भारत की पहली महिला IAS के बारे में जानते हैं आप?
अधिकांश भारतीयों ने भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी के बारे में जरूर सुन रखा है, लेकिन कुछ ही लोगों को भारत की पहली महिला आईएएस अधिकारी के बारे में पता है।
ऐसे वक्त में जब ज्यादातर भारतीय महिलाएं शादी कर लेने को ही अपने युवा जीवन का उद्देश्य समझती थीं, उनमें से किसी ने भी सिविल सेवा में शामिल होने की कोशिश नहीं कीं, तब अन्ना राजम मल्होत्रा भारत की पहली महिला आईएएस अधिकारी की राह पर बढ़ रही थीं।
वह सचिवालय में पद प्राप्त करने वाली भी पहली महिला थीं। इस प्रेरक, दृढ़ और हठीली ईमानदार महिला की एक प्रेरणादायक कहानी है।
अधिकांश भारतीयों ने भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी के बारे में जरूर सुन रखा है, लेकिन कुछ ही लोगों को भारत की पहली महिला आईएएस अधिकारी के बारे में पता है। ऐसे वक्त में जब ज्यादातर भारतीय महिलाएं शादी कर लेने को ही अपने युवा जीवन का उद्देश्य समझती थीं, उनमें से किसी ने भी सिविल सेवा में शामिल होने की कोशिश नहीं कीं, तब अन्ना राजम मल्होत्रा भारत की पहली महिला आईएएस अधिकारी की राह पर बढ़ रही थीं। वह सचिवालय में पद प्राप्त करने वाली भी पहली महिला थीं। इस प्रेरक, दृढ़ और हठीली ईमानदार महिला की एक प्रेरणादायक कहानी है।
अन्ना को खूब परेशान किया गया, वो औरत थीं इसलिए उनकी काबिलियत पर हमेशा शक किया गया। यहां तक कि उनकी महिला सहकर्मी भी उनके निर्णय का मजाक उड़ाती थीं। लेकिन अन्ना ने किसी की एक न सुनी। वो बस अपने राह चलती रहीं। एक दिन उन्होंने इतिहास रच ही दिया। उन्होंने 1950 में सिविल सर्विसेस की परीक्षा पास की थी। उनकी प्रतिभा के बावजूद पैनल ने उन्हें फॉरेन सर्विसेज या फिर सेंट्रल सर्विसेज ज्वॉइन करने की सलाह दे डाली, सिर्फ इसलिए कि उनके हिसाब से ये क्षेत्र महिलाओं के लिए ज्यादा मुफीद थे। लेकिन अन्ना वहां भी नहीं झुकीं। उनके अपॉइंटमेंट पर उस वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री सी राजगोपालाचारी ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट सब कलेक्टर बनाने की बजाय सीधे सचिवालय में नियुक्त कर दिया।
अन्ना केवल पढ़ाई में ही स्ट्रॉन्ग नहीं थीं बल्कि उन्होंने रायफल, पिस्टल शूटिंग, घुड़सवारी में भी फुल ट्रेन्ड थीं। वो चाहती थीं कि वो किसी भी तरह अपने पुरुष सहकर्मियों से कमतर न रहें। लैंगिक भेदभाव किस कदर हावी था, ये बताता है अन्ना को दिया गया एक एग्रीमेंट। जिसमें लिखा था कि अन्ना सर्विस के दौरान शादी नहीं कर सकतीं, अगर वो शादी करती हैं तो सर्विस टर्मिनेट हो जाएगी। ऐसा कोई नियम पुरुषों के लिए नहीं था, केवल महिलाओं के लिए ही ये बाधा बना दी गई थी। हालांकि कुछ सालों बाद ये नियम हटा लिया गया।
अन्ना के नेतृत्व में देश का पहला कम्प्यूटराइज्ड कंटेनर पोर्ट बनावाया गया था। ये पोर्ट मुंबई था और जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह के नाम से जाना जाता है। 1982 में उन्होंने पंडित नेहरू को एशियाड सम्मेलन में असिस्ट भी किया था। वो इंदिरा गांधी के साथ फूड प्रोडक्शन पैटर्न को समझने के लिए आठ राज्यों की यात्रा पर भी गई थीं। बड़ी बात ये है कि उस वक्त उनका टखना टूटा हुआ था। एक बार क्या हुआ कि एक गांव में हाथियों का बड़ा आतंक फैल गया था। अन्ना पर दबाव था कि वो हाथियों तो मारने का आदेश दे दें। लेकिन अन्ना कैसे निरीह जानवरों की हत्या करवा सकती थीं। उनकी तो गलती केवल इतनी थी कि वो अपने घर में हुई दखलंदाजी से आजिज आकर बाहर बस्तियों में आ गए थे। अन्ना ने बड़ी ही सूझबूझ और अपने जीव व्यवहार के ज्ञान से उनको वापस जंगल भेज दिया था। उनके कारनामे से हर कोई हैरानी में था।
17 जुलाई, 1927 को उनका जन्म केरल के एक गांव में हुआ था। वह कालीकट में बड़ा हुईं और प्रोविडेंस महिला कॉलेज से अपनी मध्यवर्ती शिक्षा पूरी की। कालीकट के मालाबार ईसाई कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद, अन्ना मद्रास चली गईं जहां उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की। अपने करियर के दौरान, अन्ना राजाम मल्होत्रा ने साबित कर दिया कि वो इस सफलता के लिए तरह से योग्य थीं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि लैंगिक भेदभाव का एक समाज में कोई स्थान नहीं हैं। उनकी जीवनशैली दिखाती हैं कि महिलाओं को अवसरों की जरूरत नहीं है, संरक्षण नहीं। उन्होंने राजनीतिक शख्सियत बनने से इनकार कर दिया और भारत के कुछ सबसे शक्तिशाली नेताओं के सामने भी कभी नहीं झुकीं। उनका ये व्यवहार देश के तमाम नौकरशाहों के सामने एक उदाहरण रखता है।
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