कहानी इंडिगो पेंट्स की: 1 लाख रुपये से इस केमिकल इंजीनियर ने शुरु किया बिजनेस, आज है 625 करोड़ रेवेन्यू वाला ब्रांड, IPO भी रहा सुपरहिट
हेमंत जालान ने सन 2000 में छोटे स्तर से इंडिगो पेंट्स की शुरुआत की थी। पटना में एक छोटी केमिकल यूनिट और जोधपुर में एक इंडस्ट्रियल शेड ने कंपनी की नींव के रूप में कार्य किया। वित्त वर्ष 20 में, कंपनी ने 625 करोड़ रुपये की आमदनी दर्ज की और वित्त वर्ष 2020 में वह शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो गई।
इंडिगो पेंट्स (Indigo Paints) के फाउंडर के रूप में केमिकल इंजीनियर हेमंत जालान के शुरुआती दिन आंत्रप्रेन्योरशिप से पहले के उनके जीवन से काफी अलग थे।
वो पहले वेदांता ग्रुप की स्टरलाइट कंपनी में काम करते थे और कंपनी के तमिलनाडु स्थित कॉपर स्मेलटर यूनिट को हेड करते थे। वहां काम करने के दौरान वो प्राइवेट जेट से बिजनेस मीटिंग अटेंड करने जाते थे। हालांकि अपना बिजनेस शुरू करने के बाद एक शहर से दूसरे शहर में जाने उन्होंने टू-टायर एसी ट्रेनों से यात्राएं की।
हेमंत की कंपनी इंडिगो पेंट्स की सन 2000 में एक लाख रुपये के साथ छोटे स्तर पर शुरुआत हुई थी। उनके शब्दों में कहें तो कंपनी की स्थापना, "एक तरह से बिना किसी पूंजी निवेश" के हुई थी। शुरुआती वर्षों में पटना में एक छोटी केमिकल यूनिट और जोधपुर में एक इंडस्ट्रियल शेड ने कंपनी की नींव के रूप में कार्य किया।
हेमंत ने बताया, “हमने निचले छोर वाले सीमेंट पेंट्स बनाने के साथ शुरुआत की। फिर धीरे-धीरे पानी आधारित पेंट्स के अधिकांश सेगमेंट्स को कवर कर अपने प्रोडक्ट रेंज का विस्तार किया। इसमें बाहरी इमल्शन, अंदरूनी इमल्शन, डिस्टेंपर्स, प्राइमर आदि शामिल थे। हमने देश भर में अपने पहुंच बढ़ानी शुरू की और तेजी से विस्तार किया।”
इनोवेशन में कस्टमर की जरूरतों पर फोकस करके और सेल्स में इंसेंटिव आधारित दृष्टिकोण को अपनाते हुए हेमंत ने इंडिगो को आज देश के सबसे बड़े पेंट ब्रांड्स में से एक बना दिया है।
पुणे मुख्यालय वाली कंपनी ने वित्त वर्ष 2020 में 625 करोड़ की आमदनी दर्ज की, जिसमें से 48 करोड़ रुपये कंपनी का शुद्ध मुनाफा रहा। वर्तमान में, कंपनी के तीन मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज हैं, जो राजस्थान, केरल और तमिलनाडु में स्थित हैं। इंडिगो हाल ही में सार्वजनिक हुई और एनएसई और बीएसई में सूचीबद्ध हैं।
YourStory को दिए एक इंटरव्यू में हेमंत ने बताया कि कि कैसे उन्होंने अपने छोटे से सीमेंट पेंट बिजनेस को संभाला और इसे एक घरेलू नाम में बदल दिया।
पेश हैं इंटरव्यू के संपादित अंश:
YourStory [YS]: आप एक बड़े कॉपर स्मेल्टर यूनिट को चलाते थे, फिर उद्यमी बनने का ख्याल कैसे आया?
