रेल की पटरियों पर हाथियों की मौत पर लगाम लगाएगा यह सेंसर
हाथियों के आने जाने वाले रास्तों पर अतिक्रमण बढ़ने की वजह से एक ओर जहां हाथी असमय ही मौत के मुंह समा रहे हैं वहीं दूसरी ओर इंसानों और हाथियों के बीच होने वाली भिड़ंतों की घटनाओं में भी तेजी से वृद्धि दर्ज की जा रही है।
वैज्ञानिकों ने रेल की पटरियों पर फिट होने वाली एक ऐसी डिवाइस तैयार करने में सफलता पाई है जिसके सेंसर हाथी की तस्वीर लेने के अलावा उसकी हलचल और आवाज को ट्रेक करके उसे एक स्वचलित एल्गोरिद्म में फीड कर सकती हे।
हाथियों की याददाश्त बेहद तेज होती है और वे लंबे अरसे तक अपनी आवाजाही का रास्ता याद रख सकते हैं। लेकिन उन रास्तों पर अतिक्रमण बढ़ने की वजह से एक ओर जहां हाथी असमय ही मौत के मुंह समा रहे हैं वहीं दूसरी ओर इंसानों और हाथियों के बीच होने वाली भिड़ंतों की घटनाओं में भी तेजी से वृद्धि दर्ज की जा रही है।
दिल्ली स्थित वाइल्डलाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया की ओर से बीते साल जारी की गई ‘‘राइट आफ पैसेजःएलीफैंट कारीडोर्स आफ इंडिया’’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल ट्रेनों की टक्कर, बिजली का झटका लगने और सड़क हादसों के चलते भारत में औसतन सौ हाथियों की मौत हो जाती है। इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इंसानों और हाथियों के बीच लगातार तेज होते संघर्ष के चलते प्रतिवर्ष चार सौ से साढ़े चार सौ लोगों की मौत हो जाती है।
हाथियों के जिन गलियारों में इंसानी बस्तियां बढ़ रही हैं उनमें से सबसे ज्यादा 13 पश्चिम बंगाल में हैं. इसके बाद ओडीशा (नौ) और असम (आठ) का स्थान है। पश्चिम बंगाल हाथियों की मौतों के मामले में दूसरे नंबर पर रहा है। कभी कर्नाटक तो कभी ओडीशा पहले नंबर पर रहते हैं।
इस साल जून के महीने में हरिद्वार के राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर इलाके में 70 किमी प्रति घंटे की गति से गुजरती देहरादून-काठगोदाम एक्सप्रेस की चपेट में आकर एक हथिनी की मौत हो गई थी। इसके अलावा बीते महीने पश्चिम बंगाल में ऐसी ही एक अन्य घटना में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस की चपेट में आकर एक शावक समेत तीन हाथियों की मौत गई थी। इससे पहले बीते साल दिसंबर में गुवाहाटी-नाहरलागून एक्सप्रेस की टक्कर से बामगांव हाथी कारीडोर में पांच हाथियों की मौत हो गई थी। अब हाल में ओडीशा में सात हाथियों की मौत का मामला सामने आया है। खतरनाक तरीके से बढ़ रही इन घटनाओं ने वन्यजीव विशेषज्ञों के अलावा भारतीय रेलवे को भी चिंता में डाल दिया है।
इस सबके बीच वैज्ञानिकों ने रेल की पटरियों पर फिट होने वाली एक ऐसी डिवाइस तैयार करने ने सफलता पाई है जिसके सेंसर हाथी की तस्वीर लेने के अलावा उसकी हलचल और आवाज को ट्रेक करके उसे एक स्वचलित एल्गोरिद्म में फीड कर सकती हे जिसे नजदीकी स्टेशन मास्टर या फिर ट्रेन के चालक को भेजा जा सकता है।
