एक ऐसा NGO जिसने 65,000 ग्रामीण परिवारों को बनाया आत्मनिर्भर
एएलसी इंडिया एक एनजीओ है, जो भारत के पांच राज्यों में 54 सामाजिक उद्यमों के माध्यम से छोटे और सीमांत किसानों, पशु पालकों, बुनकरों, आदिवासी समूहों और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को आजीविका उपलब्ध करवा रही है।
इस संस्था के संस्थापक कृष्णगोपाल के मुताबिक जब आप किसी एक समुदाय को आजीविका मुहैया कराते हैं, तो गरीबा का चक्र वहीं से टूटना शुरू हो जाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के लोगों के पास देश के धन का अस्सी प्रतिशत हिस्सा है। जबकि दूसरी तरफ, भारत में 76 प्रतिशत बच्चे उच्च शिक्षा तक नहीं पहुंच पाते हैं और देश की महिलाओं में आधे से ज्यादा आयरन की कमी (Iron Deficiency) से ग्रस्त हैं। भारत के 25% ग्रामीण परिवार अभी भी 5,000 रुपये से भी कम की मासिक आय पर गुजारा करते हैं।
एक कहावत है कि अगर आप किसी आदमी को मछली पकड़ना सिखा देते हैं, तो आप उसके जीवन भर की आजीविका का इंतजाम कर देते हैं, लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि भारत में मछुआरे औसतन केवल 24,000 रुपये से 48,000 रुपये के बीच प्रति वर्ष कमा पाते हैं। यही स्थिति छोटे किसानों, बुनकरों, कुम्हारों, प्रवासी और कृषि श्रमिकों, छोटे और सूक्ष्म स्तर के उद्यमियों तथा अन्य कमजोर समुदायों की भी है। पिछले कुछ दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी हद तक वृद्धि हुई है, लेकिन विभिन्न आर्थिक स्तर के आय में अभी भी बड़ा अंतर है, जो कि भारत में असमानता के इतने बड़े अंतर का एक महत्वपूर्ण कारण है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के लोगों के पास देश के धन का अस्सी प्रतिशत हिस्सा है। जबकि दूसरी तरफ, भारत में 76 प्रतिशत बच्चे उच्च शिक्षा तक नहीं पहुंच पाते हैं और देश की महिलाओं में आधे से ज्यादा आयरन की कमी (Iron Deficiency) से ग्रस्त हैं। भारत के 25% ग्रामीण परिवार अभी भी 5,000 रुपये से भी कम की मासिक आय पर गुजारा करते हैं।
एएलसी इंडिया की मदद से छोटे और सीमांत किसान, पशु पालक, बुनकर, आदिवासी समूह, आंतरिक रूप से विस्थापित और कमजोर समुदाय आदि के 65,000 से अधिक महिलाएं आत्मनिर्भर हुई हैं।
एक्सेस लाइवेलहुड्स कंसल्टिंग इंडिया (एएलसी इंडिया) के संस्थापक, 42 वर्षीय जीवी कृष्णगोपाल सामाजिक उद्यम को ग्रामीण भारत में आजीविका उपलब्ध करने के एक व्यावहारिक समाधान के रूप में देखते हैं। कृष्णगोपाल कहते हैं, 'गैर सरकारी संस्थाएं बहुत अच्छा काम करती हैं, लेकिन वे अनुदान पर निर्भर होती हैं और उनके लिए अपने काम का विस्तार कर पाना बहुत मुश्किल होता है। जबकि सामाजिक उद्यम पूरी तरह से आत्मनिर्भर होते है और इस कारण से इनका विस्तार बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। ऐसे दो सामाजिक उद्यम, अमूल और लिज्जत पापड़ के बारे में हम सब जानते हैं।'
एएलसी इंडिया ने भारत के पांच राज्यों में 54 सामाजिक उद्यमों की स्थापना की है, इसके माध्यम से छोटे और सीमांत किसानों, पशु पालकों, बुनकरों, आदिवासी समूहों, आंतरिक रूप से विस्थापित और कमजोर समुदायों जैसे कि कुष्ठ रोग से प्रभावित, आदि 65,000 से अधिक महिलाओं को आजीविका प्रदान की जा रही है। कृष्णगोपाल के मुताबिक जब आप किसी एक समुदाय को आजीविका मुहैया कराते हैं, वही से गरीबी का चक्र टूटने लगता है।