हेमंत जालान [HJ]: अपने करियर की शुरुआत में, मैंने अपने पटना स्थित फैमिली बिजनेस के लिए काम किया था। यह गैस स्टोव और इलेक्ट्रिकल इंसुलेटर के व्यापार और वितरण से जुड़ा काम था। मैंने पटना में एक केमिकल यूनिट की शुरुआत भी की थी, लेकिन 1995 में एक बड़ा घाटा हुआ और फिर मैं इसे छोड़ आगे बढ़ गया।
मैं 1996 में स्टरलाइट जॉइन किया और मैंने अपने तरीके से उनकी तमिलनाडु स्थित कॉपर स्मेल्टर यूनिट का हेड किया। हालांकि 1999 में, मैंने अपनी अलग राह चलने का फैसला किया और तूतिकोरिन स्थित इस स्टरलाइट प्लांट को छोड़कर पुणे आ गया। यह एक कठोर फैसला था। मैं उस समय 42 साल का था, और एक कंपनी शुरू करने के लिए यह अच्छी उम्र नहीं मानी जाती है।
मेरा एक दोस्त एक मैनजेमेंट कंसल्टेंसी चला रहा था और उसे एक पार्टनर की तलाश थी। मैंने इस मौके को लिया और उसके साथ एक साल तक काम किया। इस अवधि ने मुझे सोचने और अपनी सोच को अमलीजामा पहनाने का वक्त दिया और 2000 में अपनी पेंट कंपनी शुरू कर पाया।
YS: आपको एक पेंट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी शुरू करने का विचार कैसे आया?
HJ: मैं पटना में एक छोटी केमिकल यूनिट ही चला रहा था। वो प्लांट औद्योगिक रासायनिक कैल्शियम क्लोराइड बनाता था, जो सीमेंट पेंट में इस्तेमाल होने वाला एक माइनर रसायन था। हम इसे सीमेंट पेंट बनाने वाली कंपनियों को भेजते थे। कुल मिलाकर, केमिकल प्लांट ने सालाना करीब 1.5 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार किया था।
एक दिन, पटना ऑफिस में मैंने कई छोटे स्तर के मैन्युफैक्चरर्स से मुलाकात और बात की, जो सीमेंट पेंट कंपनियां चला रहे थे। वे सभी अपने स्तर पर अच्छा कर रहे थे। मैंने खुद से सोचा कि अगर वे पेंट में अच्छा कर सकते हैं, तो क्या हम ऐसा नहीं कर सकते हैं!
हालांकि, पेंट बिजनेस शुरू करने के लिए बिहार या उसका पड़ोसी राज्य झारखंड अच्छी जगहें नहीं थीं क्योंकि इसका कच्चा माल जोधपुर से आना था। इसलिए मैंने जोधपुर में एक विज्ञापन निकाला कि मुझे किराए पर एक इंडस्ट्रियल शेड की जरूरत है। एक बार जब मैंने वहां एक शेड को अंतिम रूप दे दिया, तब हमने लोअर-एंड सीमेंट बनाना शुरू कर दिया।
व्यापार काफी हद तक ठीक था। हमने पहले साल में करीब 80 लाख रुपये की बिक्री की। फिर, हमने पानी आधारित पेंट में विविधता लानी शुरू की और अपने हर साल एक नए राज्य में प्रवेश करते हुए अपने उत्पादों की मार्केटिंग करनी शुरू की।
YS: इंडिगो पेंट्स के विस्तार के पीछे का राज क्या है?
HJ: एक बार केरल में इंडिगो पेंट्स के एक सेल्समैन ने मुझसे पूछा कि अगर वह एक साल में 1 करोड़ रुपये की बिक्री करा देगा तो उसे क्या इनाम मिलेगा। मैंने उससे पूछा कि वह क्या चाहता है, तो उसने कहा कि उसे एक हीरो होंडा मोटरसाइकिल चाहिए। मैं मान गया।
अविश्वसनीय रूप से उस आदमी ने वह लक्ष्य हासिल भी कर लिया और मैंने उसे बाइक इनाम में दी। अगली बार मैंने उसका टारगेट बढ़ा दिया और उससे कहा कि यदि वह इसे हासिल कर ले तो मैं उसे एक टाटा नैनो दे दूंगा।
इस बातचीत ने मुझे एहसास दिलाया कि सेल्स टीम के लिए इंसेंटिव एक काफी बड़ी शक्ति है । 2009 में हमारा व्यापार करीब 12 करोड़ का था। उस समय हमने अपनी टीम के लिए एक वार्षिक सम्मेलन आयोजित किया और सेल्स टीम के लिए एक इंसेटिंव प्रोग्राम की शुरुआत की। हम उन्हें अपने लक्ष्य खुद चुनने देते हैं, और सफल होने पर उन्हें उचित रूप से इनाम देते हैं।
टीम ने खुद के लिए उंचे लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर दिया, और इसने बिजनेस को पूरी को बदल दिया। हमारी सालाना ग्रोथ 50 प्रतिशत तक पहुंच गई और हमारी टीम से लोगों को नौकरी छोड़कर जाना भी लगभग बंद हो गया।
YS: आपने विस्तार के लिए पैसे कहां से जुटाए?
