दलों के लिए एक सीमा तय करने की योजना पर विचाार कर रही है, ताकि चुनाव नहीं लड़ने वाले ऐसे संगठनों द्वारा धन शोधन पर रोक लगाई जा सके। उन्होंने कहा कि राजस्व सचिव से कहा गया है कि इस संबंध में आयी चुनाव आयोग की सिफारिशों के सन्दर्भ में इस मुद्दे पर गौर किया जाए।
जेटली की टाइम्स नाउ पर की गई यह टिप्पणी काफी महत्व रखती है, क्योंकि चुनाव आयोग सरकार को कानूनों में संशोधन कर चुनाव नहीं लड़ने तथा लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में जीत नहीं दर्ज करने वाली पार्टियों को मिलने वाली कर राहत पर रोक लगाने की सिफारिश की है।
आयोग ने सरकार से राजनीतिक दलों को मिलने वाले 2000 रूपये से अधिक के गुप्त चंदे पर भी रोक लगाने पर विचार करने को कहा है।
वित्त मंत्री ने कहा, ‘मैं बता सकता हूं कि पहली बात यह है कि परोक्ष तौर पर दिये चंदे को चुनाव आयोग ने गुप्त कहा है तथा दूसरी बात राजनीतिक दलों को मिलने वाली छूट है। 40-50-60 राजनीतिक दल हैं जो केन्द्र एवं राज्यों में प्रभावी रूप से चुनाव लड़ते हैं। आपके पास बड़ी संख्या में ऐसे राजनीतिक दल हैं जो चुनाव लड़ने नहीं बल्कि कर छूट हासिल करने के लिए पंजीकृत हुए हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इस पहलू से आसानी से निबटा जा सकता है। मैंने पहले ही राजस्व सचिव से इस बारे में गौर करने के लिए कह दिया था। लिहाजा हमें एक सीमा अर्हता तय करनी होगा ताकि हम ऐसे राजनीतिक दलों को खत्म कर सकें जो वास्तविक राजनीतिक दल न होकर केवल धन परिवर्तन के लिए बनाए गए हैं।’
साथ ही वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बैंकों को कारोबार करने तथा चुनौतियों से निपटने के लिये ‘लीक से हटकर’ सोचने को कहा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वहीं सरकार से अधिक पूंजी समर्थन और वरिष्ठ नागरिकों द्वारा मियादी जमा के रूप में रखी जाने वाली राशि पर कर प्रोत्साहन दिये जाने की मांग की है। वित्त मंत्री अरूण जेटली के साथ बजट पूर्व बैठक में बैंकों ने एनपीए प्रावधान के लिये पूर्ण रूप से कर छूट की मांग की। उनका कहना है कि उनके लाभ पर असर पड़ा है, अत: कर छूट मिलनी चाहिए। साथ ही उन्होंने उन बैंकों के लिये जिनकी देश भर में शाखाएं हैं, जीएसटी पंजीकरण के लिये केंद्रीय रजिस्ट्री की मांग की है। जेटली ने बैठक के दौरान कहा, ‘मौजूदा वित्त वर्ष आम वर्ष की तरह नहीं रहा, क्योंकि इस दौरान सुधारों से जुड़े कई बड़े फैसले किये गये। कई कदम उठाने की जरूरत है। इसमें सरकार क्या कर सकती है, बैंक क्या कर सकता है, इस बारे में लीक से हटकर सोचने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि बैंक अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और जहां तक संरचनात्मक बदलाव का सवाल है, उन्हें कोई गंभीर चुनौती नहीं दिखती।
उधर दूसरी तरफ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कहा है, कि 'चालू वित्त वर्ष के साथ अगले वित्त वर्ष 2017-18 में पूंजी डाले जाने की जरूरत है।' नोटबंदी के बाद बैंकों में नकदी सुधरी है। इससे बचत जमा दरों पर प्रभाव पड़ सकता है। इससे वरिष्ठ नागरिकों पर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि उनकी आय प्रभावित होगी। इसीलिए उन्हें आयकर कानून के तहत कुछ छूट दिये जाने की आवश्यकता है ताकि उन्हें अपनी जमाओं पर थोड़ी बेहतर आय प्राप्त हो सके।’ डिजिटल लेन-देन के लिये प्रोत्साहन की वकालत करते हुए बैंकों ने बैंक प्रतिनिधि लेन-देन को सेवा कर से छूट दिये जाने का सुझाव दिया।
नोटबंदी के बारे में गांवों में माहौल कुल मिलाकर सकारात्मक है।
साथ ही नोटबंदी की वजह से अस्थायी रूप से बैंकों का कारोबार प्रभावित हुआ है। ऐसे में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने सरकार से अधिक पूंजी निवेश मांगा है। सूत्रों का कहना है कि रिजर्व बैंक भी उनके इस विचार से सहमत है। वित्त मंत्री अरूण जेटली के साथ बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों के प्रमुखों की बजट पूर्व बैठक में अधिक पूंजी निवेश के मुद्दे पर चर्चा हुई। सरकार ने पिछले साल इंद्रधनुष रूपरेखा की घोषणा की थी। इसके तहत सरकार चालू वित्त वर्ष में सरकारी बैंकों में 25,000 करोड़ रूपये की पूंजी डालेगी।
सरकार ने इस साल जुलाई में 13 सरकारी बैंकों में 22,915 करोड़ रूपये के पहले चरण के पूंजी निवेश की घोषणा की थी। इसमें से 75 प्रतिशत राशि पहले ही बैंकों को जारी की जा चुकी है।
गौरतलब है, कि 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के बाद से बैंक ऋण गतिविधियों पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। उनका सारा समय पुराने नोटों को बदलने या जमा करने पर ही जा रहा है। इसके अलावा कुछ बैंकों ने डिजिटल लेनदेन के लिए सेवा कर को समाप्त करने की मांग की है, जिससे इसे अधिक आकषर्क बनाया जा सके। साथ ही बैंक चाहते हैं कि जमा गारंटी पर सेवा कर समाप्त किया जाए।