बनारस में 'द धोबी' के जरिए रोज़गार और गंगा को साफ रखने की कोशिशों में जुटे तीन युवा
टेक्नोलॉजी से जोड़कर समाज को दिखाई नई राह दिखा रही है 'द धोबी'
गंगा को क्लीन करना भी है 'द धोबी' का मिशन
कम कीमत में बेहतर सुविधा देना है कंपनी का मकसद
आप खुद तो आरओ वाटर पीते हैं, पर क्या अपने कपड़ों को आरओ वॉटर पिलाते हैं... ये सवाल पूछते हुए वाराणसी में अगर आपको कोई मिल जाये तो चौंकिये मत... जी हाँ शहर में युवाओं की एक टोली ऐसी भी है जिन्होंने आपके कपडे को तालाबों, कुंडों और नदियों के गंदे पानी यहाँ तक कि आपके घरों में जो अंडरग्राउंड पानी आ रहा है, उसमे भी मौजूद हैवी केमिकल आपके कपड़ों को नुकसान न पहुंचा सकें... इसके लिए न सिर्फ आपको जागरूक करते हैं बल्कि खुद इन्होंने एक इंडस्ट्रीयल लॉड्री लगाई है। जिसमे इटीपी प्लांट , वाटर साफ्टनर लगा कर पानी को शुद्ध कर के कपड़ा धोते है, जिससे कपडों की जिंदगी बनी रहे ...
कपडों की जान की हिफाज़त से रखने का बीडा उठाने के लिए प्रगल्भ दत्त तिवारी और अजय सिंह ने मिल कर ‘द धोबी’ नाम की फर्म बनाई.. प्रगल्भ दत्त तिवारी बनारस के एक विख्यात न्यूरो सर्जन के पुत्र हैं। जिनका 150 बेड का एक अस्पताल है। देश के प्रतिष्ठित स्कूल से एमबीए की पढ़ाई करने वाले प्रगल्भ दत्त ने नौकरी के बजाय खुद का कारोबार करने करने का क्यों मन बनाया, इसके पीछे की कहानी भी दिलचस्प है। योर स्टोरी टीम से बात करते हुए प्रगल्भ ने बताया
"जिस समय एमबीए कर रहा था उस वक्त लोग कहते थे कि एमबीए के बाद ये अस्पताल की मार्केटिंग का ज़िम्मा संभाल उसे आगे बढायेंगे। पर मेरे मन में तो कुछ नया करने का था। मैं हमेशा ही कुछ हटके काम करना चाहता था। इसीलिए मैंने इस व्यवसाय को चुना"
क्या है कारोबार से जुड़ने की वजह ?
दरअसल बनारस में तालाबों और कुंडों का पानी बेहद गंदा है...प्रगल्भ जब भी इन कुंड़ों में लोगों को कपड़ा धोते देखते थे तो उनके मन में आता था कि ये तो बहुत अन हाइजेनिक है इसे ठीक किया जाये.... इस पानी में दिन भर खड़ा रहने से लोगों के स्वास्थ्य पर खतरा बना रहता है। ये भी इनके मन में चलता रहता था लिहाजा पढ़ाई के दरमियान ही इनके मन में आ गया कि इसे ही ठीक करने के लिये क्यों न मुहिम चलाई जाए।
प्रलग्भ तिवारी की इस सोच को और आगे बढ़ाने के लिए इन्हें साथ मिल गया अजय सिंह का, जो पेशे से पत्रकार हैं और सामजिक सरोकार से जुडी खबरें करते रहे हैं। वो भी कुछ ऐसा ही सोच रहे थे। योर स्टोरी ने जब अजय सिंह से बात कि तो उन्होंने बताया
"2005 में जब मैं बनारस आया तो मैंने देखा कि गंगा के घाट बहुत सुन्दर और अद्भुद हैं पर गंगा को कोई और नहीं हम लोग ही सबसे ज्यादा गंदा करते हैं। इसमें उन लोगों का भी बड़ा योगदान है जो गंगा में कपड़ा धोते हैं। उससे मन में आया कि क्यों न अपनी गंगा को मुक्त किया जाये"
इसी उधेड़बुन के बीच अजय सिंह की मुलाकात जोश से लबरेज कुछ नया कर गुजरने कि चाह लिए प्रगल्भ से हुई। बातें हुईं। विचार धारा एक हुई। लिहाजा दोनों ने मिल कर एक ऐसी लांड्री डालने का संकल्प लिया जिसमें कपड़ों को गंदे पानी में नहीं बल्कि ऐसे पानी से धोया जाये जिसमें ऑक्सीजन कंटेंट ज्यादा हो। कपड़ों को पटक पटक कर उसकी जान न निकाली जाये, बल्कि उसे मशीन के सिलिंड्रिकल बास्केट में धोया जाये साथ ही भाप युक्त पानी का इस्तेमाल हो, जिससे कीटाणु रहित धुलाई मिल सके। कपडों को और बेहतर बनाने के लिये तेज़ाब, कास्टिक सोडा नहीं बल्कि उसकी जगह हाईडेड केमिकल का इस्तेमाल किया जाये। जिससे कपडे साफ़ सुन्दर मुलायम और कई धुलाई के बाद भी नए बने रहें। इसी परिकल्पना के साथ सामने आया ‘द धोबी ’....
