SheWork: कॅरियर से ब्रेक लेने वाली महिलाओं के लिए कैसे वरदान साबित हो रहा है यह स्टार्टअप
भारत में कॅरियर ब्रेक का मतलब कॅरियर सुसाइड भी है. पुणे का यह स्टार्टअप कॅरियर से ब्रेक लेने वाली महिलाओं को वापस जॉब मार्केट में लौटने और बेहतर स्थितियों में बेहतर शर्तों पर काम करने में मदद कर है.
27 साल की जिगिशा पेशे से डॉट नेट सॉफ्टवेअर डेवलपर हैं. शादी से पहले वह एक बड़ी टेक कंपनी में काम कर रही थीं और महज डेढ़ साल के कॅरियर में पैकेज 12 लाख रु. था. शादी के बाद जिगिशा पुणे जाकर रहने लगीं. नौकरी छोड़नी पड़ी क्योंकि पुणे में उस कंपनी का ऑफिस नहीं था.
कुल मिलाकर जिगिशा ने नौकरी से 9 महीने का ब्रेक लिया था. लेकिन 9 महीने बाद जब उन्होंने वापस काम पर लौटना चाहा तो पता चला कि इन नौ महीनों में उनकी मार्केट वैल्यू, सैलरी, पैकेज, डिमांड सबकुछ बहुत नीचे जा चुका था. 9 महीने का ब्रेक लेकर और शादी करके लौटी लड़की को कोई कंपनी पुराने पैकेज पर भी नौकरी नहीं दे रही थी.
एक स्किल्ड प्रोफेशनल के लिए यह अनुभव काफी निराश करने वाला था. उन्हें महिला होने के नाते यह कीमत चुकानी पड़ रही थी, जिसका सामना पुरुष कभी नहीं करते. वो न शादी के लिए माइग्रेट करते हैं, न मैटरनिटी लीव लेते हैं और न बच्चों की देखभाल के लिए कॅरियर से ब्रेक.
महिलाएं, कॅरियर और SheWork
यह सारी कीमत सिर्फ औरतों को चुकानी पड़ती है. और यहीं रोल शुरू होता है
का. पुणे स्थित एक स्टार्टअप, जो कॅरियर से ब्रेक लेकर काम पर लौट रही महिलाओं की मदद कर रहा है. SheWork ने जिगिशा को अपनी काबिलियत के हिसाब से बेहतर नौकरी ढूंढने में मदद की.SheWork उस समय नया-नया शुरू ही हुआ था. कंपनी ने जिगिशा को यूएस स्थित एक कंपनी के साथ कनेक्ट किया. इस कंपनी का प्रोजेक्ट थोड़ा टेढ़ा था और उसके लिए खास तरह के टेक एक्सपर्टीज की जरूरत थी. वर्किंग आवर्स फ्लेक्जिबल थे. घर से ही काम किया जा सकता था.
जिगिशा को पहले छह महीने के लिए उस प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका मिला. जिगिशा का काम उन्हें इतना पसंद आया कि आज ढ़ाई साल हो गए हैं. अब जिगिशा मां बनने की प्लानिंग कर रही हैं और कंपनी इस जरूरत के प्रति संवेदनशील है.
जिगिशा अकेली नहीं हैं. SheWork उनके जैसी ढेर सारी लड़कियों और महिलाओं को सही कंपनी, बेहतर इंप्लॉयर, बेहतर काम की स्थितियां और बेहतर सैलरी पाने में मदद कर रहा है. आज SheWork के नेटवर्क में 20,000 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं.
कौन हैं SheWork की शुरुआत करने वाली पूजा
SheWork की शुरुआत करने वाली खुद 27 साल की लड़की पूजा बांगड़ हैं. पुणे यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में बैचलर्स करने के बाद पूजा ने कई सारी बड़ी टेक कंपनियों में काम किया. जेनसर, और कॉग्निजेंट (Cognizant) में जिम्मेदार पदों पर रहीं.
कॉग्निजेंट में नौकरी के दौरान पूजा एक जर्मन प्रोजेक्ट पर काम कर रही थीं. SheWork में पूजा के पार्टनर तेजस कुलकर्णी यूके की एक कंपनी में काम कर रहे थे. पूजा और तेजस कॉलेज में साथ पढ़े हैं. उस वक्त पूजा की मैनेजर, जो एक बहुत मेहनती और काबिल महिला थीं, उनका प्रमोशन इसलिए रोक दिया गया क्योंकि वो मैटरनिटी लीव पर चली गई थीं. पूजा को ये बात बहुत बुरी लगी. इतनी मेहनत करने के बाद भी लड़कियां इस तरह कॅरियर में पुरुषों से पिछड़ जाती हैं. वो भी इसलिए क्योंकि स्त्री होने के नाते सिर्फ वही मां बनती हैं, उन्हें ही मैटरनिटी लीव की जरूरत पड़ती है और अधिकांश भारतीय टेक कंपनियां इस बात के प्रति संवेदनशील नहीं हैं.
