थोड़ी सी मदद क्या मिली, खिल उठी चैतराम की जिंदगी
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
जिला मुख्यालय से लगभग 65 किमों की दूरी पर विकासखण्ड-पण्डरिया का गांव पोलमी है। पोलमी की पहचान वैसे तो पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण है ही और साथ में बैगा बाहूल्य गांव होना भी है।

चैतराम
विशेष पिछड़ी जनजाति से आने वाले बैगा समाज के लोगों के लिये विभिन्न योजनाओं से अनेकों कार्य किये गये। चैतराम बैगा पिता झिंगरू का जीवन भी शासकीय योजनाओं से आज बदल सा गया है।
ऊँचे पहाड़ों एवं जंगल के किनारे प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसे ग्राम पंचायत-पोलमी निवासी चैतराम बैगा की यह कहानी जीवन में शासकीय योजनाओं से हुये विकास की गाथा जैसी है। योजनाओं का बेहतर तरीके से प्रबंधन कर उसका लाभ कैसे किसी जरूरतमंद को देकर आत्मनिर्भर बनाने की ओर एक प्रेरणादायक कदम है। जिला मुख्यालय से लगभग 65 किमों की दूरी पर विकासखण्ड-पण्डरिया का गांव पोलमी है। पोलमी की पहचान वैसे तो पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण है ही और साथ में बैगा बाहूल्य गांव होना भी है। विशेष पिछड़ी जनजाति से आने वाले बैगा समाज के लोगों के लिये विभिन्न योजनाओं से अनेकों कार्य किये गये। चैतराम बैगा पिता झिंगरू का जीवन भी शासकीय योजनाओं से आज बदल सा गया है।
कभी टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने को मजबूर चैतराम मौसमी प्रकोप से भी बहुत प्रभावित होते थे, क्योंकि झोपड़ी होने के कारण बरसात में पूरा घर गीला हो जाता था, जिसके कारण रहने, सोने एवं खाने-पीने की समस्या होती थी। चैतराम के घर में उनकी पत्नि, दो बेटे एवं बहू साथ में रहते हैं। छोटा सा झोपड़ी होने के कारण गुजर-बसर करना भी मुश्किल हो रहा था। भारत सरकार की सामाजिक आर्थिक एवं जातिगत जनगणना 2011 में चैतराम बैगा का नाम पात्रता की सूची मे शामिल था। आर्थिक स्थिति को देखकर ग्राम सभा ने इनका नाम प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण हेतु सर्वसहमति से प्रस्ताव पारित कर लाभांवित करने का फैसला किया। रोटी, कपड़ा और मकान जैसी जीवन की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिये जिला प्रशासन ने भी बेहतर प्रयास किये।
चैतराम की आवश्यकता को देखते हुये 1.30 लाख की लागत से प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के द्वारा इनके लिये पक्का मकान स्वीकृत किया गया। चैतराम बैगा ने भी अपनी ओर से कुछ पैसे मिलाते हुये मकान को बड़ा बनाने की सोची, क्योंकि साथ में बेटा-बहू भी थे और उनके लिये भी अलग कमरे की जरूरत जो थी। चैतराम बैगा रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत जाबकार्ड में पहले से ही काम करते थे। मकान मिलने से तो मानां जैसे इनका सबसे बड़ी समस्या का समाधान हो गया हो। अपने ही घर को बनाने में मिलने वाली मजूरी ने तो जैसे आम के आम और गुठलियों के दाम के कहावत को साकार कर दिया। क्योंकि सरकार से घर बनाने के लिये पैसे मिल गये और घर का काम करने से इन्हें 95 दिनों का रोजगार भी मिल रहा है। 16000.00 रूपये के करीब मजदूरी मिल गई, जिससे घर के खर्चे भी निकल गये।
