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केवल यहां बनता है हर सरकारी इमारत पर लहराने वाला राष्ट्रध्वज तिरंगा

क्‍या आप जानते हैं कि आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल होने वाले तिरंगे को बनाने वाले हाथ कौन से हैं?

केवल यहां बनता है हर सरकारी इमारत पर लहराने वाला राष्ट्रध्वज तिरंगा

Monday August 15, 2022 , 7 min Read

पूरा देश आज 76वां स्वतंत्रता दिवस (76th Independence Day) मना रहा है. भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने पर आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) को सेलिब्रेट करने के लिए चलाई गई ‘हर घर तिरंगा’ (Har Ghar Tiranga) मुहिम का असर व्यापक रूप से देखा जा सकता है. घर हो या ऑफिस, फैक्ट्री हो या शोरूम, राष्ट्रध्वज तिरंगा हर 10 में से 9 इमारतों पर फहरा हुआ दिख रहा है. किसी-किसी बिल्डिंग में तो एक से ज्यादा तिरंगे भी फहरे हुए देखे जा सकते हैं.

लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल होने वाले तिरंगे (National Flag) को बनाने वाले हाथ कौन से हैं? सरकारी ऑफिसेज में टेबल पर रखे जाने वाले, देश के लाल किले, राष्‍ट्रपति भवन, संसद भवन, हर सरकारी बिल्डिंग पर फहराए जाने वाले, हमारी सेना द्वारा फ्लैग होस्टिंग के वक्‍त फहराए जाने वाले, बहादुर शहीद सैनिकों की अंतिम यात्रा में इस्तेमाल होने वाले, यहां तक कि विदेश में मौजूद इंडियन एंबेसीज में फहराए जाने वाले राष्ट्रध्वज कहां बनते हैं? खादी का तिरंगा बनाकर पूरे देश में सप्लाई करने वाली देश की एकमात्र सर्टिफाइड नेशनल फ्लैग प्रॉडक्शन यूनिट कौन सी है और कहां है?

कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्‍त संघ (फेडरेशन)

विभिन्न सरकारी एजेंसियों को राष्ट्रध्वज बनाकर सप्लाई करने की जिम्मेदारी कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्‍त संघ (फेडरेशन) यानी KKGSS (Fed.) की है. फेडरेशन का हेड ऑफिस कर्नाटक के हुबली शहर के बेंगेरी इलाके (जिला धारवाड़) में है. KKGSS (F) की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट, खादी व विलेज इंडस्‍ट्रीज कमीशन द्वारा सर्टिफाइड देश की अकेली ऑथराइज्‍ड नेशनल फ्लैग मैन्‍युफैक्‍चरिंग यूनिट है. फेडरेशन का सेल्स आउटलेट बेंगलुरु में है. वहीं बिलगी, सिद्धापुर, गड्डनाकेरी, केरूर में खादी प्रॉडक्शन और सेल्स सेंटर्स, इसकी ब्रांच हैं.

अभी तक राष्ट्रीय ध्वज, हाथ से काती हुई या बुनी हुई कॉटन, वूल और सिल्क खादी बंटिंग से बनते थे. इसलिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों, रक्षा मंत्रालय, पैरा मिलिट्री फोर्सेज आदि को आधिकारिक इस्तेमाल के लिए इन्हीं मैटेरियल से बने राष्ट्रध्वज की ही सप्लाई की जाती थी. 30 दिसंबर, 2021 को फ्लैग कोड ऑफ इंडिया, 2002 में हुए संशोधन के बाद राष्ट्रीय ध्वज अब हाथ से काते और हाथ से बुने या मशीन से बने कपास, पॉलिएस्टर, ऊन, रेशम खादी बंटिंग से बनाया जा सकता है.

