Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ADVERTISEMENT

आपकी सेहत के साथ हो रहा खिलवाड़: फलों में इंजेक्शन, दूध में डिटर्जेंट

आपकी सेहत के साथ हो रहा खिलवाड़: फलों में इंजेक्शन, दूध में डिटर्जेंट

Tuesday November 27, 2018 , 5 min Read

फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी के ताजा सर्वे में खुलासा हुआ है कि पचास फीसदी दूध मिलावटी है। सब्जियों में चूहा मारने की दवा, मिठाई में कास्टिक सोडा, सेब में कैल्शियम कार्बाइड नई बात नहीं, साथ ही स्ट्रॉबेरी में सुई मिलने का एक और वाकया हुआ है।

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


देश के अधिकतर शहरों में प्रोटीन का इकलौता स्रोत दूध या तो पानी मिला कर पतला किया जा रहा है या फिर उसे गाढ़ा बनाने के लिए उसमें फर्टिलाइजर, ब्लीच, डिटरजेंट जैसे केमिकल डाले जा रहे हैं।

स्ट्रॉबेरी में सुई मिलने का एक वाकया तो नया, एक पुराना है लेकिन मिलावटी फल-सब्जियों, मिठाइयों की वजह से मुद्दत से लोगों का खाना-खजाना खतरे में पड़ा हुआ है। दूध में डिटर्जेंट, घी में डालडा, महंगे तेल में सस्ता तेल, सेब में कैंसर पैदा करने वाला कैल्शियम कार्बाइड मिलना अब हैरत की बात नहीं रह गई है। सख्त कानूनी पहल के अभाव में स्थानीय स्तर पर देश के हर शहर, बाजार में मिलावटी खाद्य पदार्थ लोगों की जान से खेल रहे हैं। न्यूजीलैंड में स्ट्रॉबेरी के अंदर सुई मिलने की ताजा घटना ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। सुपरमार्केट के मालिक गैरी शीड के मुताबिक न्यूजीलैंड के दक्षिण द्वीपीय शहर जिराल्डिन में एक डलिया में सुई पाई गई तो स्टोर से सारी स्ट्रॉबेरी हटा ली गई।

इससे पहले ऑस्ट्रेलिया में गत सितंबर माह में स्ट्रॉब्रेरी में सुई होने के सैकड़ो मामलों ने हड़कंप पैदा कर दिया था। अपनी जेब भरने के लिए लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना कोई नया धंधा नहीं है। भीड़भाड़ भरी मंडियों के लाल-लाल सेब देख ललचाती निगाहें ग्राहकों को अपना मन काबू में नहीं रहने देती हैं लेकिन वह कैल्शियम कार्बाइड से पका होता है, किसे पता रहता है, और यह भी कि कैल्शियम कार्बाइड से कैंसर होता है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के अधिकारी कहते हैं कि नियमों और कानूनों के प्रभावी तरीके से लागू होने का रास्ता लंबा है।

फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के एक ताजा सर्वे में खुलासा हुआ है कि देश में बिक रहे करीब 50 फीसदी दूध में मिलावट हो रही है। जांच के लिए उठाए गए नमूनों में कच्चा और प्रॉसेस्ड, दोनों तरह के दूध शामिल हैं। सर्वे के लिए जो नमूने लिए गए, उनमें से 50 प्रतिशत तय मानकों के अनुरूप नहीं थे। इस दिशा में एक अतिरिक्त सतर्कता की पहल महाराष्ट्र सरकार ने की है। विधानसभा में इसके लिए आवश्यक संशोधन विधेयक पारित कर दिया गया है। राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री ने कहा है कि दूध प्रसंस्करण कंपनियां किसानों से दूध ख़रीदती हैं, लेकिन जब तक यह उपभोक्ताओं तक पहुंचता है, ‘विषाक्त’ हो जाता है।

अब राज्य में मिलावट पकड़े जाने पर उम्र कैद की सजा मिल सकती है। इस बीच पता चला है कि आईआईटी हैदराबाद के शोधकर्ता स्मार्टफोन आधारित एक ऐसा सिस्टम तैयार कर रहे हैं, जिसकी मदद से दूध में मिलावट होने पर इसका पता चल सकेगा। उनका दावा है कि क्रोमैटोग्राफी और स्पेक्ट्रोस्कोपी की मदद से दूध में मिलावट का पता लगाया जा सकता है हालांकि, यह तकनीक काफी महंगी है। आम लोग भी दूध में मिलावट का पता लगा सकें, इसके लिए नायलॉन के नैनो साइज वाले फाइबर की मदद से पेपर जैसी एक सेंसर स्ट्रिप तैयार कर रहे हैं। यह होलोक्रोमिक सेंसर पेपर डिटेक्टर की तरह काम करेगा।

एफएसएसएआई ने कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग पर रोक लगा रखी है लेकिन पर्दे के पीछे खेल जारी है। गंभीरता से टेस्ट किया जाए तो आज भी सब्जियों में चूहा मारने का जहर, मिठाइयों में कास्टिक सोडा, दूध में डिटर्जेंट मिल जाता है। देश के अधिकतर शहरों में प्रोटीन का इकलौता स्रोत दूध या तो पानी मिला कर पतला किया जा रहा है या फिर उसे गाढ़ा बनाने के लिए उसमें फर्टिलाइजर, ब्लीच, डिटर्जेंट जैसे केमिकल डाले जा रहे हैं।

एफएसएसएआई की रिपोर्ट से ये भी साफ हो चुका है कि दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले भारत में 13 फीसदी खाना गुणवत्ता के मानक स्तर से नीचे है। समस्या गंभीर है। हर चीज प्रदूषित है। इस बेतहाशा मिलावट पर रोक लगाने वाली नियामक संस्थाओं का हाल ये है कि वहां स्टाफ नहीं। कितनी अजीब बात है कि चीन में दूध में मेलामाइन की मिलावट करने पर फांसी की सजा दे दी जाती है लेकिन हमारे देश में मिलावटखोरों को किसी बात का डर नहीं, न खाने वालों को कोई चिंता।

अब तो बड़े शांत भाव से मान लिया गया है कि सब कुछ तो कमोबेश दूषित-विषाक्त हो चुका है। कुछ रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रभाव से तो कुछ मिलावटखोरों की दूषित मानसिकता और लालच से। मजबूरी में यह कहावत आम हो चुकी है कि सब गड़बड़ है तो जो मिले, खाते रहो। ज्यादातर महानगरों में फल और सब्जियां काफी दूर से आती हैं। ऐसे इलाके जहां फसल स्टोर कर के रखने की सुविधाएं नहीं के बराबर हैं, इसलिए सामान्य परिस्थिति में सेब और आम जैसे फल मंडी तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाते हैं।

इससे बचने के लिए व्यापारी मसाला यानी कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल करते हैं जो फलों के पकने की गति धीमी कर देते हैं। इसके अलावा ताजा दिखने के लिए अक्सर कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है। बाजारों में व्यापारियों द्वारा खुलेआम फल व सब्जियों में केमिकल, रंग व कॉर्बेट जैसी हानिकारक पदार्थों की मिलावट धड़ल्ले से की जा रही है। अब पहले से ज्यादा बेखौफ होकर सब्जियों में ऑक्सिटॉसिन जैसी दवाइयों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

यह भी पढ़ें: IIT से पढ़े अमित शेखर ने बनाई दुनिया की सबसे बड़ी एंड्रॉएड कम्यूनिटी