लीडर्स vs मैनेजर्स
(यह लेख आशुतोष द्वारा लिखा गया है। आशुतोष दो दशकों से ज्यादा समय तक पत्रकारिता से जुड़े रहे और हिन्दी के तमाम बड़े न्यूज़ चैनल में बड़े पदों पर कार्यरत रहे हैं। अब आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता हैं। यह लेख मूलत: अग्रेजी में लिखा गया है।)
आज मैं आप लोगों को अपने एक पुराने मित्र और किसी जमाने में बाॅस रहे एक महान व्यक्तित्व के धनी उदयशंकर के बारे में बताने जा रहा हूँ। वे रुपर्ट मेर्डोक की कंपनी और देश के सबसे बड़े मनोरंजन मीडिया समूह का संचालन करने वाले स्टार इंडिया समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ;सीईओ रह चुके हैं। मेरी उनसे पहली मुलाकात वर्ष 1997 में हुई थी और तब वे एक बिल्कुल अनजाना नाम थे। वे टाईम्स आॅफ इंडिया के साथ काम चुके थे और उस वक्त एक सामान्य टीवी फ्रीलांसर के रूप में कार्यरत थे। मैं उस वक्त ‘आजतक’ के साथ एक वरिष्ठ संवाददाता के रूप में काम कर रहा था। उस मुलाकात के कुछ महीनों के बाद मैंने एक दिन उन्हें ‘आजतक’ के कार्यालय में देखा। ‘आजतक’ उस समय एक 24 घंटों के समाचार चैनल की अवधारणा पर विचार कर रहा था। मुझे यह बताया गया कि वह हमारे चार कार्यकारी निर्माताओं में से एक होंगे। उस समय आजतक एक जाना-माना नाम था और हम सफलता के सातवें पायदान पर थे। हम उनकी नियुक्ति को लेकर बेहद हैरान थे और हमें लगा था कि वे इस उम्मीद पर खरे नहीं उतरेंगे और जरूर असफल होंगे। लेकिन हम सब गलत साबित हुए। आने वाले समय में वही उदयशंकर 24 घंटे के समाचार चैनल ‘आजतक’ के पहले समाचार निर्देशक बनने में सफल हुए। यह समाचार चैनल उनके नेतृत्व में और उसके बाद भी सफलता के नए शिखरों को छूने में कामयाब रहा और उसके लिये उसे सदैव इनका ऋणी रहेगा। वर्ष 2004 में उन्होंने ‘आजतक’ को अलविदा कहा और संपादक और सीईओ के रूप में स्टार न्यूज में शामिल हो गए। हम सब एक बार दोबारा हैरान और परेशान थे। हम सब आपस में इस बारे में गपशप करते थे कि एक सीईओ के तौर पर तो वे जरूर असफल रहेंगे। लेकिन उन्होंने दोबारा हमारे सारे अनुमानों को गलत साबित किया और आजतक को एक कड़ी प्रतिस्पर्धा और चुनौती दी। अचानक एक सुबह हमें जानकारी मिली कि वे सुप्रसिद्ध पीटर मुखर्जी के स्थान पर स्टार इंडिया के अध्यक्ष पद पर आसीन होने जा रहे हैं। मैंने उन्हें फोन किया तो उन्होंने आमतौर पर मेरी खिंचाई करने के अंदाज में पूछा कि तुम सब तो मेरे असफल होने की कामना करते थे। मैंने उनसे पूछा कि आप इस जिम्मेदारी को संभालने के लिये राजी कैसे हो सकते हैं क्योंकि आपको तो मनोरंजन जगत का कोई पूर्व अनुभव है ही नहीं। उन्होंने अपने ही एक अलग अंदाज में मुझे जवाब दिया कि जब 'मैं समाचार चैनल का एक हिस्सा बना था तब भी आप सबने कहा था कि मुझे खबरों का, समाचारों का कोई पूर्व अनुभव नहीं है?' मुझे मानना पड़ा था कि उस दौर में वह पत्रकारों के बीच गपशप का एक मुद्दा था लेकिन मैं फिर भी अपनी बात पर अड़ा रहा। तब उन्होंने कहा, ‘‘देखो, मुझे तो सिर्फ निर्णय लेने हैं। काम तो फिर भी उन्हें ही करना है जो अपने काम को जानते हैं और विशेषज्ञ हैं।’’ मैं उनके इन शब्दों को आजतक नहीं भुला पाया हूँ। ‘‘एक अगुवा के रूप में मेरा काम निर्णय लेना है।’’ और कहावत है - बाकी सब इतिहास है। वे स्टार इंडिया को परेशानियों से निकालने में कामयाब रहे।