HJ: हमने उत्पादन को बढ़ाने के साथ ही अपने अपनी वर्किंग कैपिटल और विस्तार से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंकों से लोन लिए। 2014 में, सिकोइया हमारे बोर्ड में शामिल हुई और उसने कंपनी में 50 करोड़ रुपये का निवेश किया। इससे हम कर्ज मुक्त हो गए।
इससे हम और अधिक आक्रामक होकर मार्केटिंग पर फोकस कर पाएं। हमने अखबारों में सस्ते विज्ञापन देने की जगह टीवी पर महंगे विज्ञापनों की ओर रुक किया। साथ ही हमने केरल में एक मध्यम आकार की पेंट कंपनी का अधिग्रहण भी कर लिया। सिकोइया ने हमारे कंपनी में एक बार और 90 करोड़ रुपये का निवेश किया, जिससे कंपनी में उसकी हिस्सेदारी 21 प्रतिशत से बढ़ाकर 39 प्रतिशत हो गई।
2018 में, हमने महेंद्र सिंह धोनी को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया। उनका हमारी कंपनी को देश के सभी इलाकों तक ले जाने और हमारी ब्रांड इक्विटी को बढ़ाने में एक अहम योगदान रहा। धोनी और इंडिगो पेंट्स दोनों को एक छोटे शहर के लड़के के रूप में देखा जाता है, जो अपने धैर्य, साहस और जिद के जरिए देश में बड़ा बन गया।
YS: इंडिगो B2B तरीके को नहीं अपनाती है और अपने पेंट उत्पादों को सीधे ग्राहकों को बेचती है। ऐसा क्यों?
HJ: हम मैन्युफैक्चरिंग, मार्केटिंग,डिस्ट्रीब्यूशन और सजावटी पेंट्स की बिक्री में हैं और हमारे पास बड़ी संख्या में SKU हैं। हालांकि, आमतौर पर पेंट व्यवसाय में बहुत B2B स्टॉकिस्ट या डिस्ट्रीब्यूटर नहीं हैं।
कंपनियों को अपने डिस्ट्रीब्यूशन चैनल के जरिए सीधे खुदरा विक्रेताओं को अपने उत्पाद बेचना पड़ता है। इस तरह खुदरा विक्रेताओं को सीधे बेचने से ही वैल्यू अधिकतम होती है। इसके अलावा हमारी ताकत ब्रांडिंग और मार्केटिंग में है, इसलिए सीधे हमारे ग्राहकों को टारगेट करने में कहीं अधिक समझदारी झलकती है।
हमारे करीब 11,000 सक्रिय डीलरों के पास रिटेल टचप्वाइंट हैं जो रणनीतिक रूप से स्थित डिपो के जरिए सेवा हासिल करते हैं। हम पेंट्स के साथ भी सक्रिय रूप से जुड़े हैं। हम मंथली वर्कशॉप के जरिए पेंटरों, पॉलिशरों और ठेकेदारों को शिक्षित और नई जानकादी प्रदान करते हैं।
YS: आपका कॉम्पिटीशन किससे है? कंपनी कैसे उनसे आगे रह रही है?
