दर्द के दरिया में जीवन भर तैरते रहे जाने-माने गीतकार इंदीवर
जाने-माने गीतकार इंदीवर की पुण्यतिथि पर विशेष...
होंठों से छू लो तुम, चंदन सा बदन चंचल चितवन, फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो, कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, है प्रीत जहाँ की रीत सदा, जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे, दुश्मन न करे दोस्त ने जो काम किया है, बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम जैसे सुपरहिट गीत देने वाले स्वतंत्रता सेनानी कवि इंदीवर की आज (27 फरवरी) पुण्यतिथि है।
इंदीवर जब बहुत कम उम्र के थे, उनके माता-पिता का निधन हो गया था। बड़ी बहन उनको घर-गृहस्थी के सारे सामानों के साथ अपनी ससुराल ले गईं लेकिन कुछ वक्त बाद वह बरुवा सागर लौट गए।
झांसी (उ.प्र.) के बरुवा सागर कस्बे में 15 अगस्त, 1924 को जनमे इंदीवर का असली नाम श्यामलाल बाबू राय है। मुम्बई से 26 फरवरी, 1999 को वह जब अपने पैतृक नगर बरूवा सागर जा रहे थे, रास्ते में ही उनको दिल का दौर पड़ा और अगले दिन उनका निधन हो गया। झांसी में उनके नाम से इंदीवर मोहल्ला भी है। एक गरीब परिवार से निकल कर इंदीवर सबसे पहले स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। अंग्रेजी शासन को लक्ष्यकर इंदीवर ने जब उन दिनो ‘ओ किराएदारों कर दो मकान खाली' गीत लिखा तो उन्हे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। ऐसे कवि के लिए इससे बड़ी दुखद बात और क्या हो सकती है कि देश आजाद होने के दो दशक बाद उन्हें स्वतंत्रता सेनानी माना गया।
कविता करने का उन्हें बचपन से ही शौक था। उन दिनों वह ‘आजाद' नाम से कविताएं लिखा करते थे। आंदोलन में भाग लेने के साथ ही कविसम्मेलनों में भी शिरकत किया करते थे। इंदीवर जब बहुत कम उम्र के थे, उनके माता-पिता का निधन हो गया था। बड़ी बहन उनको घर-गृहस्थी के सारे सामानों के साथ अपनी ससुराल ले गईं लेकिन कुछ वक्त बाद वह बरुवा सागर लौट गए। उन्हीं दिनो कस्बे के फक्कड़ बाबा एक पेड़ के नीचे बैठकर भिक्षाटन किया करते थे। वह अच्छे गायक भी थे। चंग पर जोर जोर से गाते। इंदीवर की फक्कड़ बाबा से संगति हो गई। बाबा के चढ़ावे से इंदीवर उनके लिए गांजा आदि लाया करते क्योंकि बाबा चढ़ावे के पैसे छूते नहीं थे। उनके खाने भी पका दिया करते। उन्हीं के साथ भोजन भी कर लिया करते। बाबा भी कविताएं लिखा करते थे।
उन्हीं दिनो इंदीवर का रामसेवक रिछारिया से परिचय हुआ। वह इंदीवर की कविताएं संपादित करने लगे। इंदीवर के पास कमाई धमाई का और माध्यम नहीं था। वह बबीना, मऊरानीपुर, झाँसी, दतिया, ललितपुर, टीकमगढ़, ओरछा, चिरगाँव आदि के कविसम्मेलनों में जाने लगे। कविताएं खूब सराही जाने लगी। पारिश्रमिक भी मिलने लगे। उसी से उनकी जिंदगी के एक एक दिन कटने लगे। वह कस्बे के परिचितों के यहां बुलाने पर भोजन-पानी कर लिया करते थे। जिंदगी की मुश्किलें हजार थीं, जीने के संसाधन एकदम सीमित। उनको बांसुरी बजाने का भी शौक था। कभी झांसी की बेतवा नदी तो कभी तालाब के किनारे घंटों बांसुरी बजाते रहते। यह सधुक्कड़ी और यायावरी भोगते हुए वह फिल्मी गीतकार बनने के सपने भी देखा करते थे।
उसी बीच बिना मर्जी के अपनी शादी से रूठकर एक दिन वह मुंबई भाग गए। उस समय उनकी उम्र मात्र बीस साल थी। वहां फिल्म निर्देशकों, कवि-साहित्यकारों की परिक्रमा करते रहे। आखिरकार 1946 में फिल्म ‘डबल फेस' में उनका पहला गीत दर्शकों तक पहुंचा। गीत चला नहीं। वह फिर बरुवा सागर लौट गए लेकिन मुम्बई आते-जाते रहे। इधर दांपत्य जीवन सहज होने लगा था। दोबारा जाकर मुंबई में संघर्ष करने लगे। सन् 1951 में जब फिल्म ‘मल्हार' का गीत ‘बड़े अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम' ने धूम मचाई, उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और पायदान-दर-पायदान बुलंदियां छूते गए। बताते हैं कि वह लाख कोशिश के बावजूद जब अपनी धर्मपत्नी पार्वती, जिसे वह पारो कहते थे, मुंबई न ले जा सके तो उनके गीत विरह और जुदाई के स्वाद में रंगने लगे थे।
