फुटपाथ पर चलने वाला एक ऐसा अस्पताल, जहां फ्री में होता है बेसहारों का इलाज
पिछले 25 सालों से दिल्ली में चल रहा है फुटपाथ क्लिनिक...
दिल्ली में एक अस्पताल ऐसा भी है, जो मानवता की सच्ची मिसाल पेश कर रहा है। इस अस्पताल का सारा जिम्मा कमलजीत सिंह और उनकी टीम उठाती है। कमलजीत पिछले 25 सालों से दिल्ली में 7 अलग-अलग जगहों पर फुटपाथ क्लिनिक की सेवाएं मुफ्त देते हैं।
'चांदनी चौक के इलाके में कोई भी गरीब या बेसहारा बीमार या चोटिल होता है तो रिक्शा वाले उसे यहां इलाज के लिए छोड़ जाते हैं। उसके बाद हम उन्हें सबसे पहले प्राथमिक उपचार देते हैं। उन्हें इंजेक्शन और दवाईयां भी दी जाती हैं।'
इस टीम के एक डॉक्टर एस. एस. अग्रवाल कहते हैं कि इन मरीजों की हालत ऐसी होती कि कोई इन्हें छूना नहीं चाहता, लेकिन उन्हें इनका इलाज करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती, बल्कि उन्हें तो इस काम से खुशी महसूस होती है।
डॉक्टरों को यूं ही नहीं भगवान का दर्जा दिया गया है। अपने पेशे से न जाने कितने लोगों की जिंदगी बचाने वाले कुछ डॉक्टर दिल्ली में गरीब और बेसहारों का न केवल फ्री में इलाज कर रहे हैं बल्कि उन्हें खाने-पीने की चीजें भी उपलब्ध कराते हैं। शीशगंज गुरुद्वारा के सामने लगने वाले फुटपाथ क्लीनिक में हर रोज न जाने कितने गरीब और मजदूरों के घावों पर मरहम लगाए जाते हैं। मानवता की सच्ची मिसाल पेश करने वाले इस चलते फिरते अस्पताल का सारा जिम्मा कमलजीत सिंह और उनकी टीम उठाती है। वे पिछले 25 सालों से दिल्ली में 7 अलग-अलग जगहों पर फुटपाथ क्लिनिक की सेवाएं मुफ्त देते हैं।
कमलजीत पिछले 27 सालों से इस काम को अंजाम दे रहे हैं। अब तक उन्होंने लगभग 10 लाख लोगों का इलाज किया होगा। जहां भी अस्पताल लगता है वहां मरीज सुबह 7 बजे से ही पहुंचनाा शुरू कर देते हैं। कमलजीत सिंह सिक्योरिटी एजेंसी चलाते हैं वे बताते हैं कि उनके पिता त्रिलोचन सिंह वीर ने उन्हें लोगों की सेवा करने के लिए प्रेरित किया। उनके पिता ने ही 1989 में इस क्लिनिक की शुरुआत की थी, जिसे कमलजीत न केवल आगे बढ़ा रहे हैं बल्कि उसका विस्तार भी कर रहे हैं। उनकी टीम में अभी इस वक्त लगभग 500 वॉलंटीयर हैं जो हमेशा उनका सहयोग करने के लिए तत्पर रहते हैं।
कमलजीत ने बताया, 'चांदनी चौक के इलाके में कोई भी गरीब या बेसहारा बीमार या चोटिल होता है तो रिक्शा वाले उसे यहां इलाज के लिए छोड़ जाते हैं। उसके बाद हम उन्हें सबसे पहले प्राथमिक उपचार देते हैं। उन्हें इंजेक्शन और दवाईयां भी दी जाती हैं।' कमलजीत की टीम में चार एलोपैथी और दो होम्यापैथी डॉक्टर हैं। वे मरीजों को दवा देते हैं। इन डॉक्टरों के खुद के क्लीनिक भी हैं। कुछ डॉक्टर ऐसे भी हैं जो किसी अस्पताल में नौकरी करते हैं। सुबह इन मरीजों को देखने के बाद ये डॉक्टर अपने-अपने काम पर निकल जाते हैं।
इस टीम के एक डॉक्टर एस. एस. अग्रवाल कहते हैं कि इन मरीजों की हालत ऐसी होती कि कोई इन्हें छूना नहीं चाहता, लेकिन उन्हें इनका इलाज करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती, बल्कि उन्हें तो इस काम से खुशी महसूस होती है। टीम में कुछ वॉलंटियर ऐसे हैं जो कई सालों से इनसे जुड़े हुए हैं। ऐसी ही एक समाजसेवी हरबंश कौर बताती हैं कि वे पिछले 25 सालों से यहां लगातार आ रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कभी डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं की, लेकिन धीरे-धीरे डॉक्टरों के साथ काम करने पर उन्हें सब मालूम चल गया। अब वे पूरे नि:स्वार्थ भाव से डॉक्टरों के काम में मदद करती हैं।
इतना ही नहीं मरीजों के खाने का भी इंतजाम होता है। इन्हें दिवाली के मौके पर मिठाईयां भी वितरित की जाती हैं। इन डॉक्टरों की खासियत ये है कि ये मौसम की परवाह नहीं करते। बारिश, धूप, ठंड कोई भी मौसम हो अस्पताल की टीम के सदस्य सुबह 8.30 बजे निश्चित जगहों पर पहुंच जाते हैं। वे रोजाना दो घंटे करीब 200 से अधिक मरीजों को मुफ्त में दवा देने और मरहम-पट्टी का काम करते हैं। कोई घाव धोता है तो कोई पट्टी बांधता है। टीम में कुल 6 डॉक्टर हैं। इतना ही नहीं अगर किसी बेसहारा मरीज की मौत हो जाती है या कोई लावारिस शव इन्हें मिल जाता है तो वे उसका पूरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार भी करते हैं। आज के दौर में जब रास्तों में किसी दुखी इंसान को नजरअंदाज करते हुए हम आगे बढ़ जाते हैं वहां ऐसे लोग जिंदगी की सच्ची मिसाल पेश कर रहे हैं।
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