Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

कबाड़ के आइडिया ने बनाया घर बैठे करोड़पति

आईडियाज़ की दुनिया में कमी नहीं है, आप भी हो जायें घर बैठे मालदार...

कबाड़ के आइडिया ने बनाया घर बैठे करोड़पति

Friday June 22, 2018 , 8 min Read

आज के बाजार के चेहरे को जरा ध्यान से देखिए, आपको घर बैठे ही मालदार होने का आइडिया मिल जाएगा। ऐसे-ऐसे आइडिया कि एक महिला तो करोड़पति हो गई और तमाम युवा इंजीनियर ऑनलाइन कबाड़ के धंधे से गांठ के धुरंधर हो रहे हैं और घर बैठे देश के तमाम शहरों में इसकी चेन तक फैलाने लगे हैं।

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


भारतीयों में घरेलू सामानों की ऑनलाइन खरीद-फरोख्त की आदतों पर हुए इस सर्वे की मानें तो भारतीय घरों के रखे कबाड़ को अगर बेच दिया जाए तो भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के लिए 8 बार बजट निकाला जा सकता है। 

आजकल घर बैठे मालदार होने का एक और आइडिया पूरी दुनिया में बड़े धंधे का रूप लेता जा रहा है। एक महिला तो अपने घरेलू पुराने सामान बेचकर घर बैठे करोड़ों की मालकिन बन गई। इस साल एक जुलाई से हमारे देश में वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी लागू हो गया है। पुराने सामानों की बिक्री पर जीएसटी की छूट मिली हुई है। अगर सामान परचेस प्राइस के मुकाबले कम कीमत में बेचा या खरीदा जाएगा तो उसपर जीएसटी नहीं लगेगा। सेकेंड हैंड सामान खरीदने या बेचने पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) नहीं चुकाना होगा, बशर्ते उसे खरीदी गई कीमत से कम कीमत पर बेचा गया हो।

सेंट्रल गुड्स एंड सर्विसेज (सीजीएसटी) नियम 2017 के मुताबिक पुराना सामान या वस्तु की प्रकृति में बदलाव नहीं करने वाले कुछ प्रसंस्करण जिनके लिए इनपुट क्रेडिट टैक्स (आईसीटी) नहीं दिया जाएगा। इनके केवल सामान के परचेस प्राइस और सेलिंग प्राइस के बीच के अंतर पर जीएसटी लगाया जाएगा। इसे मार्जिन योजना के रूप में जाना जाता है। वित्त मंत्रालय द्वारा यह स्पष्टीकरण जीएसटी के अंतर्गत मार्जिन योजना को लेकर पैदा हुई आशंकाओं के संदर्भ में जारी किया गया है। ऐसे में पुराने-धुराने घरेलू सामान चप्पल, जूते, कपड़ा, बर्तन, प्लास्टिक का सामान, खिलौने आदि कितने ही प्रकार का सामान अब लोग घर बैठे ऑनलाइन बेचने लगे हैं। जगह-जगह ऐसे तमाम सेल सेंटर भी खुलते जा रहे हैं। गरीब एवं सस्ते में सामान खरीदने वाले लोग इनसे सामान तो खरीद लेते हैं पर घर जाकर पछताने के अलावा कुछ भी नहीं बचता। ऑनलाइन खरीदे के सामानों की बिक्री की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न लगते रहते हैं। दुकानदार चाहते हैं कि उनका पुराना सामान बिक्री हो जाए। ऐसे ज्यादातर दुकानदार अपनी दुकानों के आगे सामान सस्ते में बेचने के सेल सेंटर बना देते हैं। एक ओर वे अतिक्रमण कर डालते हैं, वहीं लोगों को पुराना घिसा पिटा सामान देकर मुनाफा कमाते हैं।

