तुहिन एक ऐसा बच्चा है, जिसके हाथ-पैर काम नहीं करते। उसकी मांसपेशियां बेहद कमजोर हैं, जिसकी वजह से चलना फिरना तो दूर, हिलना-डुलना और अपने हाथों से खाना-पीना सबकुछ मुश्किल है, लेकिन उसका दिमाग अपनी उम्र के बाकी बच्चों से काफी तेज़ चलता है। वो सामान्य स्टूडेंट्स के साथ पढ़ता है और उनसे बेहतर कम्प्यूटर की नॉलेज रखता है। ऐसे में तुहिन को भारत का स्टीफन हॉकिंग कहना अतिश्योक्ति नहीं...
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तुहिन डे मूलरूप से पश्चिम बंगाल के मिदनापुर का रहने वाला है। उसने क्लास 9 तक की पढ़ाई आईआईटी खड़गपुर कैम्पस में सेन्ट्रल स्कूल से की और एनटीएसई में स्कॉलर बना। अब वो खड़गपुर के आईआईटी से कम्प्यूटर साइंस में बीटेक करना चाहता है।
तुहिन की प्रतिभा को देखते हुए पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ने उसे कई पुरस्कार दिये हैं, साथ ही ह्यूमन रिसोर्स मिनिस्ट्री द्वारा 2012 में तुहिन को 'बेस्ट क्रिएटिव चाइल्ड अवार्ड' और 2013 में 'एक्सेप्शनल अचीवमेंट अवार्ड' से भी नवाज़ा जा चुका है।
वो कहते हैं न कि पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। 17 साल के तुहिन डे ने इस काहवत को सच कर दिखाया है। तुहिन के हाथ-पैर काम नहीं करते। उसे सेरिब्रल पॉल्सी है, यानी एक ऐसी अवस्था जिसमें मांसपेशियां बेहद कमजोर हो जाती हैं। जिसकी वजह से चलना फिरना तो दूर, हिलना-डुलना, खाना-पीना सब दुश्वार हो जाता है। चलता है तो सिर्फ दिमाग। इसके बावजूद वो आम भाषा में जिन्हें 'सामान्य' कहा जाता है, उन विद्यार्थियों के साथ पढ़ता है, मोबाइल/कम्प्यूटर ऑपरेटर करता है और कॉपी में लिखता भी है। साथ ही, 'सामान्य' स्टूडेंट्स से बेहतर कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के बारे में भी जानता है।
तुहिन स्टीफन हॉकिंग की तरह बनना चाहता है। स्टीफन हॉकिंग को तो आप जानते ही होंगे? स्टीफन दुनिया के सबसे बड़े साइंटिस्ट हैं, जिन्हें ऐम्योट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस है। इस बिमारी में दिमाग का जो हिस्सा मांसपेशियों को कंट्रोल करता है, वो काम नहीं करता। नतीजतन स्टीफन चल फिर नहीं पाते। लेकिन वो दुनिया के बेहतरीन वैज्ञानिकों में से एक हैं।
स्टीफन पर वैसे तो बीबीसी ने डाक्यूमेंट्री बनाई है, साथ ही इनपर 'द थ्योरी ऑफ़ एव्रीथिंग' नाम की फिल्म भी आई है। स्टीफन को अपना रोल मॉडल मानने वाला तुहिन एस्ट्रो फिजिक्स में रिसर्च करना चाहता है और वहां तक पहुंचने के लिए ही वो राजस्थान के कोटा में कोचिंग करने आया है। कोटा के एलन करियर इंस्टीट्यूट में एडमिशन लेने के बाद तुहिन आईआईटी की कोचिंग कर रहा है। कमाल की बात तो ये है, कि तुहिन के मम्मी-पापा जब एलन के डायरेक्टर नवीन माहेश्वरी से मिले, तो माहेश्वरी ने निर्देश दिया कि तुहिन को फ्री में पढ़ाया जायेगा। कोचिंग में तुहिन के बैठने के लिए स्पेशल टेबल भी तैयार की गई है, ताकि वो मुंह से आसानी से लिख सके।
तुहिन डे मूलरूप से पश्चिम बंगाल के मिदनापुर का रहने वाला है। उसने क्लास 9 तक की पढ़ाई आईआईटी खड़गपुर कैम्पस में सेन्ट्रल स्कूल से की। वो एनटीएसई में भी स्कॉलर बना। अब वो खड़गपुर के आईआईटी से कम्प्यूटर साइंस में बीटेक करके आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जाना चाहता है। तुहिन का मानना है, कि अॉक्सफोर्ड में स्टीफन हॉकिन्स से मिला जा सकता है। तुहिन की प्रतिभा को देखते हुए पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ने कई पुरस्कार दिये। इसके अलावा ह्यूमन रिसोर्स मिनिस्ट्री ने 2012 में उसे 'बेस्ट क्रिएटिव चाइल्ड अवार्ड' और 2013 में 'एक्सेप्शनल अचीवमेंट अवार्ड' दिया।
तुहिन के पिता समीर के मुताबिक,
"हमने तुहिन के इलाज में भी कोई कमी नहीं छोड़ी है. उसका कोलकाता और वैल्लूर में कई सालों तक इलाज करवाया। अब तक 20 ऑपरेशन हो चुके हैं। हड्डियों को सीधा रखने के लिए उसके शरीर में प्लेट्स तक डाली गई हैं।"
तुहिन अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। पिता समीरन डे प्रोपर्टी का छोटा-सा व्यवसाय करते हैं। मां सुजाता डे गृहिणी हैं। तुहिन को स्कूल छोड़ने के लिए दोनों को रोजाना करीब 50 किलोमीटर तक का सफर तय करना पड़ता है।