Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory
search

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ADVERTISEMENT

मजबूरी में मजदूर बने इस 22 वर्षीय युवा ने विश्व-स्तरीय प्रतियोगिता में किया भारत का नाम रौशन

पश्चिम बंगाल के मालदा में जन्मे 22 वर्षीय रोहिम मोमिन ने पेश की मिसाल...

मजबूरी में मजदूर बने इस 22 वर्षीय युवा ने विश्व-स्तरीय प्रतियोगिता में किया भारत का नाम रौशन

Wednesday July 18, 2018 , 7 min Read

आम अवधारणाओं से ऊपर उठकर ही व्यक्ति विशेष होता है। कुछ ऐसी ही मिसाल पेश करती है, पश्चिम बंगाल के मालदा में जन्मे 22 वर्षीय रोहिम मोमिन की कहानी। रोहिम 2017 में अबु धाबी में हुई वर्ल्ड स्किल प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 59 देशों के प्रतियोगियों के बीच रोहिम ने 5वां स्थान हासिल किया।

image


पश्चिम बंगाल के मालदा के रहने वाले रोहिम बेहतर मौक़ों की तलाश में अपने गांव से दिल्ली आ गए और राजधानी आकर निर्माण कार्य करने वाले श्रमिकों की जमात का हिस्सा बन गए। 

स्किल डिवेलपमेंट और ऑन्त्रप्रन्योरशिप मिनिस्ट्री की 2016-17 की रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में आम अवधारणा यही है कि जो लोग अपने ऐकेडमिक जीवन में कुछ ख़ास नहीं कर पाए, वे लोग ही निर्माण या इस तरह के कामों में प्रशिक्षण लेने के बारे में सोचते हैं, क्योंकि उनके पास अन्य विकल्प नहीं होते और यह अवधारणा भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। आम अवधारणाओं से ऊपर उठकर ही व्यक्ति विशेष होता है। कुछ ऐसी ही मिसाल पेश करती है, पश्चिम बंगाल के मालदा में जन्मे 22 वर्षीय रोहिम मोमिन की कहानी। रोहिम 2017 में अबु धाबी में हुई वर्ल्ड स्किल प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 59 देशों के प्रतियोगियों के बीच रोहिम ने 5वां स्थान हासिल किया।

आंकड़े गवाह हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी के साथ आगे बढ़ रही है। हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते भारत में बेहद कम पैसों पर मजदूर या बाक़ी कामगार उपलब्ध हो जाते हैं और इस तथ्य का भारत की अर्थव्यवस्था की प्रगति में विशेष योगदान है। हम अक्सर देखते हैं कि पुरुष, महिलाएं और यहां तक कि बच्चे भी गांवों या अन्य छोटी जगहों से शहरों में आकर रहते हैं। यह आबादी थोड़ी सी आय के लिए शहरों में विपरीत से विपरीत हालात में भी रहने को तैयार होती है।

रोहिम मोमिन की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वह अनाथ हैं और उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा बीच में ही छोड़ दी थी। वह अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाली इकाई थे। पश्चिम बंगाल के मालदा के रहने वाले रोहिम बेहतर मौक़ों की तलाश में अपने गांव से दिल्ली आ गए और राजधानी आकर निर्माण कार्य करने वाले श्रमिकों की जमात का हिस्सा बन गए। दरअसल, उनके पिता की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई और इसके बाद उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। इस दौरान रोहिम 11वीं कक्षा में पढ़ रहे थे। 2014 में रोहिम दिल्ली आए और कन्सट्रक्शन के काम से जुड़ गए।

image


रोहिम अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि बचपन में उनका ख़्वाब शिक्षक बनने का था। उन्होंने बताया कि अपने स्कूल में वह अव्वल थे और उन्हें पढ़ाई में बेहद दिलचस्पी थी, लेकिन ज़िंदगी ख़्वाबों या इच्छाओं की तर्ज़ पर नहीं चलती और रोहित को भी जिम्मेदारियों के चलते कन्सट्रक्शन के सेक्टर में काम करने के लिए उतरना पड़ा। रोहिम बताते हैं, "हमारे गांव में एक ठेकेदार था, जो गांव से लोगों को मजदूरी करने के लिए दिल्ली ले जाता था। मुझे भी किसी ने उस ठेकेदार से मिलाया और इसके बाद मैं दिल्ली आ गया। मेरे गांव की 80 प्रतिशत कामगार आबादी गांव के बाहर अलग-अलग शहरों में कन्सट्रक्शन के क्षेत्र में ही काम करती है।"

रोहिम अपने परिवार की माली हालत को बेहतर करना चाहते थे और अपनी तीन छोटी बहनों का भविष्य सुरक्षित करना चाहते थे। इस चाहत ने उनके अंदर प्रेरणा भरी और वह शारीरिक श्रम के अलावा दूसरे मौक़ों और कामों में भी हाथ आज़माने लगे। रोहिम ने तय किया कि वह व्यवस्थित प्रशिक्षण के माध्यम से अपनी क्षमताओं को विकसित करेंगे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। रोहिम ने अपनी इस चाहत को हक़ीकत में तब्दील कर दिखाया।

image


कन्सट्रक्शन के काम की शुरूआत में एक सामान्य मजदूर की तरह रोहिम भी सिर्फ़ अपने सीनियर के निर्देशों का पालन करते थे। कुछ ही दिनों में उनको एहसास हुआ कि ईंट इत्यादि की चुनाई करने वाले मजदूरों को अधिक पैसा मिलता है और इसके बाद उन्होंने एक साल से भी कम वक़्त में यह काम सीख लिया। एक दिन उन्होंने कुछ मजदूरों को चुनाई की एक प्रतियोगिता के बारे में बात करते हुए सुना, जिसमें एक निर्धारित वक़्त में कन्सट्रक्शन का निर्धारित काम पूरा करने वाले को इनाम मिलता है। रोहिम ने भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और दिल्ली-एनसीआर के 18 प्रतियोगियों के बीच में उन्हें दूसरा स्थान मिला।