कोडांगल महिला किसान उत्पादक कंपनी लगभग 1,000 महिलाओं को रोजगार देती है और बाजार के लिए चना, कपास, धान, मूंगफली और ज्वार का उत्पादन करती है।
तेलंगाना के महबूबनगर जिले में स्थित अंगदी रायचूर गांव की नरसम्मा सामाजिक उद्यम से सफल होने वाली महिला का अच्छा उदाहरण हैं। वह एक पिछड़ी जाति में पैदा हुई थीं और एक छोटी सी खेती से होने वाली थोड़ी से आमदनी से उनके बड़े परिवार का निर्वाह बहुत मुश्किल से हो पाता था। 2013 में वह कोडांगल महिला किसान उत्पादक कंपनी में एक हितधारक के रूप में शामिल हुईं। महिलाओं द्वारा संचालित यह सामाजिक उद्यम, नई कृषि तकनीक से लेकर मार्केटिंग विधियों तक किसानों को जरूरत के आधार पर अलग-अलग सेवाएं प्रदान करता है।
नरसम्मा ने घर-घर जाकर कंपनी में शामिल होने के लिए कई और महिलाओं को राजी किया, जिनमें से सभी आज आत्मनिर्भर हैं। उनकी कड़ी मेहनत की शीघ्र ही पहचान कर ली गयी और उन्हें जल्द ही निदेशक मंडल में शामिल कर लिया गया। वह हंसते हुए कहती हैं, 'चूंकि कंपनी का प्रबंधन महिलाओं द्वारा किया जाता है और इसमें केवल महिलाएं ही होती हैं, इस लिए हमारी सफलता ने ग्रामीणों को आश्चर्यचकित कर दिया।' आज, कोडांगल महिला किसान उत्पादक कंपनी लगभग 1,000 महिलाओं को रोजगार देती है और बाजार के लिए चना, कपास, धान, मूंगफली और ज्वार का उत्पादन करती है। वर्तमान में इस कंपनी का वार्षिक कारोबार 6.18 करोड़ रुपए का है, और यह उन 22 उत्पादक कंपनियों में से एक है जिसकी स्थापना एएलसी इंडिया ने की है।
2007 के अंत तक, एएलसी इंडिया ने विभिन्न प्रकार के ग्राहकों के लिए 30 परियोजनाएं चलाईं, जिसमें एनजीओ, माइक्रो फाइनैंस इंस्टीट्यूट, फंडिंग एजेंसियां, कंसल्टिंग एजेंसी, सरकारी विभाग, समुदाय आधारित संगठन, पंचायत राज संस्थान और नीति निर्धारक एजेंसियां शामिल हैं।
एएलसी इंडिया की शुरुआत 2005 में कृष्णगोपाल और जी सत्यदेव ने मिल कर की थी, जिन्होंने 1999 के बैच में ग्रामीण प्रबंधन संस्थान (IRMA), आनंद, गुजरात में एक साथ पढ़ाई की थी। कृष्णगोपाल अपने उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं, 'अपना काम शुरू करने के पहले हमारे मन में अनेकों विचार थे। हमारे पास कोई 'ब्रांड वैल्यू' नहीं थी, हमारा कोई व्यापक नेटवर्क भी नहीं था, बिना किसी वित्तीय आधार के हमारे पास थोड़ी सी जमा पूंजी थी। हमारे पास कोई वर्क आर्डर नहीं था, और न हमारा कोई कार्यालय था।'
उनका पहला आर्डर 'वर्ल्ड विजन इंडिया' से आया, जो कि एक ह्यूमन ऑर्गनाइजेशन है और आपदा की स्थिति में राहत अभियान चलाता है। 2004 के विनाशकारी सुनामी के बाद एएलसी इंडिया ने आजीविका संवर्धन पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया और अगले पांच सालों में दोनों संगठनों ने लगभग 30 परियोजनाओं में भागीदारी की। अपने पहले वित्तीय वर्ष के अंत तक, एएलसी इंडिया ने पांच राज्यों में 10 ग्राहकों को सेवा प्रदान की थी। जल्द ही IRMA के दो और पूर्व छात्र, जीवी सरत कुमार और एन मधु मूर्ति इन से जुड़ गए। वित्तीय वर्ष 2007 के अंत तक, एएलसी इंडिया ने विभिन्न प्रकार के ग्राहकों के लिए 30 परियोजनाएं चलाईं, जिसमें एनजीओ, माइक्रो फाइनैंस इंस्टीट्यूट, फंडिंग एजेंसियां, कंसल्टिंग एजेंसी, सरकारी विभाग, समुदाय आधारित संगठन, पंचायत राज संस्थान और नीति निर्धारक एजेंसियां शामिल हैं।