HJ: हम सभी स्तर पर सजावटी पेंट निर्माण कंपनियों के साथ कॉम्पिटीशन करते हैं। जिन जगहों पर कोई बड़ी राष्ट्रीय स्तर की स्थापित कंपनी नहीं हैं, वहां कई मजबूत क्षेत्रीय कंपनियां भी हैं। हमारा मानना है कि इनोवेशन ही बाकी सबसे आगे रहने का इकलौता तरीका है।
अधिकतर कंपनियों से उलट, हमारा इनोवेशन लैब-आधारित नहीं होता है। हम ग्राहकों की जरूरतों को पूरे ध्यान से सुनते हैं, और फिर अपने उत्पादों को उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के हिसाब से डिजाइन करते हैं। यही कारण है कि हमारे पास हम अलग-अलग प्रॉडक्ट की एक भारी रेंज विकसित कर पाए हैं।
इसके अलावा, अधिकतर कंपनियां ने सभी तरह की कीमतों में ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपने सब-ब्रांड लॉन्च कर रखे हैं। लेकिन इंडिगो पेंट्स में, सभी सभी सेगमेंट के उत्पादों को एक ही ब्रांड के तहत बेचा जाता है, जैसे प्लैटिनम सीरीज (लक्जरी सेगमेंट), गोल्ड सीरीज (मिड-सेगमेंट), सिल्वर और ब्रॉन्ज सीरीज़ (इकॉनमी सेगमेंट)।
YS: इंडिगो पेंट्स को शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने के पीछे आपकी क्या सोच थी? आईपीओ के लिए क्यों गए?
HJ: आईपीओ लाने के पीछे हमारे पास तीन कारण थे। पहला हमें अपने वीसी निवेशकों के लिए एक एग्जिट रूट बनाना था। दूसरा हमें अपने कैपेक्स और विस्तार के लिए फंड की जरूरत थी। हम आईपीओ के जरिए लगभग 300 करोड़ रुपये जुटा रहे हैं। इसमें से 150 करोड़ रुपये हम तमिलनाडु के पुदुक्कोट्टई में एक नई मैन्युफैक्चरिंग युनिट शुरू करने में लगाना चाहते हैं, ताकि हम अपनी पानी आधारित पेंट निर्माण क्षमता को बढ़ा सके।
हमें डीलर नेटवर्क में टिनिंग मशीनों की तैनाती में तेजी लाने, बाकी बचे कर्ज को चुकाने, वित्त से जुड़े खर्चों को पूरा करने और सामान्य कॉर्पोरेट रिजर्व के लिए भी फंड की आवश्यकता है।
तीसरा कारण हमारी ईसॉप (ESOP) पॉलिसी से जुड़ा था। हमारे पास एक लचीला ईसॉप पॉलिसी है जो हमारे कर्मचारियों को प्रेरित करती है, और प्रतिभा को बनाए रखने में हमारी मदद करती है। कंपनी के सूचीबद्ध होने से ईसॉप धारकों को पारदर्शी तरीके से निकास का विकल्प मिलता है।
YS: कोविड -19 ने बिजनेस को कैसे प्रभावित किया और इससे निपटने के लिए क्या किया गया?
HJ: बाकी सभी कंपनियों की तरह, हमारा कामकाज भी लॉकडाउन के दौरान बंद हो गया था। जबकि हमने मई 2020 में लॉकडाउन की आंशिक ढील मिलने के बाद से ही हमने अपनी चारों मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स में काम फिर से शुरू किया। हालांकि इससे साथ ही हमने अतिरिक्त सुरक्षा उपायों को लागू किया, जैसे कि नियमित रूप से तापमान की जांच, सैनिटाइज, मास्क और हैंड सैनिटाइजर का अनिवार्य इस्तेमाल, और एक समय में सीमित संख्या में लोगों को काम पर बुलाना ।
सामान्य रूप से, पेंट इंडस्ट्री जल्दी पटरी पर आ गई। इंडिगो ने टीयर III और IV शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत उपस्थिति के चलते भी तेजी से रिकवरी की। हमारी बिक्री कोरोना से पहले के स्तर को पार कर गई है।
YS: कंपनी की भविष्य की क्या योजनाएं हैं?
HJ: हम अपनी मौजूदा रणनीति को जारी रखेंगे और इसी के साथ आगे बढ़ेंगे। इससे अच्छे परिणाम मिले हैं। हम अलग-अलग उत्पादों के अपने पोर्टफोलियो का विस्तार कर रहे हैं, छोटे शहरों और बड़े शहरों में अपने डीलर नेटवर्क और टिनिंग मशीनों को जोड़ना जारी रखा है।
हम अपने ब्रांड को और मजबूत बनाने, डीलर नेटवर्क में कुछ बड़े पेंट निर्माताओं के बराबर आने के लिए एक लगातार विज्ञापन करेंगे और अपने मुनाफे में सुधार करेंगे।