शिक्षक पति-पत्नी गरीब बच्चों को देते हैं कोचिंग, अब तक 300 को दिला चुके हैं सरकारी नौकरी
एक तरफ जहां सुपर-30 में गरीब छात्रों को आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराई जाती है वहीं सीमा और विनोद मीणा क्षेत्र के गरीब युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं।
आनंद कुमार से प्रभावित विनोद अपनी 'नि: शुल्क गाइडेंस क्लास' के जरिए अब तक लगभग 300 बच्चों को सरकारी नौकरी दिला चुके हैं।
उनके द्वारा पढ़ाए गए बच्चे पुलिस, बैंक, रेलवे और एसएससी की परीक्षाओं में सफल हुए हैं। वह 2011 से ये क्लासेस करवा रहे हैं।
आजकल के जमाने में जब अच्छे स्कूल कॉलेज या कोचिंग की बढ़ती फीस की वजह से गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चों का पढ़ना मुश्किल हो रहा है उस जमाने में राजस्थान का एक दंपती पिछले छह सालों से गरीब बच्चों को मुफ्त में अच्छी पढ़ाई उपलब्ध कराकर उनके सपने पूरे कर रहा है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से 50 किलेमीटर दूर दौसा में एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले विनोद मीणा और सीमा गरीब ग्रैजुएट बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं। इनके पढ़ाए बच्चे राजस्थान समेत पूरे भारत में सरकारी नौकरी कर रहे हैं। बिहार में एक ऐसे ही शख्स हैं आनंद कुमार, जो गरीब बच्चों को अपनी सुपर-30 कोचिंग में तैयारी कराकर उन्हें आईआईटी भेजते हैं।
बिहार के आनंद कुमार के सुपर-30 की तर्ज पर विनोद और सीमा सुपर-60 चला रहे हैं। एक तरफ जहां सुपर-30 में गरीब छात्रों को आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराई जाती है वहीं सीमा और विनोद मीणा क्षेत्र के गरीब युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं। आनंद कुमार से प्रभावित विनोद अपनी 'नि: शुल्क गाइडेंस क्लास' के जरिए अब तक लगभग 300 बच्चों को सरकारी नौकरी दिला चुके हैं। उनके द्वारा पढ़ाए गए बच्चे पुलिस, बैंक, रेलवे और एसएससी की परीक्षाओं में सफल हुए हैं। वह 2011 से ये क्लासेस करवा रहे हैं। विनोद कोचिंग और बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्चा अपनी जेब से भरते हैं इसके अलावा कभी-कभी उनके माता-पिता भी इसमें मदद कर देते हैं।
इस अनोखी कोचिंग में रविवार को छुट्टी रहती है और उसके अलावा हर दिन चार घंटे तक क्लास चलती है और 300 से ज्यादा छात्रों को सरकारी नौकरी मिल चुकी है।
विनोद की कोचिंग में बच्चों का चयन एक टेस्ट के आधार पर होता है। विनोद मीणा ने बताया, 'मैं आईएएस के इंटरव्यू में तीन बार गया लेकिन क्रैक नहीं कर सका। इसके बाद ही मैंने फैसला किया कि अपने ज्ञान को उन युवाओं के साथ साझा करूंगा जो कोचिंग क्लास जाने का सामर्थ्य नहीं रखते। दंपती अपनी सैलरी से 20,000 रुपये हर महीने कोचिंग सेंटर के किराये और स्टेशनरी पर खर्च करते हैं।' यहां रविवार को छोड़कर हर दिन चार घंटे तक क्लास चलती है और 300 से ज्यादा छात्रों को सरकारी नौकरी मिली है।
सरकारी स्कूल में टीचर की जॉब पाने वाले एक बच्चे ने बताया, 'कोचिंग टिप्स और उनके पढ़ाने के आसान तरीके से नौकरी पाने में मदद मिली है। उनकी मदद और समर्थन के बगैर यह कभी संभव नहीं होता।' इंडियन आर्मी में नौकरी पाने वाले एक उम्मीदवार ने बताया, 'जनजाति क्षेत्र के अन्य छात्रों की तरह मैं भी कोचिंग क्लास जॉइन करने का सामर्थ्य नहीं रखता था। इस दंपती के प्रयास ने मेरी जिंदगी बना दी है। यह मानवता की सच्ची सेवा है।'
विनोद ने 2011 में 43 बच्चों से इस कोचिंग की शुरुआत की थी। वे बताते हैं कि उन्होंने बचपन में गरीबी देखी और झेली है इसलिए उन्हें ऐसी कोचिंग चलाने की प्रेरणा मिली। विनोद बताते हैं कि जब वे छठवीं क्लास में थे तो उनके पिता को उनकी ड्रेस बनवाने और कॉपी किताब खरीदने के लिए एक साहूकार से 50 रुपये का कर्ज लेना पड़ा था। इतनी सफलता के बाद भी उन्होंने अपने इंस्टीट्यूट को एक एनजीओ की तरह रजिस्टर नहीं कराया है। उन्होंने अपनी युवावस्था में आईएएस बनने के लिए भी एग्जाम दिया लेकिन उन्हें तीन बार इंटरव्यू से वापस आना पड़ा। उनकी कोचिंग में उनके जैसे ही कुछ और टीचर बच्चों को पढ़ाने आते हैं। ऐसे ही एक अध्यापक चंद्र प्रकाश शर्मा ने कहा कि मैं हर दिन एक घंटे पढ़ाता हूं और इससे मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है।
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