इंदीवर को मुंबई में अपनी पहचान बनाने में लगभग एक दशक तक कठिन संघर्ष करना पड़ा। 1963 मे बाबू भाई मिस्त्री की फिल्म 'पारसमणि' की सफलता के बाद इंदीवर की भी शोहरत बुंलदियों पर पहुंच गई। निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार के वह काफी निकट हो गए। मनोज कुमार के कहने पर उन्होंने फिल्म 'उपकार' के लिए गीत लिखा- कस्मे, वादे, प्यार, वफा..जो छा गया। इसके बाद उनका मनोज कुमार की ही फिल्म 'पूरब और पश्चिम' का गीत - दुल्हन चली वो पहन चली, कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे जैसे सदाबहार गीत लिखकर अपना अलग ही मोकाम बना लिया।
इसके बाद तो उनके एक से एक गीत - चंदन सा बदन, मैं तो भूल चली बाबुल का देश, होंठों से छू लो तुम, फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो, कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, है प्रीत जहाँ की रीत सदा, जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे, दुश्मन न करे दोस्त ने जो काम किया है आदि तमाम सुपरहिट गीत दिए। मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म सच्चा-झूठा के लिये उनका लिखा एक गीत मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनियां.. को आज भी शादियों के मौके पर सुना जाता है।
निर्माता निर्देशक राकेश रौशन की फिल्मों के लिए इंदीवर ने सदाबहार गीत लिखकर उनकी फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके सदाबहार गीतों के कारण ही राकेश रौशन की ज्यादातार फिल्में आज भी याद की जाती हैं। इन फिल्मों में खासकर कामचोर, खुदगर्ज, खून भरी मांग, काला बाजार, किशन कन्हैया, किंग अंकल, करण अर्जुन और कोयला जैसी फिल्में शामिल हैं। राकेश रौशन के अलावा उनके पसंदीदा निर्माता- निर्देशकों में फिरोज खान भी रहे हैं। लेकिन संगीतकार कल्याणजी-आनंद जी उनके दिल के काफी करीब रहे।
सबसे पहले इस जोड़ी का गीत संगीत वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म हिमालय की गोद में पसंद किया गया। इसके बाद इंदीवर द्वारा रचित फिल्मी गीतो में कल्याणजी- आनंदजी का ही संगीत हुआ करता था। ऐसी फिल्मो में उपकार, दिल ने पुकारा, सरस्वती चंद्र, यादगार, सफर, सच्चा झूठा, पूरब और पश्चिम, जॉनी मेरा नाम, पारस, उपासना, कसौटी, धर्मात्मा, हेराफेरी, डॉन, कुर्बानी, कलाकार आदि फिल्में हैं। वर्ष 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म जॉनी मेरा नाम में ‘नफरत करने वालों के सीने में.....' ‘पल भर के लिये कोई मुझे...' जैसे रूमानी गीत लिखकर इंदीवर ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। कल्याणजी-आनंदजी के अलावा इंदीवर के पसंदीदा संगीतकारों में बप्पी लाहिरी और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकार भी हैं।
उनके गीतों को किशोर कुमार, आशा भोंसले, मोहम्मद रफी, लता मंगेश्कर जैसे चोटी के गायक कलाकारों ने अपने स्वर दिए। इंदीवर के सिने कैरियर पर यदि नजर डाले तो अभिनेता जितेन्द्र पर फिल्माये उनके रचित गीत काफी लोकप्रिय हुआ करते थे। इन फिल्मों मे दीदारे यार, मवाली, हिम्मतवाला, जस्टिस चौधरी, तोहफा, कैदी, पाताल भैरवी, खुदगर्ज, आसमान से ऊंचा, थानेदार जैसी फिल्में शामिल हैं। वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म अमानुष के लिये इंदीवर को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। उन्होंने लगभग तीन सौ फिल्मों में गीत लिखे।
मुंबई की शोहरत ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। उनका पैतृक गाँव बरूवासागर भूलता चला गया। शोहरत, शराब और पैसे ने भटका दिया। पहले पंजाबी समुदाय की स्त्री के जीवन में शामिल हुए, फिर गुजराती समुदाय की महिला से रिश्ता हो गया लेकिन तब भी वह पहली धर्मपत्नी पार्वती को नहीं भूल पाए थे। इधर, पार्वती भी एक छोटी सी दुकान, साथ ही स्वतंत्रता सेनानी के रूप में इंदीवर को मिलने वाली पेंशन से दिन काटती रहीं। उनका भी 2005 में निधन हो गया।
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