बेंगलुरु की इस महिला की बदौलत तैयार हुई सैनिटरी डिस्पोज करने की मशीन
आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में हर साल लगभग 113,000 सैनिटरी पैड कचरे में तब्दील होकर पर्यावरण पर बोझ बन जाता है। बेंगलुरु की सामाजिक कार्यकर्ता निशा नाजरे ने इस समस्या से निपटने के लिए एक मशीन तैयार की है।
निशा सोच रही हैं कि इन मशीनों को रेलवे स्टेशन, अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स, स्कूलों और बीबीएमपी के ऑफिसों में भी लगाया जाए। इस मशीन में कई सारे चैंबर्स बनाए गए हैं जिसमें पैड को डालने पर वे जलने लगते हैं।
उनकी टीम में अभी चार लोग काम कर रहे हैं, जिसमें कर्नाटक स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में काम कर चुके चंद्रशेखर भी हैं। चंद्रशेखर उन्हें टेक्निकल सहायता प्रदान करते हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि महिलाओं द्वारा प्रयोग किए जाने वाले सैनिटरी पैड को फेंकने के बाद क्या होता है? दरअसल इसमें प्लास्टिक का यूज होने के कारण यह डिस्पोज नहीं होता है और यह हजारों साल तक ऐसे ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता रहता है। और अगर इसे जला दिया जाए तो इसमें से कई सारे टॉक्सिक केमिकल निकलते हैं जो कि और भी हानिकारक हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में हर साल लगभग 113,000 सैनिटरी पैड कचरे में तब्दील होकर पर्यावरण पर बोझ बन जाता है। बेंगलुरु की सामाजिक कार्यकर्ता निशा नाजरे ने इस समस्या से निपटने के लिए एक मशीन तैयार की है जिसके जरिए आसानी से सैनिटरी पैड को डिस्पोज किया जा सकता है।
अच्छी बात यह है कि इससे किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है। इसकी शुरुआत कुछ साल पहले हुई थी जब निशा कुछ कचरे और सैनिटरी पैड को एक सफाई कर्मी को दे रही थीं तो उन्हें यह ख्याल आया कि पीरियड्स की वजह से महिलाओं को मंदिर में नहीं जाने दिया जाता फिर एक इंसान के हाथों में वो गंदगी क्यों पकड़ाई जाए। उन्हें इससे बुरा लगा और फिर सोचा कि वह इसके लिए कुछ तो करेंगी। उन्होंने सोचा कि जब हम अपनी गंदगी को खुद ही नहीं छूना चाहते हैं तो किसी और के हाथों में उसे क्यों दिया जाए।
तीन साल की मेहनत के बाद निशा की कंपनी जूसी फेम केयर प्राइवेट लिमिटेड ने एक पॉल्यूशन फ्री सैनिटरी डिस्पोज मशीन तैयार की है। नए साल 2018 के पहले माह जनवरी में ही इसकी टेस्टिंग शुरू होने वाली है। इसके बाद निशा सोच रही हैं कि इन मशीनों को रेलवे स्टेशन, अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स, स्कूलों और बीबीएमपी के ऑफिसों में भी लगाया जाए। इस मशीन में कई सारे चैंबर्स बनाए गए हैं जिसमें पैड को डालने पर वे जलने लगते हैं। पैड से निकलने वाले धुएं को नियंत्रित करने के लिए उसमें पानी का इस्तेमाल होता है। निशा बताती हैं कि इससे जरा सा भी प्रदूषण नहीं होता है।
इस मशीन के दो वैरिएंट्स हैं. जिसमें से पहले की कीमत लगभग 1 लाख रुपये दूसरे वैरिएंट्स की कीमत 2.5 लाख रुपये है। हालांकि अभी कीमतों का अंतिमं निर्धारण नहीं किया गया है। यह मशीन एक बार में 20 पैड को डिस्पोज कर सकती है। निशा बेंगलुरु के मेयर के साथ बातचीत में हैं, ताकि शहर के कई हिस्सों में इन्हें स्थापित किया जा सके। उनकी टीम में अभी चार लोग काम कर रहे हैं, जिसमें कर्नाटक स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में काम कर चुके चंद्रशेखर भी हैं। चंद्रशेखर उन्हें टेक्निकल सहायता प्रदान करते हैं। इस सफलता पर निशा कहती हैं कि उन्हें ये मशीन बनाकर काफी खुशी हो रही है।
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