एक सर्वे से पता चला है कि भारतीय घरों में करीब 78000 करोड़ रुपये तक का कबाड़ जमा रहता है। भारतीयों में घरेलू सामानों की ऑनलाइन खरीद-फरोख्त की आदतों पर हुए इस सर्वे की मानें तो भारतीय घरों के रखे कबाड़ को अगर बेच दिया जाए तो भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के लिए 8 बार बजट निकाला जा सकता है। देश में वस्तुओं को इकट्ठा करने की दर की एक साल पहले की तुलना में तीन प्रतिशत बढ कर 90 प्रतिशत तक पहुंच गयी है। घरों में बेकार पड़े सामानों से सरकार की स्वच्छ भारत योजना का आठ बार वित्तपोषण किया जा सकता है। वस्तुओं की बिक्री की दर 49 प्रतिशत है जो पिछले साल से चार प्रतिशत अधिक है। सर्वेक्षण में एक और रोचक तथ्य सामने आया है कि इस्तेमालशुदा या सेकंड हैंड सामान की ऑनलाइन बिक्री इसी तरह के सामान की ऑफलाइन बिक्री से औसतन 25 प्रतिशत अधिक है।

घर बैठे पुराने सामानों की बिक्री का तो एक बड़ा बाजार खड़ा हो ही चुका है, ऐसे नए-नए आइडिया भी घर बैठे लोगों को मालदार बना रहे हैं। अमेरिकी किम लेवाइंस एक घरेलू महिला हैं। सिलाई उनका एक खास शौक है। उनके घर में कई पालतू जानवर हैं, जिन्हे उनके पति अक्सर मक्के के दाने खिलाते थे। एक दिन उनके पति मक्के का पैकेट उनकी सिलाई मशीन के बगल में रख कर चले गए। ऐसे में उन्हें आइडिया आया कि क्यों न ऐसा तकिया बनाया जाय, जिसमें मक्के के दाने भरे हों और उसे माइक्रोवेव में रखकर गर्म किया जा सके ताकि उससे गर्माहट मिले। इसी के साथ सामने आया व्यूविट जिसे किम ने आने वाले समय में स्पा थैरेपी के तकिए की तरह मशहूर कर दिया।

किम ने पहले तकियों को घर के आसपास बच्चों को गिफ्ट किया। तकिये देने के साथ ही लोग उनके घर पहुंचने लगे। उन लोगों का कहना था कि उनके बच्चे इन तकियों के साथ काफी आराम से सो पा रहे हैं। ये लोग तकियों की कीमत देने को तैयार थे। इस रिस्पॉन्स को देखते हुए किम ने इस आइडिया को आगे बढ़ाने का फैसला किया, शुरुआत में किम ने छोटे स्टॉल लगाकर इन तकियों की बिक्री की। बेहतर रिस्पॉन्स मिलने के बाद उन्होंने बड़े मॉल से संपर्क किया। एक स्टोर चेन ने इस तकिए के पोटेंशियल को पहचान कर अपने स्टोर में इन्हें रखने की अनुमति दे दी। किम को भी इस तकिये की सफलता का अहसास था इसलिए वो पहले से ही तकिए के बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन के लिए सहयोगी तलाश कर चुकी थीं। ऐसे में डील होने के कुछ समय के अंदर ही व्यूविट मॉल में बिकने लगे। पहले दो महीने में ही सेल्स 2.25 लाख डॉलर को पार कर गई।

घरेलू चीजें किलोग्राम के हिसाब से बेची जाती हैं। क्रॉकरी, गद्दे और किचन के समान सेकंड हैंड खूब खरीदे और बेचे जा रहे हैं। खुदरा खरीदार निजी इस्तेमाल के लिए सैकंड हैंड चीजें खरीदते भी हैं। ऐसे ज्यादातर लोगों के लिए यह केवल बचत का एक अतिरिक्त स्रोत ही नहीं, बल्कि अपनी एक बेहतर सामाजिक हैसियत का अहसास कराने का जरिया भी हो चुका है। हर घर में रद्दी और कबाड़ होता है। ऐसी रद्दी को बेचने के लिए पहले कबाड़ वालों का इन्तज़ार करना पड़ता था। कभी कबाड़ वाला हमारे समय के मुताबिक नहीं आता था तो कभी आता मगर हम व्यस्त होते। इस कारण बहुत दिनों तक घर में कबाड़ पड़ा होता। घर के रद्दी सामानों को बेचने के लिए अब कबाड़ वाले का इन्तजार करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। वाराणसी के कुछ युवाओं ने स्वच्छता के साथ व्यवसाय को जोड़ते हुए कबाड़ व्यवसाय को भी हाईटेक कर दिया है।

जी हां वाराणसी के पांच युवाओं ने मिलकर 'सेल कबाड़ी डॉट कॉम' नाम से एक वेबसाइट बनायी है। इस पर एक क्लिक से आपके घर का कबाड़ उठ जाएगा और आपको उसकी अच्छी कीमत भी मिलेगी। इस तरह की योजना पर ही प्रिंस कुमार, विश्वेस कुमार, अनुराग सिंह, दीपक सिंह और आदित्य नारायण सिंह युवा इंजनियरिंग और एमबीए की पढ़ाई करने के बाद अपनी नौकरी छोड़कर काशी को साफ़ सुथरा रखने का काम कर रहे हैं। इन पांच में से दो ने पुणे से एमबीए, दो ने बैंगलुरू से इंजनियरिंग की पढ़ाई की थी। एक ने वाराणसी से एमबीए किया। पांचों पढ़ाई के बाद नौकरी कर रहे थे। मन में था कि अपना कुछ करना है और अलग करना है। वाराणसी की सड़कों पर फैली गन्दगी देखकर उनका मन दुखी होता था। इसके बाद उन लोगों ने गन्दगी को साफ़ करने के लिए प्लान किया लेकिन नौकरी छोड़ना कठिन था। इसलिए उन लोगों प्लान किया कि कुछ ऐसा करते हैं जिससे गंदगी भी साफ़ हो और हम पैसे भी कमा लें। उसके बाद उन लोगों ने 'सेल कबाड़ी डॉट कॉम' बनाया शुरू में थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन अब लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है।

इसी तरह भोपाल के युवा इंजीनियर अनुराग असाती ने ‘द कबाड़ीवाला’ पोर्टल बनाया है। हर शहरी घर में अखबार, प्लास्टिक के बेकार डिब्बे, खाली बोतलें, लोहा-लक्कड़ के अंबार लगे रहते हैं। ऐसे सामानों की घर बैठे बिक्री आसान करने के लिए ‘द कबाड़ीवाला प्रोजेक्ट’ बिना समय जाया किये आसानी से कबाड़ की सही कीमत दिलाता है। अनुराग बताते हैं कि प्रमुख शहरों में हमारे गोदाम हैं, जहां कबाड़ को छांट कर अलग-अलग रखा जाता है। इसके बाद हम इसे रीसाइक्लिंग कंपनियों को बेच देते हैं। हमारी योजना भविष्य में खुद का रीसाइक्लिंग प्लांट लगाने की है। इसके लिए हम निवेश की भी तलाश में है।

लगभग एक साल पहले मात्र 20 हजार रुपये की लागत से शुरू किया गया यह उद्यम 30-40 प्रतिशत के लाभ के साथ आज 12 हजार से अधिक ग्राहकों से जुड़ चुका है। फिलहाल भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, इंदौर, बैतूल, सागर, दमोह से संचालित ‘द कबाड़ीवाला’ आनेवाले दिनों में मुंबई, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और छत्तीसगढ़ तक अपना व्यापार बढ़ाने की योजना रखता है। अनुराग के पोर्टल पर एल्युमीनियम, बैटरी, कंप्यूटर, अखबार, प्लास्टिक, पॉलिथीन आदि रद्दी सामानों को बेचने के लिए रिक्वेस्ट पोस्ट की जा सकती है। इन सब चीजों के लिए अलग-अलग भाव निश्चित किये गये हैं। इसके अलावा, वह अपने ग्राहकों से फेसबुक और व्हाट्सऐप के जरिये भी जुड़े रहते हैं। हर शहर से उनको रोजाना करीब 18-20 ऑर्डर मिल जाते हैं, जिसके लिए उन्होंने हर शहर में लगभग 15 कबाड़ीवालों को काम पर रख रखा है।

यह भी पढ़ें: योगा बना दुनिया का सबसे मुनाफेदार ब्रैन्ड