रोहिम ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया, "कंपनी स्तर पर 4 घंटों में एक एच-शेप की एक मीटर लंबी दीवार बनानी होती है। यह काम काफ़ी बारीक़ होता है और इसमें बहुत मेहनत की ज़रूरत होती है। मुझे बीच-बीच में काफ़ी प्यास भी लगी, लेकिन समय बचाने के लिए मैं पानी तक नहीं पिया। निर्धारित समय के भीतर सटीक काम करके दिखाना आपकी सफलता की कुंजी होती है।"

image


कंपनी स्तर की इस स्तर की प्रतियोगिता के बाद रोहिम ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभागिता दर्ज कराई। 2015 में नैशनल स्किल्स कॉम्पिटिशन में उन्हें दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। इसके बाद उनका चयन वर्ल्ड स्किल्स कॉम्पिटिशन के लिए हुआ। इस प्रतियोगिता के लिए रोहिम ने सितंबर 2016 से लेकर अक्टूबर 2017 तक पुणे में सीआरईडीएआई (CREDAI) के 'कुशल' प्रोग्राम के अंतर्गत प्रशिक्षण लिया।

अबु धाबी में हुए वर्ल्ड स्किल्स कॉम्पिटिशन की ऑर्गनाइज़िंग कमिटी ने बताया कि कनसट्रक्शन के दो प्रोजेक्ट कभी भी एक तरह के नहीं हो सकते और इस लिए ईंटों आदि की चुनाई करने वाले को हमेशा नई चुनौती के लिए तैयार रहना पड़ता है।

इस प्रतियोगिता में रोहिम का सामना 59 देशों के प्रशिक्षित कारीगरों से था, जहां पर उन्हें ड्राइंग्स के आधार पर अपनी समझ तैयार करनी थी और फिर एक विश्व-स्तरीय बिल्डिंग बनानी थी। रोहिम बताते हैं, "अबु धाबी में सब कुछ काफ़ी अलग था। वह पर इस्तेमाल होने वाली मोटर, बालू और तकनीकें, मेरे लिए सभी कुछ पूरी तरह से नया था। इस प्रतियोगिता के लिए तैयार होने में मुझे 14 महीनों की कड़ी मेहनत लगी।" वर्ल्ड स्किल्स प्रतियोगिता में रोहिम को मेडालियन ऑफ़ एक्सीलेंस का ख़िताब मिला और प्रतियोगिता में उन्होंने 5वां स्थान प्राप्त किया। इस परिणाम के बाद रोहिम काफ़ी निराश हुए और रोए भी क्योंकि उन्होंने इस प्रतियोगिता के लिए काफ़ी तैयारी की थी और इसके बाद भी वह इसमें जीत न सके। ख़ैर, फ़िलहाल रोहिम मानते हैं कि उन्हें जितना मिला, उतना काफ़ी है और अब उनके पास अच्छा काम है।

आंकड़ों की मानें तो विकसित देशों में प्रशिक्षित कामगारों का प्रतिशत 60%-90% के बीच है, जबकि भारत में यह आंकड़ा सिर्फ़ 4.69% का ही है। आपको बता दें कि भारत की जीडीपी में दूसरा सबसे ज़्यादा योगदान देने वाला सेक्टर कन्सट्रक्शन का ही है और इसके बावजूद देश में स्किल्ड लेबर की यह हालत है। सीआरईडीएआई में स्किल डिवेलपमेंट चेयरमैन विशाल गुप्ता कहते हैं कि भारत में कन्सट्रक्शन इंडस्ट्री में मशीनीकरण अभी भी पर्याप्त स्तर तक नहीं पहुंचा है और इसलिए काम करने वाले श्रमिकों के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी होती है। वह मानते हैं कि ये श्रमिक जितने अधिक प्रशिक्षित होंगे, निर्माण का काम उतना ही किफ़ायती, बेहतर और सुदृढ़ होगा।

रोहिम ने बताया कि विदेशों में कन्सट्रक्शन के काम के लिए कॉलेजों में वोकेशनल कोर्सेज़ उपलब्ध हैं और वहां के लोग इसे एक अच्छे प्रोफ़ेशन के रूप में देखते हैं। वर्ल्ड स्किल्स प्रतियोगिता में मिली सफलता के बाद फ़िलहाल रोहिम एटीएस कन्सट्रक्शन्स कंपनी में बतौर असिस्टेंट फ़ोरमैन काम कर कर रहे हैं और साथ ही रोहिम, नैशनल और इंटरनैशनल स्किल्स कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेने वालों को प्रशिक्षित भी करते हैं।

यह भी पढ़ें: भारतीय कबड्डी टीम में खेलने वाली एकमात्र मुस्लिम महिला खिलाड़ी शमा परवीन की कहानी