डेकोग्राफ़ी से दूसरों का घर संवार कर ख़ुद को निखार रही हैं करिश्मा शाह और निशी ओझा
घर के सजावटी समान बेचने के आइडिया से शुरु हुआ उद्यम.. मुंबई से से चला रहीं हैं दो दोस्त डेकोग्राफी का कारोबार...ई-कॉमर्स के जरिये बेच रहे हैं अपना समान
ये दो दोस्तों की एक कॉफी डेट थी, जो एक बिज़नेस स्टार्टअप में बदल गई। ‘Decography’ ये मुंबई में घर के सामान की आला कंपनी है। इन लोगों ने शुरूआत छोटे छोटे संग्रह से की और इसके लिए अपने दोस्तों और परिवार वालों को आमंत्रित किया। ताकि वो अपने उत्पाद से जुड़ी पहली प्रतिक्रिया हासिल कर सकें। दोनों दोस्तों की ये कोशिश रंग लाई जिसको उन्होंने ई-कॉमर्स के प्लेटफॉर्म में बदल दिया। हालांकि दोनों के लिए ये नया अनुभव था क्योंकि दोनों में से किसी को भी उद्यमी बनने का अनुभव नहीं था। इन दोनों ने ऐसे करियर में पैर जमाने की कोशिश की जिसका दूर दूर तक किसी से लेना देना नहीं था। बावजूद दोनों युवा दोस्त साथ आए और एक नये रचनात्मक उद्यम की शुरूआत की।
तब से अब तक इन दोनों की उद्यमशीलता की यात्रा काफी अच्छी रही है। दोनों सह-संस्थापक हर दो महीने में ये सुनिश्चित करते हैं कि वो नये नये उत्पादों को लोगों के सामने लाते रहे। ये लोग ग्राहकों की डिमांड पर खास ध्यान देते हैं यही वजह है कि कई बार ग्राहकों की मांग पर ये किसी खास चीज का अलग से निर्माण भी करते हैं। इनके उत्पाद गैर-जरूरी नहीं होते बल्कि हर उत्पाद को बनाने के पीछे कोई ना कोई मकसद होता है। ‘Decography’ की सह-संस्थापक करिश्मा शाह का कहना है कि “हमारे उत्पाद किसी सजावटी टुकडे से ज्यादा विचारों पर आधारित उपयोगी होते हैं।“ युवा उद्यमी होने के नाते इन लोगों की नज़रेे मुंबई में रिटेल स्टोर खोलने पर भी है। फिलहाल ये लोग ई-कॉमर्स के प्लेटफॉर्म का और अधिक इस्तेमाल करना चाहते हैं और खुश हैं ऑनलाइन मिल रही ग्राहकों की डिमांड से।
करिश्मा के पिता कारोबारी हैं, जबकि उनकी मां घर संभालती है। करिश्मा ने अमेरिका से वित्त में पढ़ाई की। उन्होंने करीब साल भर तक तक ऑडिटर के तौर पर वहां रहकर काम भी किया लेकिन वो और ज्यादा पढ़ाई करने की इच्छुक थी। इसलिए वो इंग्लैंड चली गई मास्टर्स इन इंटरनेशनल मैनेजमेंट अन्ट्रप्रेनर्शिप करने के लिए। मुंबई लौटने के बाद वो खाली नहीं बैठी बल्कि फ्रेंच भाषा सीखने लगी। अमेरिका जाने से पहले मास मीडिया में छह महीने का एक कोर्स भी करिश्मा ने किया था, जहां पर उनकी एक दोस्त निशी ओझा भी थी।
कई सालों बाद जब दोनों एक बार फिर मिले तो उन्होंने मिलकर ‘Decography’ शुरू करने का फैसला लिया। उस वक्त निशी एक घर के इंटीरियर डिजाइनिंग का काम कर रही थीं और दोनों दोस्त वहां पर अक्सर मिलते। इस दौरान दोनों ने महसूस किया कि किसी भी नये घर की डिजाइनिंग को पूरा करने के लिए कई तरह की जरूरतें होती हैं। जिसके बाद इन दोनों दोस्तों ने घर की साज-सज्जा पर बड़ी बारीकी से विचार किया और उस विचार को अमलीजामा पहनाने के लिए एक कॉफी शॉप में मुलाकात की।
इससे पहले निशी ने मॉस मीडिया का कोर्स करने के बाद बालाजी टेलिफिल्म इंटर्न के तौर पर काम शुरू किया। धीरे धीरे वो आगे बढ़ती गई और वहां पर क्रिएटीव हेड बन गई। इस दौरान उनसे डायरेक्शन का काम भी लिया जाने लगा था जिसको लेकर शुरूआत में वो परेशान भी रहती थी लेकिन समय के साथ उनको लगने लगा कि ये उनके लिए अच्छा ही है। इसका नतीजा ये हुआ कि वो सभी ‘के’ नाम से प्रसिद्ध सीरियल से जुड़ गई। बावजूद उनको अपने काम में मजा नहीं आ रहा था क्योंकि आए दिन वो एक डेली शोप से दूसरे डेली शोप की जिम्मेदारी उठाते उठाते परेशान हो गईं थी। तभी उनके साथ काम करने वाले एक दोस्त ने उनको सलाह दी कि वो इंटीरियर के काम में अपना हाथ अजमायें। निशी को अपने दोस्त की सलाह पसंद आई और वो बिना किसी ट्रेनिग और तजुर्बे के इस काम से जुड़ गई। इससे उनको काफी मदद मिली क्योंकि वो चाहती थीं कि वो अपना खुद का काम शुरू करें।
आज करिश्मा और निशी दोनों अपने काम से काफी खुश हैं क्योंकि दोनों का शौक एक है नई चीजों को बनाना। करिश्मा और निशी दोनों का मानना है कि ‘Decography’ को शुरू करने के लिए दोनों को एक दूसरे का साथ चाहिए था। कंपनी में करिश्मा ‘Decography’ के ऑपरेशन और मैनेजमेंट से जुड़े काम देखती हैं तो वहीं निशी नये नये विचारों को सामने लाने में माहिर है। यही वजह है कि इस उद्यम को चलाने में एक की कमजोरी दूसरे की ताकत होती है। 28 साल की दोनों सह-संस्थापकों के सामने कई चुनौतियां भी हैं। इन लोगों को अपने उत्पाद के कच्चे माल के लिए अक्सर नये विक्रेताओं की तलाश करनी पड़ती है। शुरूआत के 6 से 8 महिनों तक तो लोग इनको गंभीरता से लेते ही नहीं थे। करिश्मा का कहना कि ये सच भी है “क्योंकि हमने अपना काम कॉफी शॉप से शुरू किया फिर उसे घर से करने लगे और आज इसे हम एक ऑफिस से चला रहे हैं लेकिन तब तक लोगों को ये ही लगता था कि हम शादी से पहले अपना खाली वक्त काट रहे हैं।” अब लोगों की सोच में बदलाव आया है और दोनों लोग दूसरों पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हो सके हैं।