Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

एक सच्ची कहानी, जो बताती है महिला सेक्स वर्करों की ज़िंदगी में रंग भरने की राह

Garima Singh

Kallan Gowda

एक सच्ची कहानी, जो बताती है महिला सेक्स वर्करों की ज़िंदगी में रंग भरने की राह

Monday April 29, 2019 , 5 min Read

सांकेतिक तस्वीर साभार-Shutterstock


सेक्स वर्क के ज़रिए आजीविका चलाने को मजबूर महिलाओं की स्थिति दूर से जितनी दयनीय और भयावह नज़र आती है, क़रीब से देखने पर पता चलता है कि हालात और भी ज़्यादा ख़राब हैं। अंधेरे से भरी इनकी ज़िंदगी को राह और रौशनी देने के लिए आहावन नाम की एक मुहिम के अंतर्गत कम्युनिटी ऑर्गनाइजेशन्स शुरू किए गए, जो न सिर्फ़ महिला सेक्स वर्करों को आजीविका के दूसरे साधन मुहैया करा रहे हैं, बल्कि समाज में एक सम्मानजनक दर्जा हासिल करने में भी उनकी मदद कर रहे हैं। इस नेक मुहिम की दास्तां बयां करती हुई कहानी है, गौरी की।


36 वर्षीय गौरी (नाम परिवर्तित है) कहती हैं, "मेरे पति की मौत के बाद मेरे दोनों जवान बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह से मेरे ऊपर आ गई। इसके बाद मेरे पास सेक्स वर्कर बनने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था। मेरा सपना है कि मैं अपने बच्चों को पढ़ाऊं और उन्हें एक बेहतर भविष्य दूं।"


गौरी आंध्र प्रदेश के गुंटकल शहर की रहने वाली हैं। चार साल पहले उनके पति की मौत हो गई थी और इसके बाद दोनों बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह से उनके ऊपर थी। वह पूरी तरह से अकेली थीं और वह शिक्षित भी नहीं थीं और न ही उन्हें कोई ऐसा काम आता था, जिसके भरोसे वह अपनी आजीविका चला सकें। इस वजह से सेक्स वर्कर बनने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था और अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए उनके पास बस एक ही विकल्प था।


भारत में ज़्यादातर महिलाओं को ग़रीबी और आय के सीमित विकल्पों की वजह से ही सेक्स वर्कर बनना पड़ता है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का इतिहास हमेशा से ही सबसे ज़्यादा फ़ीमेल सेक्स वर्करों और एचआईवी से पीड़ित लोगों का गवाह रहा है। नैशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन (एनएसीओ) के मुताबिक़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की लगभग दो तिहाई फ़ीमेल सेक्स वर्कर्स आजीविका के लिए पूरी तरह से इस एक ज़रिए पर ही निर्भर रहती हैं।


गौरी एक मज़बूत महिला थीं और इसलिए ही उन्होंने अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए बेशुमार कठिनाइयों का सामना करने की अपनी नियति को स्वीकार किया, लेकिन वक़्त के साथ-साथ उनकी मुश्किलें बढ़ती गईं। सेक्स वर्क से मिलने वाली कमाई से भी उनका घर चलाना मुश्किल हो गया। इस काम में उनके नियमित पार्टनर ने भी उनके बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया, बल्कि उन्हें भी ऐसा करने से रोका।


इस व्यवसाय में ज़्यादातर संबंधों में हिंसा और दबाव बनाने की घटनाएं सामने आती हैं और इस वजह से फ़ीमेल सेक्स वर्करों की स्थिति और भी दयनीय होती चली जाती है। यहां तक कि महिलाओं को असुरक्षित सेक्स के लिए भी मजबूर किया जाता है और वेश्यालय चलाने वालों द्वारा भी उनका कई प्रकार से शोषण किया जाता है।


ऐसे हालात में गौरी की भी स्थिति बद से बदतर होती चली गई और इसलिए उन्होंने गुंटकल में ही एक कम्युनिटी ऑर्गनाइज़ेशन (सीओ) से संपर्क किया और मदद की गुहार लगाई। यह संगठन भारत में एड्स के ख़िलाफ़ चलने वाली मुहिम आवाहन का हिस्सा है, जिसे 2003 में भारत में एचआईवी से प्रभावित 6 प्रमुख राज्यों में एचआईवी की रोकथाम हेतु शुरू किया गया था।


इन कम्युनिटी ऑर्गनाइज़ेशन्स की मदद से सेक्स वर्करों को उनके मूलभूत अधिकार दिलाए जाते हैं और उनकी आधारभूत ज़रूरतें पूरी की जाती हैं, जैसे कि उनका राशन कार्ड और आधार कार्ड बनवाना, उनके बैंक अकाउंट्स खुलवाना और गैस कनेक्शन दिलवाना आदि। इसके अतिरिक्त सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभ लेने में भी सेक्स वर्करों की मदद की जाती है।


कम्युनिटी ऑर्गनाइज़ेशन से जुड़ने के बाद गौरी को यूनीफ़ाइड हेल्प डेस्क (यूएचडी) के बारे में पता चला। ये यूएचडी महिला सेक्स वर्करों को विभिन्न सामाजिक और आर्थिक सुविधाओं का लाभ दिलाते हैं। इस मदद की बदौलत कुछ समय बाद ही गौरी ने कॉर्पोरेशन लोन के लिए आवेदन दिया। दो महीनों बाद उन्हें 60 हज़ार रुपए मिले, जिसकी मदद से उन्होंने साड़ियों, सलवार सूट और नाइट ड्रेस आदि का व्यवसाय शुरू किया।


इस बिज़नेस से होने वाली आय से उनके घर की स्थिति सुधर गई। आय का दूसरा ज़रिया मिलने से अकेले सेक्स वर्क के ऊपर उनकी निर्भरता ख़त्म हो गई और अब वह असुरक्षित यौन संबंध बनाने के लिए विवश नहीं थीं।


गौरी बताती हैं, "मेरे बच्चे अब अच्छे स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। मैं उनकी फ़ीस, यूनिफ़ॉर्म और किताबों का खर्चा वहन कर सकती हूं और वह भी सिर्फ़ अपने दम पर। यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।" गौरी अपने आपको अब सिर्फ़ एक सेक्स वर्कर के तौर पर नहीं बल्कि एक कपड़ा व्यापारी के रूप में देखती हैं। अब वह अपने काम और अपना दोनों का ही सम्मान करती हैं।


गौरी की कहानी बताती हैं कि आय के दूसरे विकल्पों के ज़रिए महिला सेक्स वर्करों का आत्मविश्वास बढ़ता है और साथ ही, वे असुरक्षित यौन संबंध बनाने की विवशता से भी अपना बचाव कर पाती हैं। साथ ही, इसकी बदौलत वे पूरे आत्मविश्वास के अपने और अपने बच्चों के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकती हैं।


यह भी पढ़ें: इस महिला ने रचा इतिहास, पुरुषों के इंटरनेशनल वनडे मैच में करेंगी अंपायरिंग