एरगोस स्टार्टअप फसल सुरक्षित रखने के साथ-साथ किसानों को दिला रहा है पूरा दाम
देश में आजादी के सत्तर साल बाद भी किसान को उनकी मेहनत का पूरा पैसा नहीं मिल पाता। किसानों को उनकी फसल का पूरा दाम दिलाने के लिए सामने आया है एरगोस स्टार्टअप।
देश के बाकी सेक्टरों के मुकाबले सबसे बुरा हाल खेती का ही होता है। किसानों को तो उनकी मजदूरी भी नहीं मिल पाती।
बेहतर वेयरहाउस सर्विस मिलने के बाद किसान अपने फसल को स्टोर कर सकते हैं और दाम बढ़ने पर उसे बेच सकते हैं।
फसल तैयार होने के बाद किसान की सबसे बड़ी समस्या होती है फसल को उचिकत दाम पर बाजार में बेचना। अपनी फसल का उचित दाम हासिल करना किसान का मौलिक अधिकार है और इस अधिकार का संरक्षण करने के लिए नीति निर्धारण करना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन आमतौर पर ऐसा होता नहीं है। अधिकतर किसानों को तो उनकी फसल का लागत भी नहीं निकल पाता। क्योंकि फसल के मौसम में उस फसल का उचित दाम नहीं मिल पाता है। बाद में बेचने के लिए वह सोच नहीं सकता क्योंकि किसानों के पास फसल को रखने की भी समस्या होती है। इसी समस्या को दूर कर रहा है बेंगलुरु का एक स्टार्टअप एरगोस माइक्रो-वेयरहाउसिंग।
इस स्टार्टअप से अभी लगभग 5,000 किसान जुड़े हुए हैं। बिहार के कई जिलों के किसानों ने कटाई के तुरंत बाद अपनी फसल को बेचने के बजाए उसे वेयरहाउस में रखकर ऑफ-सीजन में दाम बढ़ने का इंतजार किया एरगोस के फाउंडर और डायरेक्टर, किशोर कुमार झा ने बताया कि किसानों को कटाई के तुरंत बाद फसल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। बेहतर वेयरहाउस के साथ किसान अपने फसल को स्टोर कर सकते हैं और दाम बढ़ने पर उसे बेच सकते हैं।
अगर देखा जाए तो यह आइडिया काफी सफल हो रहा है। स्टार्टअप के साथ जुड़ने वाले किसानों को मक्का के लिए 20-30 पर्सेंट अधिक दाम मिला है। एरगोस एक मोबाइल फोन ऐप के जरिए काम करता है। ऐप पर किसानों के वेयरहाउस में मौजूदा स्टॉक के साथ ही फसल की बाजार कीमतों की पूरी जानकारी मौजूद होती है। इससे किसान को मार्केट ट्रेंड का तो पता चलता ही है साथ ही वह अपनी मनपसंद की कीमत पर फसल बेच सकता है।
इस तरह के कुछ अन्य वेंचर्स भी किसानों के साथ काम कर रहे हैं। इनमें से कुछ ने किसान उत्पादक संगठन और एनजीओ के साथ समझौते भी किए हैं।
इकनॉमिक टाइम्स से बात करते हुए झा ने कहा, 'यह डीमैट शेयर्स की तरह काम करता है। किसान के फसल वेयरहाउस में पहुंचाने पर हम उसकी ग्रेडिंग करते हैं और ऐप पर उसकी जानकारी डाली जाती है। किसान वेयरहाउस में फसल रखकर अपनी मनचाही कीमत मिलने पर उसे बेच सकता है।' स्टार्टअप वेयरहाउस में फसल रखने और प्राइस बताने के चार्जेज के तौर पर 6-12 रुपये प्रति क्विंटल लेती है। बिक्री के बाद किसानों को रकम का भुगतान 4 से 7 दिनों में किया जाता है। अगर किसान को तुरंत नकदी की जरूरत होती है तो वह आईडीबीआई और स्टेट बैंक से कर्ज लेने के लिए वेयरहाउस रिसीट का इस्तेमाल कर सकता है। इस तरह के कुछ अन्य वेंचर्स भी किसानों के साथ काम कर रहे हैं। इनमें से कुछ ने किसान उत्पादक संगठन और एनजीओ के साथ समझौते भी किए हैं।
इंडियन ऐग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट के हेड ऑफ ऐग्रीकल्चरल इकनॉमिक्स, अमित कार ने कहा, 'किसानों ने जानकारी प्राप्त करने जरिए के रूप में स्मार्टफोन का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। अधिकतर सेवा प्रदाता अब किसानों के साथ संपर्क करने के लिए कॉल्स, ऑडियो अलर्ट या टेक्स्ट मेसेज का इस्तेमाल करते हैं। इससे मदद मिलती है, लेकिन अगर वे किसानों को पिक्चर्स या विडियो के जरिए जानकारी दें तो यह और बेहतर हो सकता है।'
किसानों के साथ जुड़ने के लिए मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कंपनी एयरटेल के साथ पार्टनरशिप रखने वाली इफ्को किसान संचार के नैशनल हेड, जी सी श्रोत्रिय ने बताया, 'किसान वॉट्सऐप का काफी इस्तेमाल कर रहे हैं। वे चैट ग्रुप बनाकर आपस में जानकारी साझा कर रहे हैं। मोबाइल फोन किसानों के लिए जानकारी का स्रोत बने हैं।' अधिकतर ऐग्री-टेक कंपनियां किसानों तक जानकारी पहुंचाने के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रही हैं। ये कंपनियां मौसम का पूर्वानुमान, मंडी के भाव, व्यापारी से संपर्क के विवरण और सरकारी की सब्सिडी से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराती हैं। रिसर्च लैब, इन-हाउस ऐग्रोनॉमिस्ट और ऐग्री-कंसल्टेंट रखने वाली फर्में किसानो को एडवाइजरी सर्विसेज भी दे रही हैं।
किसानों के हित में काम करने के लिए कई सारी कंपनियां सामने आई हैं। जैसे- आरएमएल ऐग्रोटेक ने इसी साल मार्च में ही किसानों को गेहूं, टमाटर और प्याज के दामों जैसी फसलों में बढ़ोतरी होने की जानकारी दी थी। कंपनी इस तरह के पूर्वानुमानों के लिए डेटा ऐनालिटिक्स का इस्तेमाल करती है। इसके अलावा वह किसानों को फसल चुनने में मदद के लिए डेटा साइंस का भी सहारा लेती है। खेती से जुड़ी बेहतर जानकारी मिलने से किसानों को अपनी फसल बढ़ाने में मदद मिलती है और वे फसल को बेचने का सही समय भी जान सकते हैं। इसके साथ ही वे मौसम के अनुसार अपनी फसल को भी चुन सकते हैं।
हैरानी की बात है कि कृषिप्रधान देश में आजादी के सत्तर साल बाद भी किसान को उनकी मेहनत का पूरा पैसा नहीं मिल पाता। कुशल श्रमिक, प्रबंधक और उत्पादक के नाते वाजिब आमदनी सुनिश्चित करने की बात तो दूर, सबसे आवश्यक काम के लिए कठिन मेहनत करने के बावजूद उसे न्यूनतम मजदूरी तक प्राप्त नहीं होती। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में शरीर श्रम के लिए प्रतिदिन केवल 92 रुपए मजदूरी मिलती है। देश के बाकी सेक्टरों के मुकाबले सबसे बुरा हाल खेती का ही होता है। किसानों को तो उनकी मजदूरी भी नहीं मिल पाती। ऐसे हालत में इस स्टार्टअप की पहल सराहनीय है।
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