मोती की खेती करने के लिए एक इंजीनियर ने छोड़ दी अपनी नौकरी
हज़ारों की नौकरी छोड़ मोती की खेती से कमा रहे हैं लाखों...
भारत में आधी से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है। लेकिन देश के किसानों की हालत बद से बदतर होती चली जा रही है। अभी हाल ही में मध्य प्रदेश में किसान अपनी सब्जियां सड़कों पर फेंककर आंदोलन कर रहे थे, क्योंकि उन्हें उनकी फसल का सही दाम नहीं मिल रहा है। मध्य प्रदेश के पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र का हाल भी ज्यादा अच्छा नहीं है। वहां भी अक्सर किसानों की आत्महत्या की खबरें आती रहती हैं। किसानों की बदहाल स्थिति के लिए सरकार के अलावा खेती के परंपरागत तरीके भी हैं, जिनसे अभी हमारा किसान आगे नहीं बढ़ सका है, लेकिन देश में तमाम किसान ऐसे भी हैं जो खेती की परंपरागत फसलों और तरीकों को छोड़कर नया प्रयोग कर रहे हैं और भारी मुनाफा कमा रहे हैं। ऐसे ही एक किसान हैं विनोद कुमार जो इंजीनियर की नौकरी छोड़कर मोती की खेती करते हैं और 20x10 की जगह सालाना पांच लाख से अधिक कमा लेते हैं...
विनोद एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता भी किसान थे। विनोद प्राइवेट कंपनी में नौकरी तो कर रहे थे, लेकिन उनका मन बार-बार अपने गांव की ओर भाग रहा था।
आजकल मोती की खेती का चलन तेजी से बढ़ रहा है। कम मेहनत और लागत में अधिक मुनाफे का सौदा साबित हो रहा है। हरियाणा राज्य के गुड़गांव के फरूखनगर तहसील में एक गांव है जमालपुर, यहां के रहने वाले 27 वर्षीय विनोद कुमार ने इंजीनियर की नौकरी छोड़कर मोती की खेती शुरू की है। इस खेती से वे आज 5 लाख रुपए से ज्यादा सालाना की कमाई ले रहे हैं। इसके साथ ही वे दूसरे किसानों को भी इस खेती की ट्रेनिंग देते हैं। विनोद बताते हैं कि उन्होंने साल 2013 में मानेसर पॉलिटेक्निक से मकैनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। इसके बाद दो साल तक एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की।
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विनोद एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता भी किसान थे। विनोद प्राइवेट कंपनी में नौकरी तो कर रहे थे, लेकिन उनका मन बार-बार अपने गांव की ओर भाग रहा था। उन्हें कंपनी में काम करना जंच नहीं रहा था। उन्होंने बचपन से लेकर अधिकतर समय गांव में ही बिताया था और पिता के साथ खेती में भी हाथ बंटाया करते थे, लेकिन उन्हें अपने पिता और बाकी किसानों की हालत पता थी। वे सामान्य तौर पर की जाने वाली धान और गेहूं की खेती नहीं करना चाहते थे। वह कुछ नए की तलाश में थे, जिससे कम मेहनत और लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा सके।
मोती की खेती करने के लिए विनोद ने इंटरनेट का सहारा लिया और खेती की नई-नई तकनीक के बारे में पढ़ते रहे, जानकारियां जुटाते रहे। उन्हें मोती की खेती के बारे में पता चला और उन्हें यह आइडिया जंच गया। विनोद ने इंटरनेट से ही इसके बारे में सारी जानकारी जुटा ली। उन्हें लगा कि काफी कम पैसे और नाममात्र की जगह में यह काम किया जा सकता है।
हालांकि अभी देश में इस खेती की ट्रेनिंग देने वाला सिर्फ एक ही प्रशिक्षण संस्थान है और वो भी भुवनेश्वर में है। उड़ीसा के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर (ओडीसा) में मोती की खेती का प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्होंने यहीं से मोती की खेती की ट्रेनिंग ली और 20x10 फीट एरिया में 1 हजार सीप के साथ मोती की खेती शुरू कर दी।
विनोद कहते हैं, कि मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल मौसम शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है। इसके लिए पानी के टैंक या तालाब की जरूरत पड़ती है। कम से कम 10 गुणा 10 फीट की जगह होनी ही चाहिए। बड़े तालाब में भी मोतियों की खेती की जा सकती है। शुरू में खेती करने के लिए मोती की जरूरत पड़ती है, जो कि 5 रुपये से लेकर 15 रुपये में आसानी से मिल जाती है। अक्सर मछुआरों के पास से ये खरीदी जाती है। उत्तर प्रदेश के मेरठ, अलीगढ़ या फिर दक्षिण भारत में ये आसानी से मिल जाती है। मछुआरों से लाए गए सीपों को 10 से 12 महीने तक पानी के टैंक में रखा जाता है। जब सीप का कलर सिल्वर हो जाता है, तो समझा जाता है कि मोती तैयार हो गया है।
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मोती कल्टीवेशन के लिए 0.4 हेक्टेयर जैसे छोटे तालाब में अधिकतम 25,000 सीप से मोती उत्पादन किया जा सकता है। खेती शुरू करने के लिए किसान को पहले तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा करना होता है या फिर इन्हे खरीदा भी जा सकता है। इसके बाद हर सीप में छोटी-सी सर्जरी के बाद इसके भीतर चार से छह मिमी व्यास वाले साधारण या डिजाइनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध, फूल या मनचाही आकृति डाल दी जाती है। इसके बाद सीप को बंद किया जाता है। इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है। इसे रोज देखने की जरूरत पड़ती है और देखा जाता है कि जो सीप मर गई होती हैं उन्हें बाहर निकाल लिया जाता है।
विनोद कहते हैं, कि उन्हें पूरा सेटअप लगाने में उन्हें सिर्फ 60 हजार का खर्च आया। विनोद के अनुसार इन मोतियों की कीमत एक साल के भीतर 300 से लेकर 1500 रुपये तक हो जाती है। हालांकि दाम भी क्वॉलिटी पर निर्भर होता है। देश में इसकी मार्केट सूरत, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कलकत्ता जैसे शहरों में है। जहां आभूषणों का काम ज्यादा होता है वहां इसकी मांग भी ज्यादा होती है।
विनोद 2016 से ही अलग-अलग जगह अपने मोती भेजते हैं। वह बताते हैं, कि अगर एक बार माल जाने लगे तो खरीदार खुद संपर्क में रहते हैं। इतना ही नहीं देश के अलावा विदेशों में भी मोती की खासी मांग है, लेकिन उसके लिए आपके पास पैदावार अधिक होनी चाहिए तभी एक्सपोर्ट का काम कर सकते हैं।
अभी विनोद के पास 2,000 सीप हैं जिससे वे साल भर में 5 लाख रुपये से ज्यादा कमा लेते हैं। विनोद लोगों को ट्रेनिंग भी देते हैं और इसके लिए वे फीस भी लेते हैं।