बिहार की भयंकर बाढ़ में लोगों की मदद कर रही हैं मुखिया रितु जायसवाल
“बिहार की यह महिला मुखिया नेशनल अवार्ड से हुई सम्मानित”
रितु बिहार की एक सशक्त महिला राजनेता के तौर पर उभर रही हैं। उन्होंने अपनी कार्यशैली से पूरे गांव को खुशहाल बनाने की पूरी कोशिश की है।
2016 में सिंहवाहिनी पंचायत से मुखिया पद के लिए रितु चुनाव लड़ीं। इस चुनाव में वह जीत गईं। इसके बाद वह लगातार यहां के विकास को लेकर काम कर रही हैं।
रितु कहती हैं कि मैं पूरे राज्य के लिए तो बहुत कुछ नहीं कर सकती, लेकिन जिन्होंने मुझे मुखिया बनाया है, उनकी अच्छी जिंदगी और इस त्रासदी से उबरने के लिए उनके साथ तो हाथ बंटा ही सकती हूं।
पिछले कई दिनों से भारी बारिश के चलते बिहार के लोगों को बाढ़ जैसी आपदा से गुजरना पड़ रहा है। इस त्रासदी में लगभग 500 लोग मौत के मुंह में जा चुके हैं। बिहार के सीतामढ़ी जिले की मुखिया रितु जायसवाल अपने स्तर पर गांव वालों की मदद के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं। उनकी हिम्मत और जज्बे की दाद देनी पड़ेगी। बाढ़ के बाद पीड़ितों को सुविधा मुहैया कराने को लेकर एक तरफ जहां सभी राजनीतिक दल सिर्फ बयानबाजी कर रहे हैं, वहीं सिंहवाहिनी पंचायत की महिला मुखिया इस पंचायत के लोगों की जिंदगी को एकबार फिर से पटरी पर लाने की जद्दोजहद में जुटी हैं।
इस बाढ़ से लोग अपने आप को बेबस और लाचार महसूस कर रहे हैं। कोई उनकी हाल खबर लेने वाला नहीं है। सीतामढ़ी जिले की सिंहवाहिनी पंचायत में अधवारा और मरहा नदी में आए उफान से जब यहां के लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया तब यहां के लोगों के लिए किसी मसीहा की तरह अपनों के बीच से चुनी गईं मुखिया रितु जायसवाल सामने आईं। रितु बिहार की एक सशक्त महिला राजनेता के तौर पर उभर रही हैं। उन्होंने अपनी कार्यशैली से पूरे गांव को खुशहाल बनाने की पूरी कोशिश की है।
बाढ़ का कहर थमने के बाद सिंहवाहिनी पंचायत के लोग अपने घरों को लौट रहे हैं। लेकिन जिंदगी जीने की जद्दोजहद बाकी है। इन बाढ़ पीड़ितों के सामने यह सवाल है कि इन्हें अपने घर की रोटी कब नसीब होगी? बाढ़ ने इन लोगों के आशियाने ही नहीं छीने, बल्कि घर का तिनका-तिनका भी बहा ले गया। मुखिया रितु जायसवाल कहती हैं, 'विनाशकारी बाढ़ हम सिंहवाहिनी पंचायत के लोगों के जीवन में दुख, पीड़ा, हताशा छोड़ गई है। हम लोग पिछले एक साल में काफी तेजी से बढ़े थे। यहां पक्की सड़कें आ गई थीं, बिजली से बल्ब जलने लगे थे, लेकिन शायद प्रकृति को यह मंजूर नहीं था।'
रितु ने बताया कि बाढ़ किसी भी क्षेत्र के लिए एक त्रासदी है। बाढ़ के बाद किसी के पास कुछ नहीं बचता। कई बाढ़ पीड़ितों के पास अनाज को खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते।
अधवारा और मरहा नदी में आई बाढ़ ने स्थिति को पहले से भी बदतर कर दिया है। हालांकि रितु ने हिम्मत नहीं हारी हैं। वे आम लोगों से लेकर सरकार और जनप्रतिनिधियों से लगातार मदद की गुहार लगा रही हैं। उन्होंने बताया कि 16 हजार की आबादी वाली इस पंचायत में 50 घर तो पूरी तरह बह गए और सौ घरों को आंशिक क्षति पहुंची है। पंचायत की बड़ी सिंहवाहिनी, करहरवा और खुटहां गांव की स्थिति एकदम भयावह है। रितु ने बताया कि बाढ़ किसी भी क्षेत्र के लिए एक त्रासदी है। बाढ़ के बाद किसी के पास कुछ नहीं बचता। कई बाढ़ पीड़ितों के पास अनाज को खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते। ऐसे में एक जनप्रतिनिधि होने के नाते यह मेरा दायित्व ही नहीं कर्तव्य भी है कि इन्हें जीने के लिए सुविधा और खाने को अनाज मुहैया हो सके। वह कहती हैं, 'मैं पूरे राज्य के लिए तो बहुत कुछ नहीं कर सकती, लेकिन जिन्होंने मुझे मुखिया बनाया है, उनकी अच्छी जिंदगी और इस त्रासदी से उबरने के लिए उनके साथ तो हाथ बंटा ही सकती हूं।'
