मुंबई पुलिस ने चंदा इकट्ठा कर 65 साल की बेसहारा महिला को दिलाया आसरा
मुंबई पुलिस ने एक बार फिर पेश किया किया अपनी दरियादिली का उदाहरण...
ऐसी कई घटनाएं हमें देखने को मिलती हैं जहां पुलिस के लोग अपने काम से सबका दिल जीत लेते हैं। कुछ ऐसा ही किया है मुंबई पुलिस ने। मुंबई पुलिस ने एक 65 साल की बेसहारा महिला को न केवल आसरा दिलाया बल्कि आर्थिक तौर पर उसकी मदद भी की।
स्टेशन स्टाफ के लगभग 250 लोगों ने थोड़ा-थोड़ा पैसा जुटाकर 30,000 रुपये लता को दिए और उनके नाम से एक खाता भी खुलवा दिया।
आमतौर पर लोग पुलिस से दूर ही रहना पसंद करते हैं। एक धारणा बन गई है कि पुलिस आम आदमी की मदद नहीं करती है। लेकिन जब जरूरत आन पड़ती है तो हम उसी पुलिस के पास जाते हैं। इसे सिस्टम की नाकामी कहें या दृढ़निश्चयता का आभाव, अधिकतर लोगों का यही कहना होता है कि पुलिस का रवैया अच्छा नहीं होता। लेकिन ऐसी कई घटनाएं हमें देखने को मिलती हैं जहां पुलिस के लोग अपने काम से सबका दिल जीत लेते हैं। कुछ ऐसा ही किया है मुंबई पुलिस ने। मुंबई पुलिस ने एक 65 साल की बेसहारा महिला को न केवल आसरा दिलाया बल्कि आर्थिक तौर पर उसकी मदद भी की।
यह घटना मुंबई के साकीनाका पुलिस स्टेशन की है। डीएनए की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते सप्ताह 65 वर्षीय लता परदेशी का घर अतिक्रमण हटाओ अभियान में तोड़ दिया गया। लता साकीनाका के मोहाली पाइपलाइन इलाके में एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर बीते 20 सालों से रह रही थीं। जब उनका घर अतिक्रमण के चलते गिरा दिया गया तो वे मदद के लिए पुलिस स्टेशन दौड़ी चली आईं। वहां पुलिसवालों ने पहले तो लता को भिखारी समझ लिया, लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि उनकी समस्या गंभीर है।
साकीनाका पुलिस स्टेशन में तैनात सब इंस्पेक्टर नीलेश भालेराव ने कहा, 'मैं उस वक्त ड्यूटी पर ही था जब वे हमारे पास आईं। उनका हुलिया किसी भिखारी की तरह लग रहा था, लेकिन वह रहने के लिए आसरा मांग रही थीं। उन्होंने मुझे बताया कि उनका घर तोड़ दिया गया है।' लता पाइपलाइन इलाके में ही काम भी करती थीं। लेकिन घर गिर जाने के बाद न तो उनके पास रहने को छत थी और न ही पैसे कमाने के लिए काम। पुलिस ने उनकी मदद करने की सोची, लेकिन उनकी उम्र आड़े आ रही थी। दरअसल पुलिस आवास में महिलाओं के लिए जो कमरा था वो तीसरी मंजिल पर था जहां चढ़ पाना लता के लिए नामुमकिन सा था।
भालेराव ने बताया, 'हमने कई ओल्डएज होम्स, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को फोन किया और उनसे अनुरोध किया कि वे लता को सहारा दें। लेकिन उनमें से कोई भी लता को रखने को राजी नहीं हुआ। कुछ ने कहा कि उनके पास जगह ही नहीं है।' यह सुनकर थोड़ा अजीब लगता है क्योंकि सामाजिक कार्यकर्ता और नेता अक्सर लंबी चौड़ी बातें करते हैं और खुद को गरीबों का मसीहा बताते नहीं थकते, लेकिन जब हकीकत में किसी की मदद की बात आती है तो हाथ खड़े कर लेते हैं।
हालांकि भालेराव का प्रयास जारी रहा और उन्होंने अपने पुलिस विभाग में काम करने वाले सभी लोगों से कुछ पैसे इकट्ठा किए और लता को दिए। इसके साथ ही उन्होंने लता को कजरत के एक होम में आसरा भी दिलवाया। उन्होंने लता को वहां पहुंचाया। भालेराव बताते हैं, 'स्टेशन स्टाफ के लगभग 250 लोगों ने थोड़ा-थोड़ा पैसा जुटाकर 30,000 रुपये लता को दिए और उनके नाम से एक खाता भी खुलवा दिया।' भालेराव ने कहा कि वह उनकी मां जैसी हैं और वे अपनी मां को बेसहारा भटकने को कैसे छोड़ सकते हैं? भालेराव की बात सुनकर हम सब भले ही खुश हो जाएं, लेकिन हकीकत में हम भालेराव को शुक्रिया कहना चाहते हैं तो हमें भी अपना दिल उनके जैसा करना होगा।
यह भी पढ़ें: आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाली सोनी सोरी को मिला इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड