नई कलम के लिए, दिल्ली से अंकुर सेठी,
ये शख्स है फक्र आलम, जो यूपी में अमरोहा जिले की तहसील हसनपुर के रहने वाले है। इनके नाम के अनुरूप इन्हें देख कर भी फक्र होता है। अपनी विकलांगता पर जरा भी मायूस नहीं होते, कहते हैं ऊपर वाले के दिए को मंजूर करना जरुरी है, अफ़सोस करके कहाँ कुछ बदलता है।
मेरे शहर की गली गली और आस पास के गॉव घूम कर चूड़ियां बेचा करते हैं, बात करते हुए मुस्कारते बहुत हैं। कुछ याद करके बता रहे थे कि पिछली बार अखबार वालों ने नजाने क्या-क्या लिख दिया था, कि भीख नहीं मांगते, खुद कमाते हैं... इस तरह से। मुझे ये बात बहुत खटकी कि विकलांग हुए तो क्या भीख मांगेंगे? आप ऐसा कुछ मत लिखना भाईजान, हां फोटो ले लो मेरा!
उनकी जुबानी ,"जब से होश संभाला है, तबसे खुद ही कमाता हूं। घर में मेरे अलावा माँ ही है, सब माँ के लिए ही करता हूँ। जब तक साँस है करता रहूँगा किसी के आगे झुकूंगा नहीं, बस आपसे हो सके तो एक इलेक्ट्रॉनिक वाली ट्राईसाईकल सरकार से दिलवा दीजिये, हाथ बहुत दर्द करते हैं।"
ऐसे लोगों से बेहद प्रेरणा मिलती है और दूसरों के लिए भी मिसाल बन कर सामने आती है। सही बात है, पैर नहीं तो क्या हुआ , हौसलों के पंख हमें उड़ाते हैं।