जब मैं पत्रकारिता छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुआ और मुझे राज्य संयोजक के रूप में दिल्ली इकाई की जिम्मेदारी मिली तब उनके कहे शब्दों ने ही मुझे सबसे अधिक प्रेरित किया। उदय एक बात हमेशा कहते थे, ‘‘ये सभी बड़े पदों पर बैठे सीईओ कोई मंगल ग्रह पर पैदा नहीं हुए हैं। वे भी हमारे जैसे ही हैं।’’ मैं जानता था कि मुझे एक कठिन जिम्मेदारी का निर्वहन करना है और पूरे देश के अलावा आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की नजरें मेरे ऊपर टिकी हैं। ऐसे में मुझे अधीर और परेशान न होते हुए सावधान रहने की जरूरत थी। मुझे सबसे पहले ऐसे लोगों को चिन्हित करते हुए आगे बढ़ाना था जो प्रतिभाशाली होने के साथ-साथ एक लंबा सफर तय कर सकते हों और अपने काम को जानने के अलावा उनके भीतर एक जुनून की भावना भी हो। जल्द ही मुझे इस बात का अहसास हुआ कि हमारे पास प्रतिभा की कोई कमी नहीं है और हम सभी प्रक्रियाओं को ठीप तरीके से पूर्ण करते रहे तो अरविंद केजरीवाल के चुंबकीय नेतृत्व में हमें दिल्ली जीतने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन मैं एक प्रबंधक था और अरविंद एक नेता।
इन दो महान शख्सियतों के साथ काम करने के बाद मैं पूरे यकीन के साथ यह कह सकता हूँ कि लीडर या अगुवा हमेशा सामने से नेतृत्व करता है, कभी भी दूसरों पर जिम्मेदारियां नहीं डालता, किसी भी तरह के गलत निर्णयों की समस्त जिम्मेदारी अपने सिर पर लेता है, गलतियों को स्वीकार करता है और अपनी टीम पर पूरा विश्वास करता है। लीडरों के पास हमेशा एक दूरदृष्टि होती है और वे अपनी समूची टीम को उस दिशा में ला जाते हैं और इसके लिये अगर उन्हें पारंपरिक वर्जनाओं को भी तोड़ना पड़े तो वे संकोच नहीं करेंगे। लेकिन प्रबंधकों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। अपने पूरे करियर के दौरान मैंने कई उत्कृष्ट प्रबंधकों के साथ काम किया। वे सभी बहुत अच्छे इंसान होने के अलावा अपने काम में बहुत बेहतरीन थे और काम करते हुए समय की परवाह नहीं करते थे लेकिन वे खुद को या फिर अपने संस्थान को अगले स्तर तक ले जाने में कामयाब नहीं हो पाए क्योंकि उनके पास पारंपरिक तरीकोें के खिलाफ जाने की दृष्टि और जुनून मौजूद नहीं था। ऐसे में मैं हमेशा मनमोहन सिंह का उदाहरण देता हूँ। वे एक अच्छे प्रधानमंत्री होने के अलावा एक महान अर्थशास्त्री भी हैं लेकिन वे एक अच्छे नेता नहीं हैं। जबतक स्थितियां सरकार और पार्टी के पक्ष में रहीं वे आराम में शासन करते रहे लेकिन जैसे ही सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगनी शुरू हुई तब उन्हें नहीं पता था कि अब क्या करना है।
एक प्रधानमंत्री के तौर पर उन्हें कड़े कदम उठाते हुए राजतीति की दिशा और दशा को बदलने वाले कड़े कदम उठाने चाहिये थे लेकिन उनके पास न तो इस स्तर की कुशाग्रता थी न ही जुनून और न ही उनके पास ऐसी स्थितियों का सामना करने की ताकत मौजूद थी। वे खुद तो असफल हुए ही साथ ही उन्होंने पूरे देश को भी नीचा दिखाया। कांग्रेस सिमटकर 44 सीटों पर आ गई। ऐसा नहीं हे कि नेता असफल नहीं होते हैं। बिल्कुल होते हैं। इंदिरा गांधी को भारत के लोगों ने सिरे से अस्वीकार कर दिया था लेकिन वे दोबारा वर्ष 1980 में बेहद दृढ़ता के साथ वापसी करने में सफल रहीं। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में ‘आप’ वर्ष 2014 के संसदीय चुनावों में भले ही विफल रही हो लेकिन वह वर्ष 2015 के दिल्ली चुनावों में भारी बहुमत के साथ जीतने में सफल रही और एक नया इतिहास बनाने में कामयाब हुई। एप्पल हर मायने में एक बेहतरीन कंपनी है लेकिन उसे भी संचार की दुनिया में नए तकनीकी रास्तों को खोलते हुए इतिहास बनाने के लिये स्टीव जाॅब्स जैसे प्रतिभा के एक धनी की दूरगामी सोच और सनक की आवश्कता पड़ी। प्रबंधक सिर्फ विरोधाभासों का प्रबंधन कर सकते हैं लेकिन वे नेता ही होते हैं जो विरोधाभासों को जीत में तब्दील करते हुए नए विरोधाभासों को जन्म देते हैं। तो आप प्रबंधकों को तो प्रशिक्षित कर सकते हैं लेकिन नेता एक अलग धातु के बने होते हैं और वे पैदाइशी अगुवा होते हैं।