अपने पहले कृषि उद्यम मॉडल बनाने के पूर्व एएलसी इंडिया ने सात साल तक, 3०० रोज़गार परामर्श परियोजनाएं के माध्यम से 17 राज्यों में काम करने का अनुभव लिया। भारत सरकार के एक उद्यम , लघु किसान एग्रीबिजनेस कॉन्सोर्टियम ने प्रत्येक किसान को एएलसी द्वारा दिए गए प्रशिक्षण के लिए 1,800 रूपये का प्रारंभिक सहयोग दिया।
कृष्णगोपाल कहते हैं, 'यही वो समय था जब हम ने सीधे तौर पर छोटे और सीमांत किसानों के साथ काम करना शुरू किया। वास्तविक परिणाम प्राप्त करने के लिए हम ऐसा ही कुछ करना चाहते थे।'
वर्तमान में महिला-नेतृत्व वाले उद्यमों के माध्यम से एएलसी इंडिया 34,000 परिवारों का सहयोग करता है। ये सभी संगठन एक मधुमक्खी मॉडल (Beehive Model) पर काम करते हैं। एएलसी इंडिया से जुड़े सामाजिक उद्यमों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए, संगठन ने 2014 में एक्सेस लाइवलीहुड डेवलपमेंट फाइनेंस (एएलडीएफ) शुरू किया। कृष्णगोपाल कहते हैं, 'उसी वर्ष, हम राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के एक सहयोगी भागीदार भी बन गए और सक्रिय रूप से कौशल विकास और प्रशिक्षण अभियान में शामिल हो गए।' NSDC ने एएलसी इंडिया को 15 करोड़ रुपये का ऋण प्रदान किया है जिसको की समुदायों के कौशल विकास और प्रशिक्षण में प्रत्यक्ष रूप से निवेश किया जा सकता है।
2016 में, एएलसी इंडिया ने एक्सेस लाइवलीहुड फाउंडेशन (एएलएफ) शुरू किया, सेक्शन-25 के अंतर्गत पंजीकृत यह कंपनी भी एएलसी के समान ही है। यह कम्पनी सामुदायिक उद्यमों द्वारा आवश्यक समर्थन को खोजने के लिए आवश्यक अनुसंधान गतिविधियों को आगे बढ़ाएगी। कृष्णगोपाल बताते हैं, 'एएलएफ के एक गैर लाभकारी संगठन होने के नाते यह फंडिंग संगठनों के अनुदान तक पहुंचने में सक्षम होगा और प्राप्त अनुदान को समूहों के प्रयोजनों के लिए उन्हें दे सकेगा।' टाटा ट्रस्ट ने इस परियोजना को 7 करोड़ रुपये की पूंजी का सहयोग दिया है।
एएलसी इंडिया को अनन्या फाइनेंस और नाबार्ड फाइनैंशियल सर्विसेज लिमिटेड (NBIN) से भी वित्तीय सहयोग प्राप्त हुआ है। 2017 में, एएलसी इंडिया को छह संगठनों में से नीति आयोग द्वारा 10 करोड़ रूपए के आर्थिक सहयोग के लिए चुना गया था ताकि जमीनी स्तर पर उद्यमों को बढ़ावा और नए सामाजिक उद्यमों की स्थापना की जा सके।
एएलसी इंडिया ने ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया इनिशिएटिव (TII) भी शुरू किया है। यह उद्यमियों और उद्यमों के लिए एक फैलोशिप कार्यक्रम है। कृष्णगोपाल कहते हैं, दो साल से अधिक तक अनुभव से सीखने और जमीनी स्तर पर काम करने के बाद फेलो नौकरी चाहने वाले की बजाय एक जिम्मेदार सामाजिक उद्यमी में परिवर्तित हो जाएगा।' एएलसी इंडिया की कोर टीम, जो कि अब 70 कर्मचारियों का एक समूह है, और अधिक उद्यमों और समूहों के साथ काम करना जारी रखने पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रही है।
कृष्णगोपाल पूरे विश्वास और उम्मीद के साथ कहते हैं, कि 'समूहों के गठन और उनके विकास में अपने अनुभव और विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए, हमारा उद्देश्य भविष्य के सामाजिक उद्यमियों का निर्माण और उनका मार्गदर्शन करना है। यह फेलोशिप एक ऐसा प्रयास है जिसमें हम युवा उद्यमियों से अपनी जीत और विफलताओं से सीख कर मशाल आगे ले जाने कि अपेक्षा करते हैं।'
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