भारतीय रेलवे रेल की पटरियों पर होने वाली हाथियों की मौत के बढ़ते मामलों को लेकर चिंतित है और उनकी असामयिक मौतों को रोकने के प्रयासों में लगी हुई है। पूर्वोत्तर, असम और उत्तर प्रदेश में बी योजना लागू करने के बादरेलवे अब आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर क्षरा तैयार किये गए एक सेंसर को लेकर काफी उत्साहित है। राष्ट्रीय वाहक फिलहाल रेल की पटरियों पर इस सेंसर का परीचण कर रहा है और अगर इस परीक्षण के नतीजे संतोषजनक और उत्साहवर्धक आते हैं, तो इन सेंसरों को ‘‘हाथी गलियारों’’ में स्थापित किया जाएगा।
देश में हाथियों की आवाजाही के लिए कुल 110 गलियारे हैं जिनमें से 23 सिर्फ पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में स्थित हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से 70 फीसदी का नियमित रूप से इस्तेमाल होता है जबकि बाकी का कभी-कभार। लेकिन इनमें से 29 फीसदी गलियारों पर इंसानों का अतिक्रमण हो गया है। इसके अलावा 66 फीसदी गलियारे ऐसे हैं जिनसे होकर हाइवे गुजरता है। 22 फीसदी गलियारे से रेलवे की पटरियां गुजरती हैं जबकि चार दूसरे गलियारों में भी रेलवे लाइन बिछाने की योजना है।
फस्र्टपोस्ट की खबर के मुताबिक, आईएएनएस के साथ बातचीत में आईआईटी दिल्ली में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सुब्रत कर ने कहा, ‘‘अभी इन सेंसरों को स्थापित किया जाना बाकी है। इनका परीक्षण मानसून के मौसम में किया जाना है। चूंकि इस वर्ष का मानसून बीत चुका है इसलिये हम 2019 का इंतजार कर रहे हैं। हमारी प्रणाली क्रियशील है। हमने बिल्कुल ऐसी ही स्थिति में परीक्षण किया है लेकिन मौके पर नहीं। हमने परीक्षण स्थल के रूप में राजाजी नेश्नल पार्क का चुनाव किया है। यह एक आदर्श स्थान है और यहां का नियंत्रित वातावरण प्रयोगों के लिये सबसे बेहतर है। यह एक ऐसा स्थान है जो रेलों की सही गति के लिये जाना जाता है।’’
यह सेंसर कैमरों, स्पंदन और शारीरिक किरणों जैसे विभिन्न अंर्तनिर्मित उपकरणों के माध्यम से हाथियों की आवाजाही का पता लगा सकते हैं। इसके अलावा यह ये भी पता लगाने में सक्षम है कि गुजर रहा जानवर हाथी है या फिर कुछ और।
द टेलीग्राफ से बात करते हुए कर ने कहा, ‘‘रेल की पटरियों पर लगाए जाने के बाद उक्त सेंसर स्वचलित एल्गोरिद्म में सूचना पुष्ट करने से पहले उसे दृश्य, हलचल, आवाज, रोशनी और अन्य मानकों पर ट्रेक करेगा। इसके बाद एल्गोरिद्य यह तय करेगा कि क्या कोई हाथी या फिर हाथियों का झुंड रेल की पटरियों के नजदीक है। इसके बाद नजदीकी स्टेशन मास्टर या फिर उस क्षेत्र से गुजरने वाली ट्रेन के चालक को एक मैसेज भेजा जाएगा।’’
फाईनेंशियल एक्स्प्रेस के मुताबिक, अगर ट्रेन हाथियों की मौजूदगी वाले स्थान से 3 किलोमीटर दूर है तो उसके ब्रेक स्वचलित रूप से सक्रिय हो जाएंगे और ट्रेन अपने आप रुक जाएगी। उम्मीद है कि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई इस तकनीक को अपनाकर रेल की पटरियों पर आकर हाथियों की होने वाली मौतों को रोका जा सकेगा।
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