ग्रामीण महिलाओं ने बनाया अपना संगठन, सैकड़ों महिलाओं को देती हैं रोजगार
हरियाणा के गुरुग्राम में ग्रामीण इलाके की जाग्रत महिलाओं ने अपने अधिकारों और बेहतर जीवन के लिए बना डाला गुड़गांव ग्रामीण महिला मंडल, जिसका मकसद है संगठित होकर अपने हक और हुकूक के लिए लड़ना, साथ ही मिलकर रोजगार सृजन करना और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे को आर्थिक सहयोग देना...
मकसद था, संगठित होकर अपने हक और हुकूक के लिए लड़ना, साथ मिलकर रोजगार सृजन करना और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे को आर्थिक सहयोग देना।
गैर-सरकारी संगठन के लिए एक ढांचा तैयार करने के लिए एक सेवानिवृत्त महिला विकास अधिकारी श्रीमती शोभा लाल और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की कुछ बड़ी एक्टिविस्ट साथ आए।
असली भारत गांवो में बसता है। भारत की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है। गांव की महिलाएं जो हैं, वो कहीं न कहीं इस व्यवस्था की आधारभूत कड़ी हैं। लेकिन दुखद ये है कि इन महिलाओं का जीवन बहुत कष्टकर होता है। न इनके पास खर्च करने के लिए पैसे होते हैं, न ही स्वास्थ्य पर ध्यान दे पाने वाले कारक। ये बस दिन-रात काम करती रहती हैं, खेतों पर भी, घरों में भी। ऐसी ही कुछ हालत थी, हरियाणा के गुरुग्राम में ग्रामीण इलाके की महिलाओं की। एक दिन इनमें से कुछ जाग्रत महिलाओं ने अपने अधिकारों और बेहतर जीवन के लिए मिलकर एक निर्णय लिया और अपना एक गुड़गांव ग्रामीण महिला मंडल बना डाला।
मकसद था, संगठित होकर अपने हक और हुकूक के लिए लड़ना, साथ मिलकर रोजगार सृजन करना और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे को आर्थिक सहयोग देना। गुड़गांव ग्रामीण महिला मंडल का गठन कुछ ग्रामीण महिलाओं, शारदा, कुन्ती देवी, किरनी, मीना, सुनीता, किरण द्वारा की गई एक पहल के रूप में हुआ था। गैर-सरकारी संगठन के लिए एक ढांचा तैयार करने के लिए एक सेवानिवृत्त महिला विकास अधिकारी श्रीमती शोभा लाल और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की कुछ बड़ी एक्टिविस्ट साथ आए। अब ये संगठन जीजीएमएम, एयूडब्ल्यूसी द्वारा अपनी ग्रामीण शाखा के रूप में संबद्ध कर लिया गया है।
महिलाओं के समूह का आयोजन एक कठिन काम है हालांकि उनके प्रयासों और दृढ़निश्चय से सहयोगी सदस्यों ने करीब 52 स्वयं सहायता समूहों का निर्माण किया। उल्लेखनीय है कि आज, स्वयं सहायता समूहों में बचत राशि के रूप में 10 लाख रुपए इकट्ठा हैं। संगठन की सेक्रेटरी शोभालाल ने योरस्टोरी को बताया कि हमारा प्रयास रहता है कि इन महिलाओं को उनकी प्रतिभा और स्किल के मुताबिक ही रोजगार के विकल्प मुहैया कराए जाएं। ताकि वो अपने जीविकोपार्जन के ज्यादा से ज्यादा अवसर पैदा कर सकें।
संगठन कई तरह के इनोवेटिव समायोजन भी करवाता है जैसे कि पुरानी-फटी जींस पैंटों को इकट्ठा करवाया जाता है फिर उसके बाद उससे पेन-पेंसिल रखने वाले पाउचेज सिलवाए जाते हैं। वैसे ही पाउचेज जैसा हम लोग परीक्षा देते वक्त ले जाया करते थे। ये पाउच केवल दस रुपए में जींस देने वाले को दिए जाते हैं। ये काफी टिकाऊ होते हैं। इन पाउचेज को सिलने का काम संगठन की महिलाएं करती हैं। जो पैसे इनसे आते हैं, वो इनमें बांट दिए जाते हैं। इसी तरह सिलाई-कढ़ाई, लघु उद्योगों के लिए भी संगठन सक्रियता से काम कर रहा है।
इन सबके अलावा ये महिलाएं खेती में उन्नत तरीकों का भी अध्ययन करती हैं और दूसरी महिलाओं को भी सिखाती है। जिससे पारंपरिक तरीके से की गई खेती से ज्यादा पैदावार हो। बच्चों के सर्वांगीण विकास पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है। उनकी पुस्तकों, शिक्षा के साधनों के लिए हर कोई खड़ा रहताहै। महिलाओं द्वारा बनाए गए हथकरघों को बाजार तक ले जाया जाता है। संगठन का साथ देने के लिए कुछ कॉरपोरेट कंपनियां भी सामने आई हैं। जरूरत भी है, सबको इस तरह के प्रयासों का सम्मान और सहयोग करना चाहिए।
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