रितु ने कहा कि बाढ़ में हमारे नवनिर्मित प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की सड़क का जो बुरा हाल हुआ उसे कम से कम आने जाने लायक बनाने केलिए हम लोगों ने 5 से 6 दिन पहले से ही काम शुरू करवा दिया है। भगवानपुर गाँव को बड़ी सिंहवाहिनी से जोड़ने वाले पुल के जगह तत्काल बांस का पुल भी बन कर तैयार है। सड़क के ठेकेदार श्याम जी और उनकी टीम को धन्यवाद जो आपने हमारे अनुरोध पर अपने मशीन से तुरंत ही कार्यवाई की। उन्होंने बताया कि बाढ़ के बाद तुरंत आती है बिमारी जिससे निपटने के लिए हम लोग तैयार थे, मेडिकल विभाग से पहले ही मेडिकल कैम्प केलिए बात कर रखी थी और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सोनबरसा प्राथमिक उपचार केंद्र से आई टीम हमारे पंचायत के अलग अलग गाँव में एक एक दिन का मेडिकल कैम्प लगा रही है जिसमे पटना से भी डॉक्टर आये हैं। सैकड़ों लोगों का उद्धार हमारी सक्रिय चिकित्सकों ने किया जिसके लिए उनके प्रति आभार व्यक्त करती हूँ।
रितु के पति आईएएस (अलायड) अधिकारी हैं और वर्तमान समय में दिल्ली में केंद्रीय सतर्कता आयोग में तैनात हैं। रितु के मुखिया बनने की कहानी रोचक है। अपनी अच्छी खासी आरामदायक जिंदगी छोड़कर रितु ने इस पंचायत के विकास की जिम्मेदारी उठाई है। रितु ने बताया कि 1996 में उनकी शादी 1995 बैच के आईएएस (अलायड) अरुण कुमार से हुई थी। उन्होंने बताया, 'शादी के 15 साल तक जहां पति की पोस्टिंग होती थी, मैं उनके साथ रहती थी। एक बार मैंने पति से कहा कि शादी के इतने साल हो गए हैं। आज तक ससुराल नहीं गई हूं। एक बार चलना चाहिए। मेरी बात सुन घर से सभी लोग नरकटिया गांव जाने को तैयार हो गए। गांव पहुंचने से कुछ दूर पहले ही कार कीचड़ में फंस गई। इसके बाद किसी तरह ससुराल पहुंचे।'
रितु को इस साल का उच्च शिक्षित आदर्श युवा सरपंच, मुखिया पुरस्कार से भी नवाजा गया है। इधर, रितु के इन कार्यों से ग्रामीण भी खुश हैं।
इसके बाद ही रितु ने इस क्षेत्र की तस्वीर बदलने की ठान ली। रितु ने बताया कि इसके बाद से वह यहीं रहने लगी। सबसे पहले उन्होंने गांव की लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। 2015 में नरकटिया गांव की 12 लड़कियों ने पहली बार मैट्रिक की परीक्षा पास की। 2016 में सिंहवाहिनी पंचायत से मुखिया पद के लिए रितु चुनाव लड़ीं। इस चुनाव में वह जीत गईं। इसके बाद वह लगातार यहां के विकास को लेकर काम कर रही हैं। इस बाढ़ में जहां अधिकारी नहीं पहुंचे, वहां रितु नाव पर खुद गईं। रितु को इस साल का उच्च शिक्षित आदर्श युवा सरपंच, मुखिया पुरस्कार से भी नवाजा गया है। इधर, रितु के इन कार्यों से ग्रामीण भी खुश हैं। सिंहवाहिनी के ही रहने वाले महेश्वर कहते हैं कि देश के किसी भी जनप्रतिनिधि के लिए रितु आदर्श हैं।
बाढ़ प्रभावित इस इलाके में लोगो की मदद करने के लिए आगे आने वाली रितु बताती हैं कि कई लोगों ने उनकी मदद की। ऐसे ईश्वर रूपी लोग जो कभी हमसे मिले भी नहीं थे, वो लोग भी मदद को आगे आ रहे हैं। कोलकाता से गौतम शराफ जी का फ़ोन आया, आवाज़ से एकदम युवा लगे, पर मुझे बेटी बोल रहे थे। पता चला बाद में, उनकी उम्र 70 पार है। उन्होंने तुरंत ही राष्ट्रीय स्वयं संघ के अपने साथियों से संपर्क कर के पीड़ितों केलिए त्रिपाल, खाद्य सामग्रियाँ, कपड़े की व्यवस्था कराई और फिर सीतामढ़ी से ओम प्रकाश जी, राजा गुप्ता जी, कैलाश जी और अन्य सहयोगी इस कठिन परिस्थिति में भी हम तक सब सामान ले कर आये।
इंसान युवा होता है, तो जूनून से न की उम्र से। सबसे अच्छ बात है, कि आज पूरे इलाके में सिंहवाहिनी क्षेत्र को रितु के नाम और काम की वजह से जाना जाता है।
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