अब इन लोगों के सामने एक बड़ा सवाल ये था कि इंडस्ट्रीयल लांड्री का नाम आते ही लोगों के ज़ेहन आता है कि इसमें अस्पताल, होटल, रेलवे जैसे संस्थानों के कपडे धुले जायेंगे। पर इन लोगों का मिशन तो कुछ और था। ये हमारे और आपके कपड़ों को बेहतर बनाना चाहते थे साथ ही ये धोबी समाज को भी नई तकनीक से जोड़ कर उन्हें भी गंदे पानी से निजात दिलाना चाहते थे। लिहाजा इंडस्ट्रीयल लांड्री में सिर्फ हॉस्पिटल और होटल के कपडे धुले जाते हैं, इस मिथक को तोड़ते हुये इन लोगों ने हमारे और आपके रोज़मर्रा के पहने जाने वाले कपड़ों को धोने का संकल्प लिया।
मशीन आ गई लांड्री लग गई। अब अपने मकसद को जन जन तक पहुंचाने, धोबी समाज को नई तकनीकी से जोड़ने और गंगा को कपड़े धोने वालों से मुक्त करने की भी चुनौती थी। जिसके लिए इन्हें अपने कुनबे को और बढ़ाने की जरुरत थी। इनकी ये तलाश खत्म हुई जब ये पत्रकार साथी नवीन सिंह से मिले। नवीन कई न्यूज चैनलों और दिल्ली मुंबई के कई प्रोडक्शन हाउस में काम करते रहने वाले ने नौकरी छोड़ इनके साथ कंधे से कंधा मिलाने के लिये जुट गये। योर स्टोरी को नवीन ने बताया
"इस काम में कपड़ा धोने वाले को स्मार्ट बनाने के साथ ही गंगा को प्रदूषण से मुक्ति मिल रही है। साथ ही हमारा बिजनेस भी बढ़ने लगा है"
बनारस में द धोबी के प्रचार का आलम ये है कि पिछले चार महीनों में 100 से ज्यादा कपड़ा धोने वाले संपर्क कर चुके हैं। कंपनी के ऑफिस में शहर के कपड़ा धोने वालों को नई नई तकनीक से जोड़ा जा रहा है। उन्हें मार्केटिंग के गुर सिखाए जा रहे हैं। द धोबी के जरिए गंगा प्रदूषण मुक्ति का संकल्प कपड़ा धोने वालों को दिया जा रहा है। द धोबी के जरिए शहर के कपड़ा धोने वालों को ये बताया जाता है कि आप गंगा में कपड़ा न धोए, आप हमारी लांड्री में आ कर कपड़ा धोएं, हमें सिर्फ बिजली और केमिकल का मामूली पैसा दें और अगर नहीं दे सकते तो मुफ्त ही धोएं ताकि गंगा को साफ रखा जा सके।
प्रगल्भ दत्त कहते हैं,
"सदियों से जो लोग परम्परागत तरीके से कपड़ा धो रहे हैं वो इतनी जल्दी बदल नहीं पायेंगे। इसमे सतत प्रयास कि ज़रूरत है जो हम लोग लगातार कर रहे हैं। इन्हें ट्रेंड करने के लिये अब हम लोग प्रशिक्षण शिविर भी चालू करने जा रहे। जिसमें उन्हें ये बताएंगे कि तेजी से बदलते दौर में कैसे वो मशीनों से जुड़ कर तरक्की के रास्ते पर जा सकते हैं"
फिलहाल अभी तो लोगों को पानी कि गुणवत्ता के साथ कपड़े धोने से क्या फायदा होता है इसके लिये कई अपार्टमेंटों में द धोबी का कैम्प लगा चुके हैं, जिसमें लोग उनसे अभी धीरे धीरे जुड़ रहे हैं।
द धोबी के इस कांसेप्ट पर अजय सिंह बहुत बेबाकी से योर टीम को बताते हैं कि ‘’आप ऐसा मत समझियेगा कि हमलोग कोई समाज सेवा कर रहे हैं… बिल्कुल नहीं... हम अपना एक बिजनेस खड़ा करा रहे हैं... सिर्फ नफे और नुकसान के लिये ये बिजनेस नहीं है बल्कि ये एक ऐसा स्टार्टअप है जिसमे बिजनेस के साथ एक समाज को नये युग के मुताबिक़ एजुकेट भी करना है ’’ ....साथ ही उन्हें अपग्रेड भी करना है क्योंकि जब ये सभी धोबी मशीनों के साथ अपग्रेड हो जायेंगे तो धुलाई के मामले में बनारस स्मार्ट हो जाएगा…. यही वजह है कि हमारी फर्म का सूत्रा वाक्य है कि " आपका धोबी स्मार्ट होना चाहता है , वो भी अपने लिये नहीं बल्कि आपके कपड़ों लिये…. आपका कपड़ा उसके लिये एक मासूम बच्चे कि तरह है , जिसकी जान वो तालाब ,नदी के गंदे पानी ,केमिकल ब्लीच कास्टिक से हर धुलाई में नहीं निकालना चाहता लिहाजा अब वो सिर्फ धोबी नहीं बल्कि द धोबी है…….