देश की पहली महिला नाई शांताबाई
आज से 40 साल पहले के भारत की कल्पना करिए, एक गांव है जहां एक महिला घर-घर जाकर लोगों की हजामत बना रही है। ये उन दिनों की बात है जब गांवों में औरतों का घूंघट एक सेंटीमीटर भी ऊपर उठ जाता था तो मानो कयामत आ जाती, ऐसे में महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में शांताबाई श्रीपति यादव नाम की एक महिला ने एक क्रांतिकारी कदम उठाया था।
शांताबाई देश की पहली महिला नाई हैं। शांताबाई अमिट जीवटता की एक जीती-जागती मिसाल हैं। वो 70 बरस की हो चुकी हैं फिर भी उनके हाथ से उस्तूरा नहीं छूटा है।
आज भले ही महिलाएं हर पुरुष प्रधान माने गए क्षेत्रों में अपने झंडे बुलंद कर रही हैं, वो बाल भी काट रहीं हैं, बार में बैठकर लोगों के लिए ड्रिंक्स भी बना रही हैं लेकिन उस वक्त ऐसा करना किसी भी महिला को सामाजिक बहिष्कार की जद में पहुंचा देता था।
आज से 40 साल पहले के भारत की कल्पना करिए, एक गांव है जहां एक महिला घर-घर जाकर लोगों की हजामत बना रही है। ये उन दिनों की बात है जब गांवों में औरतों का घूंघट एक सेंटीमीटर भी ऊपर उठ जाता था तो मानो कयामत आ जाती थी। ऐसे में महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में शांताबाई श्रीपति यादव नाम की एक महिला ने एक क्रांतिकारी कदम उठाया था। शांताबाई अपने देश की पहली महिला नाई हैं। आज भले ही महिलाएं हर पुरुष प्रधान माने गए क्षेत्रों में अपने झंडे बुलंद कर रही हैं, वो बाल भी काट रहीं हैं, बार में बैठकर लोगों के लिए ड्रिंक्स भी बना रही हैं लेकिन उस वक्त ऐसा करना किसी भी महिला को सामाजिक बहिष्कार की जद में पहुंचा देता था।
शांताबाई अमिट जीवटता की एक जीती-जागती मिसाल हैं। वो 70 बरस की हो चुकी हैं फिर भी उनके हाथ से उस्तूरा नहीं छूटा है। उनकी चार बेटियां हैं। पैदा तो 6 हुई थीं लेकिन उनमें से दो की मौत हो गई थी। गांव की एक सीधी-साधी सी महिला शांता पर विपत्तियों का पहाड़ तब टूटा जब उनके पति श्रीपति का देहांत हो गया। उस वक्त उनकी बड़ी बेटी की उम्र 8 साल थी और सबसे छोटी वाली 1 साल की थी। शांताबाई के पति अपने पीछे छोड़ गए थे तो केवल कर्जा। शांताबाई के पास पुश्तैनी जमीन थी। जिसके लिए सरकार ने उन्हें 15 हजार रुपए दिए। ये पैसे भी श्रीपति के छोड़े गए कर्जे चुकाने में चले गए।
शांताबाई अपने परिवार का पेट पालने के लिए खेतों में मजदूरी करने लगीं। लेकिन 8 घंटे की लगातार मेहनत के बावजूद उन्हें केवल 50 पैसे का मेहनताना मिलता था। बच्चियों को कभी-कभी भूखे पेट ही सोना पड़ता था। एक दिन हारकर शांताबाई अपनी चारों बच्चियों के साथ खुदकुशी करने वाली थीं। लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। वो उन्हें मजबूत बनाना चाहती थी। ऐसे में उन्हें मार्गदर्शक के रूप में मिले हरिभाई। उन्होंने शांता को समझाया कि देखो तुम्हारा पुश्तैनी काम है नाईगिरी का और यहां आस-पास के तीन चार गांवों में कोई नाई भी नहीं है। तुम्हारा पति, पिता सब यही काम करते थे। तुम भी यही शुरू कर दो।
ये सब सुनकर शांताबाई अचकचा गईं। उन्हें लगा कि मैं कैसे करेगी ये सब। ये काम तो मर्दों का है। मैं कैसे घर घर जाकर उस्तूरा चलाएगी। लोग-बाग क्या कहेंगे। लेकिन हरिभाई उनकी सारी आंशकाओं को शांत किया और समझाया कि लोगों को कहने दो, तुम अपनी बच्चियों के भविष्य पर ध्यान दो। शांताबाई तैयार हो गईं। देश की पहली महिला नाई के पहले ग्राहक बने खुद हरिभाई। लोगों ने हरिभाई का खूब मजाक उड़ाया। शांताबाई को तरह तरह के उलाहने दिए गए। लेकिन शांता अपना काम करती रहीं। धीरे-धीरे वो जानवरों के भी बाल काटने लगीं। अपनी मेहनत से शांताबाई ने बिना किसी की मदद लिए अपनी चारों बेटियों की शादी भी करवा डाली।
धीरे-धीरे शांताबाई की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी। यहां तक कि उस वक्त के प्रसिद्ध अखबार तरुण भारत में भी उनके बारे में छापा गया था। उनको तमाम संस्थानों ने सम्मानित भी किया है। समाज रत्न पुरस्कार से नवाजा गया है। शांता बाई अब थक गई हैं। इसलिए लोग उनके पास खुद आते हैं बाल कटवाने और हजामत करवाने। जिसके उन्हें तीन सौ, चार सौ मिल जाते हैं। सरकार उन्हें 600 रुपए देती है। ये पैसे बहुत कम हैं लेकिन शांता कहती हैं कि उन्हें कम में काम चलाने की आदत पड़ चुकी है और जरूरत पड़ने पर वो अपने बल पर और कमा सकती हैं।
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