इस दौरान तेजस से पूजा की बात होती रहती थी कि भारत और यूके में काम की परिस्थितियों में कितना फर्क है. ऐसा नहीं कि भेदभाव वहां नहीं होता, लेकिन काम की परिस्थितियां फिर भी यहां से बहुत बेहतर हैं.
वहीं से आइडिया आया SheWork का. क्यों न हिंदुस्तान में एक ऐसे प्लेटफॉर्म की शुरुआत की जाए, जो महिलाओं को बेहतर नौकरी, मौके, सैलरी और काम की स्थितियां दिलाने में मदद करे. बेहतर शर्तों पर काम के लिए नेगोशिएट करने में मदद करे. इस तरह 2019 में इस स्टार्टअप की शुरुआत हुई.
क्या कहते हैं आंकड़े
मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का आंकड़ा कहता है कि इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IT) के क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी पिछले एक दशक में 34 फीसदी बढ़ी है. हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू की एक रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में 54 फीसदी औरतों के कॅरियर पर मैटरनिटी लीव का नकारात्मक असर पड़ता है. 8 फीसदी काम से ब्रेक लेने के बाद काम पर नहीं लौटतीं. 38 फीसदी सीनिएरिटी, पोजीशन और सैलरी में पिछड़ जाती हैं.
साल 2018 में आई अशोका यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 50 फीसदी महिलाएं मैटरनिटी के कारण नौकरी छोड़ देती हैं और उसमें से सिर्फ 27 फीसदी काम पर वापस लौटती हैं.
आंकड़े कहते हैं कि भारत में औरतों के काम की स्थितियां बहुत अच्छी नहीं है. पूरे वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ 27 फीसदी है.
यह स्टार्टअप कैसे बन रहा है मददगार
कॅरियर में लौटने की कोशिश कर रही महिलाओं को यह स्टार्टअप उनकी योग्यता, डिग्री और जरूरत के हिसाब से सही इंप्लॉयर तक पहुंचने में मदद करता है. हर महिला की जरूरत अलग है. किसी को फुलटाइम जॉब चाहिए, कोई फ्लेक्जिबल वर्किंग आवर्स के साथ काम करना चाहती है. SheWork उनकी जरूरत के हिसाब से उन्हें सही व्यक्ति तक पहुंचने में मदद करता है. आज की तारीख में टेक महिंद्रा, रेबेल फूड्स और टीसीएस जैसी बड़ी टेक कंपनियां SheWork के साथ जुड़ी हुई हैं.
लेकिन इसके अलावा महिलाओं को कई बार और भी तरह की मदद की दरकार होती है. पूजा बांगड़ एक और केस स्टडी बताती हैं. नागपुर के एक बेहद पारंपरिक परिवार की लड़की की नौकरी बैंगलौर में लगी. माता-पिता नौकरी करने के खिलाफ नहीं थे, लेकिन नागपुर से बाहर जाकर काम करने पर उन्हें ऐतराज थी. कारण वही थे, जो अकसर होते हैं. नया शहर, कोई जान- पहचान नहीं, सुरक्षा को लेकर फिक्र वगैरह. चूंकि यह नौकरी SheWork के जरिए मिली थी तो नौकरी के अलावा नए शहर में लड़की को सेटल करने में SheWork ने अहम भूमिका अदा की. कहना नहीं होगा कि इसमें पारंपरिक माता-पिता को राजी करने की कोशिश भी शामिल थी.
पूजा कहती हैं, भारत में महिलाओं को बहुत तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में ज्यादा संवेदनशील होने और उनकी खास जरूरतों को समझकर उसके मुताबिक व्यवहार करने की जरूरत है. आप सिर्फ यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से बरी नहीं हो सकते कि ये सब मेरा काम
नहीं है.
पूजा कहती है, “टेक वर्ल्ड में महिलाओं की संख्या अच्छी खासी है, लेकिन आप आंकड़े देखेंगे तो पाएंगे कि एंट्री लेवल और उससे थोड़े ऊपरी लेवल पर तो बहुत सारी महिलाएं हैं, लेकिन मिड और सीनियर लेवल तक आते-आते महिलाओं की संख्या कम होती जाती है.”
तीन साल के भीतर SheWork 20,000 महिलाओं का एक बड़ा नेटवर्क खड़ा कर लिया है. यह संख्या धीरे-धीरे और बढ़ रही है. पूजा भविष्य को लेकर बहुत आशान्वित हैं. वो कहती हैं, "महिलाएं भी पुरुषों की तरह सफल हो सकती हैं, कॅरियर में ऊंचा मुकाम हासिल कर सकती हैं, बशर्ते उन्हें सही प्लेटफॉर्म और सही मदद मिले.”