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कैसे अपराध मुक्त होगा उत्तर प्रदेश?

सूबे के कानून-व्यवस्था के आला मरकज डीजीपी कार्यालय, के पीछे दरख्त पर उल्टा लटका एक स्त्री का छत-विक्षत, बेलिबास शव, प्रांत में कानून-व्यवस्था की सारी कहानी कह देता है। बुलन्दशहर में मां-बेटी के साथ हुए गैंगरेप की सिसकियां आज भी इंसाफ मांगती सुनी जा सकती हैं। दंगों के दावानल में जले-अधजले घरों के कहे-अनकहे दर्द का नयी सरकार के प्रचंड जनादेश में बड़ा हिस्सा है। क्या अवाम को कानून-व्यवस्था, खासतौर पर महिला सुरक्षा और साम्प्रदायिक दंगों के मोर्चे पर योगी आदित्यनाथ की सरकार संतुष्ट कर पायेगी? तब, जब उनकी ही पार्टी में दागियों की संख्या दहाई के पार है।

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नये मुख्यमंत्री की हिंदुत्व वाली छवि के बीच प्रदेश में सामाजिक सद्भाव बनाए रखना नई सरकार के लिए बेहद चुनौतिपूर्ण होगा। भाजपा सरकार का फोकस विकास पर है, जो सांप्रदायिक सद्भाव पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।

अपराध उत्तर प्रदेश की नैसर्गिक समस्या हो गई है। देखा गया है, कि सुशासन की उम्मीद के उजले पन्ने पर अपराध अपनी काली स्याही जरूर गिरा देता है। सरकार के बदलने से भी ये नियम नहीं टूटता। हालांकि पुलिस तंत्र में सुधार के लिए भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में ऐलान किया है। मुख्यमंत्री के लिए मनोनीत होने के बाद योगी ने प्रमुख सचिव गृह देबाशीष पंडा और डीजीपी जावीद अहमद से संक्षिप्त बैठकर में अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। चूंकि हर किस्म के विकास, प्रगति या खुशी का आधार सुरक्षा है। इसलिए यदि सुरक्षा नहीं तो कुछ भी नहीं और ये फलसफा उत्तर प्रदेश के विषय में तो और ही प्रासंगिक हो जाता है।

अपराध नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले पांच वर्षों में प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 61 प्रतिशत वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 4 सालों में यूपी में 93 लाख से ज्यादा अपराध की घटनाएं हुई हैं और अपराध की घटनाओं में सूबे की राजधानी लखनऊ सबसे आगे है। पिछले एक साल में राजधानी लखनऊ में 2.78 लाख अपराध की घटनाएं हुई हैं। गौरतलब है कि, ये आंकड़ें तब हैं जब यूपी पुलिस कई मामलों में मुकदमे दर्ज ही नहीं करती है। बीते साल मथुरा के जवाहरबाग कांड, मुरादाबाद कांड और सहारनपुर कांड की सांप्रदायिक वारदातों का असर आज भी प्रदेश में दिखाई देता है।

नये मुख्यमंत्री की हिंदुत्व वाली छवि के बीच प्रदेश में सामाजिक सद्भाव बनाए रखना नई सरकार के लिए बेहद चुनौतिपूर्ण होगा। भाजपा सरकार का फोकस विकास पर है, जो सांप्रदायिक सद्भाव पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर के हिंदु-मुस्लिम दंगे प्रदेश में निवेश बढ़ाने की योजनाओं पर पानी फेर सकते हैं। नई सरकार के पास मौका है कि वो प्रदेश में व्यापार लायक माहौल बनाने के लिए स्थानीय पुलिस को मजबूत करे और अपराधी गिरोहों का सफाया करे। भाजपा सरकार को प्रदेश के लगभग सभी धर्म और जाति के लोगों ने वोट दिया है। ऐसे में नये मुख्यमंत्री के पास सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने का बेहतरीन मौका है।

जनता ने इस बार का जनादेश अन्धकार युग से बाहर निकलने के लिए दिया है। लेकिन क्या इससे निकलना इतना आसान हो पायेगा, जबकि उत्तर प्रदेश के नए चुने गए 402 विधयकों में से 143 यानी 36 फीसदी के खिलाफ घोषित रूप से आपराधिक केस दर्ज हैं।

अल्पसंख्यकों ने अभी तक योगी आदित्यनाथ को हिंदुओं के लिए ललकारते देखा है। हिंदू भी उन्हें अपने पक्ष का मुखर वक्ता मानते आये हैं लेकिन, इसका दूसरा पक्ष ये भी है कि यदि सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक विषमताओं वाले प्रदेश में योगी का राज अल्पसंख्यकों के भय को दूर करने में सफल हो पाया तो उसके दूरगामी परिणाम प्राप्त होंगे और तब अल्पसंख्यकवाद की राजनीति कठिन होगी। वर्ष 2007 से 2017 तक का निजाम कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर तो जनता के लिए एक श्राप से कम नहीं था। लिहाजा जनता ने इस बार का जनादेश अन्धकार युग से बाहर निकलने के लिए दिया है। लेकिन क्या इससे निकलना इतना आसान हो पायेगा, जबकि उत्तर प्रदेश के नए चुने गए 402 विधयकों में से 143 यानी 36 फीसदी के खिलाफ घोषित रूप से आपराधिक केस दर्ज हैं, हालांकि 2012 की विधानसभा में ये संख्या 189 यानी 47 फीसदी थी।

नई विधानसभा में 107 विधायकों यानी 26 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले (इसमें हत्या, हत्या की कोशिश जैसे जुर्म शामिल हैं) दर्ज हैं। ध्यान रहे कि इनमें 83 विधायक सत्ताधारी भाजपा के हैं।

 क्या योगी सरकार अपने 83 विधायकों पर लगाम लगा पाने में सफल हो पायेगी? 

ये बताना समीचीन होगा कि देश में अपराध के आंकड़े जुटाने वाली संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुये कहा है, कि उ.प्र. में 70 फीसदी से ज्यादा अपराधिक घटनाएं सपा विधायकों और सपा के मंत्रियों के इलाके में संपन्न हुई है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर नई सरकार में इतिहास खुद को दोहराता है या नया निजाम कानून-व्यवस्था के पन्ने पर नई तारीख लिखता है।