सबसे खतरनाक नक्सल इलाके में तैनाती मांगने वाली कोबरा फोर्स की अधिकारी ऊषा किरण
इस बार एक ऐसी महिला को 'वोग वूमन ऑफ द अवॉर्ड-2018' से सम्मानित किया गया जो कि नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में माओवादियों के लिए खौफ का पर्याय बन चुकी हैं। हम बात कर रहे हैं युवा सीआरपीएफ कमांडर ऊषा किरण की।
हरियाणा के गुड़गांव की रहने वाली ऊषा राष्ट्रीय स्तर की एथलीट भी रह चुकी हैं। उन्होंने ट्रिपल जंप में दिल्ली का प्रतिनिधित्व किया है। बस्तर में इन दिनों सिर्फ दो महिला सीआरपीएफ अधिकारियों की ड्यूटी लगी है।
वोग जैसी मैग्जीन द्वारा आयोजित किए जाने वाले फैशन शो के बारे में तो आपने सुना और देखा होगा। किसी भी फैशन शो का नाम आते ही आपके दिमाग में चमक-दमक, फैशन और ग्लैमर की तस्वीर कौंध जाती होगी। लेकिन इस बार व़ोग फैशन शो में कुछ अलग हुआ। इस बार एक ऐसी महिला को 'वोग वूमन ऑफ द अवॉर्ड-2018' से सम्मानित किया गया जो कि नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में माओवादियों के लिए खौफ का पर्याय बन चुकी हैं। हम बात कर रहे हैं युवा सीआरपीएफ कमांडर ऊषा किरण की।
इस बार वोग फैशन शो में सभी प्रतिभागियों ने रेड कारपेट पर अपने पारंपरिक डिजाइनर गाउन्स और ड्रेस में रैंप वॉक किया तो वहीं ऊषा अपनी वर्दी में रौबीली छवि के साथ रैंप पर नजर आईं। उनकी तस्वीर देखकर हर किसी के मन में देश की सुरक्षा करने वाले जवानों के प्रति सम्मान और बढ़ जाता है। वोग द्वारा ही प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक पुरस्कार प्राप्त करने के बाद ऊषा ने कहा, 'इस अवॉर्ड को पाने के बाद मैं कहना चाहूंगी कि यह पुरस्कार सिर्फ ऊषा किरण को मिलने वाला पुरस्कार नहीं है, बल्कि यह हर एक सिपाही को मिलने वाला पुरस्कार है जो देश की सुरक्षा में अपना योगदान दे रहा है।'
ऊषा ने कहा कि हर जवान जो देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान पर खेल रहा है, वह इस पुरस्कार का हकदार है। ऊषा ने यूपीएससी द्वारा आयोजित की जाने वाली सीएपीएफ (असिस्टेंट कमांडे) परीक्षा पास कर यहां तक पहुंची हैं। उनकी ट्रेनिंग सीआरपीएफ के 232 महिला बटालियन में हुई थी। कोर्स खत्म होने के बाद उन्होंने अपने सीनियर अधिकारियों से अतिवादी वाम हिंसा प्रभावित राज्य, जम्मू-कश्मीर या फिर उत्तर पूर्वी इलाकों में ड्यूटी लगाने की गुजारिश की थी। ऊषा कभी अपने दृढ़ निश्चय से पीछे नहीं हटीं। जब उन्हें छत्तीसगढ़ के बस्तर में सेवा करने का मौका मिला तो उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाने का फैसला किया।
हरियाणा के गुड़गांव की रहने वाली ऊषा राष्ट्रीय स्तर की एथलीट भी रह चुकी हैं। उन्होंने ट्रिपल जंप में दिल्ली का प्रतिनिधित्व किया है। बस्तर में इन दिनों सिर्फ दो महिला सीआरपीएफ अधिकारियों की ड्यूटी लगी है। ऊषा भी उनमें से एक हैं। उन्होंने 25 साल की उम्र में ही सीआरपीएफ जॉइन कर लिया था। अपना काम गंभीरता से निभाने वाली ऊषा अपनी बटालियन को लेकर सर्च ऑपरेशन पर निकल जाती हैं। इस समय वह जिस रीजन में तैनात हैं वह सबसे खतरनाक नक्सली इलाकों में से एक माना जाता है। यह वही जगह है जहां कुछ साल पहले 34 नेताओं को नक्सलियों ने मार दिया था।
ऊषा के पिता और दादाजी भी सेना में रहकर देश की सेवा कर चुके हैं। वह बताती हैं कि उनके रहने से बस्तर के आदिवासी खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सुरक्षा बलों पर बस्तर के आदिवासियों द्वारा रेप जैसे संगीन आरोप लगाए गए। अब ऊषा जैसी महिला अधिकारियों को ड्यूटी पर तैनात कर सुरक्षा बलों द्वारा जवाब दिया जा रहा है।
ऊषा कहती हैं, 'गांव की आदिवासी महिलाएं सुरक्षा बल के पुरुष जवानों से डरती हैं इसलिए मैं उनसे जाकर बात करती हूं और वे मेरे साथ एकदम सहज महसूस करती हैं।' दरभा पुलिस स्टेशन के ऑफिसर इन-चार्ज विवेक उइके कहते हैं, 'महिला कमांडरों का हमेशा से स्वागत रहा है। सुरक्षा बलों को उम्मीद है कि ऊषा के आने से बस्तर इलाके में बल की छवि सुधरेगी।' ऊषा का जुनून और साहस देखकर न जाने कितनी लड़कियों को उनसे प्रेरणा मिलेगी। वह किसी लेडी सिंघम से कम नहीं हैं। हम उम्मीद करते हैं कि ऊषा अपने काम से देश की उन तमाम लड़कियों और माता-पिताओं को प्रेरित करती रहेंगी जिन्हें ये समाज बराबरी का दर्जा नहीं देना चाहता।
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