लेकिन सबसे बड़ी सौगात इन्हें मिली आजीवीका संवर्धन के तहत् इनके घर में मेशन प्रशिक्षण के होने से। मेशन प्रशिक्षण में पांच व्यक्तियों को राजमिस्त्री का प्रशिक्षण देने के लिये इनके ही मकान को चुना गया। जिससे मकान बनाने के लिये मिस्त्री में होने वाला खर्च भी बच गया। इस तरह इनके लगभग 75000.00 रूपये अलग से बच गये। इस तरह 1.30 लाख के घर से इनके पास 90000.00 रूपये लगभग शेष बच गये, जो इन्हें लम्बे समय तक आर्थिक सबल देगा। योजनाओं के अभिशरण से चैतराम के ढाई एकड़ खेत का समतलीकरण कराया गया। जिसके कारण पहले से वे ज्यादा फसल का उत्पादन कर पा रहे हैं। कृषि कार्य के लिये पशु चिकित्सा विभाग ने इन्हें दो बैल जोड़ी से लाभान्वित कर दिया, जिसके कारण आज ये अपने खेतों को बड़े आराम से जोत पा रहे हैं। घर में महिलाओं को देखते हुये स्वच्छ भारत अभियान से 12000.00 रूपये की लागत से शौचालय का निर्माण भी कर दिया गया।
शौचालय निर्माण होने से चैतराम के परिवार को उनके अपने घर में ही शौच करने के लिये बेहतर सुविधायें मिल गई। “बिन पानी सब सून’’ जैसी कहावतें अब इनके परिवार से हमेशा के लिये दूर हो गई है। क्योंकि चैतराम ने अपने बाड़ी में खुद का कुंआ बना लिया है। फिर क्या था क्रेडा विभाग ने बिना देर किये हुये सोलर पैनल और पाईप पम्प सहित इनके कुऐं में लगाकर दे दिया। अब वे अपने कुऐं से बारोंमाह पानी लेकर अपने खेतों में सब्जियां लगा रहे हैं। इन मौसमी सब्जियों को पोलमी के ही हॉट-बाजार में बेंचकर अच्छी खासी आमदनी भी पा लेते हैं। कृषि विभाग द्वारा धान उड़ाने का पंखा देकर इनके कृषक कार्य को और आसान बना दिया। मनोरंजन और काम की बातों को जानने के लिये वन विभाग ने इन्हें रेडियों देकर लाभान्वित किया।
राशनकार्ड से चैतराम के परिवार को चांवल, गेंहू, चना, शक्कर, नमक जैसे रोजमर्रा के खाने-पीने की चींजों को बहुत ही कम दर पर मिलने लगा। इससे इनके द्वारा रोजगार गारंटी योजना अतंर्गत गांव में होने वाले कार्यों में काम करके जो मजूरी मिलती थी उसको भी बचाने का मौका मिल गया। स्वास्थ्य विभाग ने स्मार्ट कार्ड देकर इनके इलाज की चिंता को भी दूर कर दिया। अब चैतराम और उनके परिवार के सदस्य किसी भी शासकीय या निजी चिकित्सालय में अपना बड़े आराम से इलाज करा लेते हैं। जंगल क्षेत्र होने के कारण जींव-जंतुओं और मच्छरों से बचाव के लिये मच्छरदानी भी इन्हें दिया गया। स्वच्छ ईंधन एवं धुंआ रहित रसाई के लिये प्रधानमंत्री उज्जवला योजना से मात्र 200 रूपये में एक सिलेण्डर और चूल्हा मिल गया है, अब खाना बनाने के लिये लकड़ियों को चुनने, काटने की जरूरत नहीं है तथा समय बेसमय अपनी सुविधा से खाना बनाकर खाने की आजादी भी मिल गई।
चैतराम बताते हैं कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण ज्योति योजना से इनको एकल बत्ती कनेक्शन मिल गया है, जो अभी इनके झोपड़ी में लगा है। जैसे ही अपना पक्का मकान बनकर तैयार होगा, इस कनेक्शन को उसमें लगाकर रौशन कर लिया जायेगा। चैतराम अपने परिवार को मिले विभिन्न सौगातों से बहुत खुश है। अपनी खुशियों को जाहिर करते हुये चेहरे में मुस्कुराहट के साथ वे कहते हैं कि ’’मेहा बहोत सरकार ला धन्यवाद दे थों, के सरकार हा मोला सब तरह के सुख-सुविधा, रोजगार, शौचालय अउ इहा तक के सबसे बड़े बात रहे बर पक्का के आवास बनाये बर दिहीस। अब मे हा 15 दिन मा अपन नवा घर मा आराम से रहूं।’’ निश्चित ही चैतराम और उसके परिवार को शासन से मिले विभिन्न लाभ ने इनके जीवन को बदल दिया है। आज अपने गांव के बैगापारा में ये बड़े गुमान से घुमते हुये सरकार की योजनाओं का बखान सभी लोगों से करते हैं। इनके जीवन में आये इस बदलाव को देखकर लोग कहते हैं कि धन्य हो हमर सरकार जो हमर जीवन स्तर ला उपर उठात हे और हमन ला समाज के मुख्यधारा से जोड़त हे।
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