हादसे ने जीवन में भर दिया था संघर्ष, मजबूत हौसले के साथ आगे बढ़ देश के लिए पैरालंपिक गोल्ड लेकर आने वाली अवनि लेखरा की कहानी
इस बार के पैरालंपिक शूटिंग में देश को पहला गोल्ड दिलाने वाली अवनि लेखरा को आज पूरी दुनिया जानती है लेकिन इस सफलता से पहले के उनके संघर्ष की कहानी से बेहद कम ही लोग परिचित हैं।
हाल ही में सम्पन्न हुए टोक्यो पैरालंपिक में भारत का प्रदर्शन ऐतिहासिक रहा है। इस बार के पैरालंपिक शूटिंग में देश को पहला गोल्ड दिलाने वाली अवनि लेखरा को आज पूरी दुनिया जानती है लेकिन इस सफलता से पहले के उनके संघर्ष की कहानी से बेहद कम ही लोग परिचित हैं। मालूम हो कि बचपन में हुए एक हादसे ने अवनि के जीवन को पूरी तरह बदलकर रख दिया था।
साल 2012 में अवनि एक कार हादसे का शिकार हो गई थीं और तब अवनि महज 10 साल की थीं। अवनि ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि उस समय उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि उनके साथ क्या हो रहा है क्योंकि दुर्घटना के बाद वो अपने पैरों पर चलने में असमर्थ हो गयी थीं। दुर्घटना के बाद अवनि को करीब 6 से 7 महीने बिस्तर पर ही गुजारने पड़े थे।
घर पर ही शुरू हुई पढ़ाई
हादसे के बाद ठीक होने के क्रम में ही अवनि ने अपनी पढ़ाई को निरंतर जारी रखने का निर्णय लिया लेकिन इस दौरान उनकी पढ़ाई स्कूल के बजाय घर पर ही शुरू हुई और यह सिलसिला करीब 2 सालों तक चला। अवनि के अनुसार वो समय एक तरह से मनोबल को तोड़ने वाला था। साल 2014 में अवनि ने व्हीलचेयर की मदद लेते हुए स्कूल जाना फिर से शुरू कर दिया था।
अवनि के अनुसार इस दौरान उन्हें काफी अजीब लग रहा था क्योंकि उनके लिए यह अनुभव नया था लेकिन उन्हें उनके साथी छात्रों और शिक्षकों से भरपूर समर्थन मिला। कुछ समय बाद ही अवनि ने खुद को और आगे ले जाने इरादा किया और इसी क्रम में उन्होंने शूटिंग की शुरुआत करने का निर्णय किया।
शौक से हुई शूटिंग की शुरुआत
साल 2015 में अवनि ने शौक के तौर पर शूटिंग की शुरुआत कर दी थी। अवनि ने अपने एक साक्षातकार में बताया है कि तब उन्होंने गर्मी की छुट्टी बिताने के उद्देश्य से शूटिंग की प्रैक्टिस करने की शुरूआत की थी। जल्द ही अवनि ने मैच खेलने भी शुरू कर दिये थे। अवनि के अनुसार उनका पहला मैच सामान्य शूटर्स के साथ था और उसमें भी उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था।
अवनि शुरुआत में अपनी इस करियर चॉइस को लेकर भ्रमित रहती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि उनके शरीर के ऊपरी हिस्से में शायद उतनी ताकत नहीं है कि वे मजबूती से मुक़ाबला कर सकें लेकिन जल्द ही उनमें अपनी शूटिंग को लेकर विश्वास पैदा होना शुरू हो गया था।
मजबूत हौसलों से मिली सफलता
अवनि ने जब अपना पहला अंतराष्ट्रीय मुक़ाबला खेला तब उन्हें इस बात समझ आ चुकी थी कि अगर हम अपने मन में कुछ अच्छा करने की ठान लें तो हम उसे कर सकते हैं। अवनि की यात्रा भले ही आसान ना रही हो लेकिन उनके हौसले बेहद मजबूत थे। अवनि के अनुसार जब लोग अपने को स्वीकार करते हुए अपने काम पर फोकस करना शुरू कर देते हैं तो आगे लिए जिंदगी अपने आप आसान हो जाती है।
मीडिया से बात करते हुए अवनि ने बताया है कि उनकी इस यात्रा में उनके परिजनों का बड़ा सपोर्ट रहा है।
अवनि के अनुसार उन्होंने खुद को पढ़ाई और शूटिंग में इतना व्यस्त रखा है कि उनके ध्यान कभी नकारात्मक चीजों की तरफ गया ही नहीं और यहीं बड़ा कारण है कि वो अपने लक्ष्य को पा सकी हैं।
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Edited by रविकांत पारीक