छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिलाओं ने मशरूम की खेती से निकाला समृद्धि का रास्ता
हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के नक्सली क्षेत्र दंतेवाड़ा के जंगलों में रहने वाली आदिवासी महिलाओं की, जिन्होंने मिलकर न केवल अपनी भुखमरी का हल निकाला बल्कि परिवार के लिए अच्छी खासी रकम कमा कर दे रही हैं और यह सबकुछ संभव हो पाया है मशरूम की खेती से।
सबसे पहले कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने आदिवासी महिलाओं को अपने यहां बुलाकर कैश क्रॉप वाली खेती से परिचित कराया और फिर उन्हें प्रशिक्षण दिया। कृषि विज्ञान केन्द्र से प्रशिक्षण देने के साथ शेड निर्माण और बीज इत्यादि की भी सहायता दी गयी।
जहां चाह होती है वहां राह खुद-ब-खुद निकल जाती है। हम बात कर रहे हैं ऐसी महिलाओं की जिन्होंने कभी अपने गांव से बाहर कदम नहीं रखा और न ही बाहर की दुनिया से ज्यादा वाकिफ हैं। लेकिन ये महिलाएं आत्मनिर्भर हैं और अपने परिवार का सहारा बनी हुई हैं। हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के नक्सली क्षेत्र दंतेवाड़ा के जंगलों में रहने वाली आदिवासी महिलाओं की, जिन्होंने मिलकर न केवल अपनी भुखमरी का हल निकाला बल्कि परिवार के लिए अच्छी खासी रकम कमा कर दे रही हैं और यह सबकुछ संभव हो पाया है मशरूम की खेती से। मशरूम आज इन महिलाओं के लिए सफेद सोना साबित हो रहा है।
दंतेवाड़ा के गीदम के जंगली क्षेत्र बड़े कारली गांव की महिलाओं ने रोज की दिनचर्या के साथ अपने व अपने परिवार के लिए समृद्धि की राह तलाश कर ली है। इसके लिए इन महिलाओं ने पहले कृषि विज्ञान केंद्र से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया और जाना कि मशरूम की खेती कैसे की जाती है। प्रशिक्षण पाने के बाद उन्होंने मशरूम की खेती शुरू कर दी। आज वे इस मशरूम को महंगे दामों में बेच रही हैं।
आज से करीब 3 साल पहले बड़े करेली गांव की महिलाओं का जीवन भी आम आदिवासी महिलाओं की तरह था। वे दिनभर जंगल में महुआ चिरौंजी जैसे वन उपज के लिए भटकती थीं और शाम को आकर जैसे तैसे कच्चा-पक्का खाना बनाकर अपने परिवार का पेट पालती थीं। यही इन महिलाओं की दिनचर्या थी। इनके जीवन में बदलाव कृषि विज्ञान केंद्र गीदम लेकर आया। सबसे पहले कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने आदिवासी महिलाओं को अपने यहां बुलाकर कैश क्रॉप वाली खेती से परिचित कराया और फिर उन्हें प्रशिक्षण दिया। कृषि विज्ञान केन्द्र से प्रशिक्षण देने के साथ शेड निर्माण और बीज इत्यादि की भी सहायता दी गयी।
पहले उन्हें सब्जी और फलों की खेती का प्रशिक्षण दिया गया। इससे उन्हें खेती से होने वाले फायदों के बारे में जानकारी हो सकी। कुछ ही दिनों में जब आदिवासी महिलाओं को खेती के फायदे समझ आ गए तो उन्होंने संगठित होकर सामूहिक तौर पर खेती करने का फैसला किया। हालांकि मशरूम की खेती के बारे में पहले कोई भी महिला आश्वस्त नहीं थी। इसलिए उन्होंने शुरू में इससे साफ तौर पर इनकार कर दिया। लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों ने महिलाओं को प्रोत्साहित किया और उन्हें इस खेती से होने वाले फायदों के बारे में बताया।
महिलाओं को जब भरोसा हो गया तो उन्होंने समूह बनाया और सबको एकजुट किया। समूह का नाम रखा गया नंदपुरिन महिला स्व-सहायता समूह। स्वसमूह की सचिव नमिता कश्यप हैं। नमिता कहती हैं कि उनके समूह की महिलायें खेती-किसानी से जुड़ी हुई हैं, जो घर-परिवार के दैनिक कार्यों को करने के बाद अतिरिक्त आमदनी के लिए स्थानीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियां संचालित करना चाहती थी, इस बीच कृषि विज्ञान केन्द्र गीदम के वैज्ञानिकों द्वारा गांव के किसानों को किसान संगोष्ठी में खेती-किसानी की जानकारी देने के साथ ही मशरूम उत्पादन के बारे में बताया गया।
अब चल रही है विस्तार की तैयारी
महिला समूह की अध्यक्ष श्यामबती वेको ने बताया कि कृषि केंद्र से मिली सहायता से समूह की महिलाओं ने मशरूम उत्पादन के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता पर भी ध्यान केन्द्रित किया। इससे उत्पादित मशरूम का विक्रय तुरंत होने लगा। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उनके समूह के मशरूम की मांग गीदम-दंतेवाड़ा में होने के कारण गांव से कई लोग यहां आकर मशरूम खरीद कर ले जाते हैं।
मशरूम की खेती करके जोड़े 80 हजार रुपए
इन महिलाओं के स्वसहायता समूह ने सामूहिक रुप से 80 हजार रुपए जोड़े। श्यामबती कहती हैं कि इतने रुपए जुड़ने से समूह की महिलाएं बहुत खुश हैं। अब परिवार के सदस्य भी घर-परिवार के कार्यों के साथ इस आय मूलक गतिविधि को संचालित करने के लिए उनका उत्साहवर्धन करते हैं। समूह की महिलाओं ने उक्त आर्थिक गतिविधि के साथ ही बचत को भी बढ़ावा दिया है। इस कारण ही समूह के खाते में अभी करीब 80 हजार रुपए हैं, जिसे समूह की महिलाएं आड़े वक्त ऋण लेकर सुविधानुसार वापस जमा करती हैं।
समूह की सामूहिक गतिविधियों से प्रभावित लच्छनदई वेको कहती हैं उक्त गतिविधि आय अर्जित करने के साथ ही हम सभी को सशक्त बनने के लिए न सिर्फ सहायक साबित हो रही है, बल्कि परिवार की खुशहाली को भी बढ़ा रही है।
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