मिलिए उस महिला से जिसके जिंदगी भर के संघर्षों की बदौलत बदला भारत का 'रेप कानून'
भंवरी घर-घर जाकर महिलाों को साफ-सफाई, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन और लड़की को पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती थीं और बाल विवाह और दहेज जैसी कुरीतियों के खिलाफ बोलती थीं। 1992 में उन्हें गांव के तथाकथित उच्च जाति से ताल्लुक रखने वाले एक गुर्जर परिवार में एक नौ महीने के मासूम बच्चे की शादी की जा रही थी। भंवरी इस शादी को रोकना चाहती थीं।
हालांकि भंवरी को पता था कि उच्च जाति के लोगों से चुनौती लेना खतरे से खाली नहीं है, लेकिन उन्होंने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया। इसी ईमानदारी का उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा।
हमारे समाज में सदियों से महिलाओं से गैरबराबरी का सलूक होता आया है। आजादी के बाद जब देश का संविधान बना तो उसमें महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा दिया गया, लेकिन परंपरा और डर के साथ ही कई तरह की सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी दिक्कतों के चलते या तो महिलाओं को पुरुषों को काम करने की आजादी नहीं दी गई या फिर उन पर शर्तें लगा दी गईं। लड़कियों को कई बार किसी खास पेशे में जाने से रोका जाता है क्योंकि उस क्षेत्र में पुरुषों का आधिपत्य होता है और यही बात एक लड़की के लिए कई सारे अवसरों को खत्म कर देती है। इसी वजह से ऑफिस या किसी भी कार्यस्थल को महिलाओं के अनुकूल बनाने के साथ भेदभाव और उत्पीड़न रोकने के लिए एक कानून बना है, जिसे विशाखा गाइडलाइंस के नाम से जाना जाता है।
इस विशाखा गाइडलाइंस के पीछे राजस्थान की भंवरी देवी का हाथ है, जिन्होंने उत्पीड़न सहकर भी अपना पूरा जीवन महिलाओं के अधिकारों में लगा दिया। आज से लगभग 25 साल पहले 1992 में बाल विवाह के खिलाफ बोलने पर कुछ तथाकथित उच्च जातियों के लोगों ने उनके साथ रेप किया था। उस वक्त भंवरी देवी अपने पति के साथ खेत में काम कर रही थीं। आज भंवरी की उम्र 57 साल हो गई है, लेकिन उन्हें अब भी वो पल याद है जब हैवानों ने उनके साथ ज्यादती की थी। सबसे दुखद बात यह है कि 25 साल बीतने के बाद भी दोषियों को उचित सजा नहीं मिल पाई।
न्याय का एक सिद्धांत है कि न्याय में देरी मिलना कोई न्याय नहीं होता। शायद इसीलिए आज भी भंवरी देवी महिला अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध हैं। वह कहती हैं, 'कभी तो हमें इंसाफ मिलेगा। आज ये लड़ाई मैं खुद के लिए नहीं लड़ रही हूं। मेरी उम्र अब ढलने लगी है, लेकिन मेरी लड़ाई आने वाली पीढ़ी की लड़कियों को ताकत देगी। हर एक बच्ची हर एक लड़की जो इस पितृसत्तात्मक समाज से बाहर निकालकर अपने सपनों को पूरा करना चाहती है उसे ताकत मिलेगी।'
भंवरी देवी राजस्थान सरकार के महिला विकास प्रोग्राम के तहत 1985 से ही बाल विवाह को रोकने के लिए काम कर रही थीं। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक वे हर एक बाल विवाह को रोकने का प्रयत्न करती थीं और पुलिस को भी उसकी सूचना देती थीं। लेकिन समाज की मानसिकता इतनी जड़ थी कि यह काम काफी मुश्किल था। लोगों के दिमाग में यह बात समझ ही नहीं आती थी कि बच्चों की शादी की एक निश्चित उम्र होती है। उससे पहले शादी करने किसी के लिए भी अच्छा नहीं है।
भंवरी उस दौरान घर-घर जाकर महिलाों को साफ-सफाई, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन और लड़की को पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती थीं और बाल विवाह और दहेज जैसी कुरीतियों के खिलाफ बोलती थीं। 1992 में उन्हें गांव के तथाकथित उच्च जाति से ताल्लुक रखने वाले एक गुर्जर परिवार में एक नौ महीने के मासूम बच्चे की शादी की जा रही थी। भंवरी इस शादी को रोकना चाहती थीं। उन्होंने उस गुर्जर परिवार के यहां जाकर उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। उन्होंने एक पिछड़े जाति की महिला से ऐसी बातें सुनना अपनी तौहीन समझा।
जब वे नहीं माने तो भँवरी ने पुलिस को खबर दी। लेकिन पुलिस भी निष्क्रिय रही और सिर्फ एक सिपाही को गुर्जर परिवार के यहां भेजा जो मिठाई खाकर वापस चला आया। हालांकि भंवरी को पता था कि उच्च जाति के लोगों से चुनौती लेना खतरे से खाली नहीं है, लेकिन उन्होंने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया। इसी ईमानदारी का उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा। एक दिन वह अपने पति के साथ खेतों में काम कर रही थीं। तभी उस परिवार के कुछ लोगों ने उनके पति को बांधकर मारा-पीटा और खेत में ही भंवरी का सामूहिक रेप किया। भंवरी कहती हैं कि वे उस खौफनाक मंजर को कभी नहीं भूल सकती हैं।
इसके बाद भंवरी और उनके पति चुप नहीं बैठे। वे पुलिस के पास गए और रिपोर्ट दर्ज कराई। मामला कोर्ट में पहुंचा, लेकिन न्यायिक उदासीनता के चलते उन्हें आज तक न्याय नहीं मिल पाया। आरोपियों को मामूली 9 महीने की सजा हुई और वे जेल से बाहर आ गए। भँवरी ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर की लेकिन वहां पिछले 22 साल में इस मामले की केवल एक तारीख पर सुनवाई हुई है। भंवरी देवी का साथ जयपुर के एक संगठन 'विशाखा' ने दिया।
जयपुर के कुछ महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और दिल्ली के कुछ संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। याचिका में काम करने की जगह को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने और हर कदम पर उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी नियोक्ता की सुनिश्चित करने की मांग की गई। साल 1997 में सुप्रीम ने कोर्ट विशाखा गाइडलाइंस जारी किए जिसके तहत वर्क प्लेस पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा के लिए नियम कायदे बनाए गए। विशाखा दिशा-निर्देशों के आने से पहले आए दिन कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव सुनने और देखने को मिलते थे। लेकिन 'विशाखा बनाम राजस्थान राज्य' मामले में जारी किये गए दिशा-निर्देशों ने कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने में युगांतकारी भूमिका निभाई। 2013 में संसद ने विशाखा जजमेंट की बुनियाद पर दफ्तरों में महिलाओं के संरक्षण के लिए एक कानून पारित कर दिया।
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