कब से बना रही तिरंगा

KKGSS (F) की स्‍थापना नवंबर 1957 में हुई थी. इसने 1982 से खादी बनाना शुरू किया. पहले यहां बनने वाले तिरंगे BIS गाइडलाइंस के अनुरूप नहीं थे. लेकिन 2005-06 में इसे ब्‍यूरो ऑफ इंडियन स्‍टैंडर्ड्स (BIS) से ISI सर्टिफिकेशन मिला और पूरे देश में तिरंगे की बिक्री के लिए अकेली ऑथराइज्‍ड नेशनल फ्लैग मैन्‍युफैक्‍चरिंग यूनिट करार दिया गया. फिर यह यूनिट राष्ट्रीय ध्वज के मैन्युफैक्चरिंग सेंटर के तौर पर यूनीक बन गई. KKGSS (F) के विभिन्न लोकेशंस पर प्रॉडक्शन सेंटर हैं. बेंगेरी में इसका फुल फ्लेज्ड डाइंग हाउस भी है, जहां ब्लीचिंग, डाइंग और फिनिशिंग विभाग हैं. इसके अलावा एक सेंट्रल वस्त्रघर भी है, जो कॉटन खादी, पॉलीवस्त्र, वुलन और सिल्क के लिए मुख्य डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर है.

देश में जहां कहीं भी आधिकारिक तौर पर राष्‍ट्रीय ध्‍वज इस्‍तेमाल होता है, यहीं के बने झंडे की सप्‍लाई की जाती है. विदेशों में मौजूद इंडियन एंबेसीज यानी भारतीय दूतावासों के लिए भी यहीं से तिरंगे बनकर जाते हैं. कोई भी ऑर्डर कर कुरियर के जरिए ​राष्ट्रीय ध्वज KKGSS से खरीद सकता है. KKGSS (F) की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में शुरुआत में केवल कॉटन खादी के ही तिरंगे बनते थे. लेकिन बाद में फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002 के साथ इसे हाथ से बनी वूल व सिल्क के इस्तेमाल की मंजूरी भी मिल गई.

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Image: KKGSS

धागा व कपड़ा बनाने की यूनिट अलग

KKGSS (F) की बागलकोट यूनिट भी है, जहां हाई क्‍वालिटी के कच्‍चे कॉटन से धागा बनाया जाता है. यह धागा मशीनों ओर हाथ से चरखा चलाकर बनाया जाता है. गड्डनाकेरी, बेलॉरू, तुलसीगिरी यूनिट में कपड़ा तैयार होता है. इसके बाद हुबली यूनिट में कपड़े की डाइंग व अन्य प्रॉसेस की जाती है. तिरंगे के लिए तैयार किया जाने वाला कपड़ा, जीन्स से भी ज्यादा मजबूत होता है. तिरंगे को इतने चरणों में बनाया जाता है- कॉटन से धागा बनाना, कपड़े की बुनाई, कपड़े की ब्‍लीचिंग व डाइंग, चक्र की छपाई, तीनों पट्टियों की सिलाई, इस्त्री करना और टॉगलिंग (गुल्‍ली बांधना).

कितने साइज के झंडे

1- सबसे छोटा 6:4 इंच- मीटिंग व कॉन्‍फ्रेंस आदि में टेबल पर रखा जाने वाला झंडा

2- 9:6 इंच- VVIP कारों के लिए

3- 18:12 इंच- राष्‍ट्रपति के VVIP एयरक्राफ्ट और ट्रेन के लिए

4- 3:2 फुट- कमरों में क्रॉस बार पर दिखने वाले झंडे

5- 5.5:3 फुट- बहुत छोटी पब्लिक बिल्डिंग्‍स पर लगने वाले झंडे

6- 6:4 फुट- मृत सैनिकों के शवों और छोटी सरकारी बिल्डिंग्‍स के लिए

7- 9:6 फुट- संसद भवन और मीडियम साइज सरकारी बिल्डिंग्‍स के लिए

8- 12:8 फुट- गन कैरिएज, लाल किले, राष्‍ट्रपति भवन के लिए

9- सबसे बड़ा 21:14 फुट- बहुत बड़ी बिल्डिंग्‍स के लिए

आसान नहीं होता देश का राष्‍ट्रीय ध्‍वज बनाना

अभी तक राष्ट्रीय ध्वज बनाने की अनुमति केवल खादी सेक्टर को ही थी. इसलिए अभी तक तिरंगा बनाने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के जो सख्त दिशा-निर्देश थे, उनके अनुसार राष्ट्रीय ध्वज का उत्पादन कोई आसान काम नहीं है. अभी तक के दिशानिर्देशों के तहत राष्ट्रीय ध्वज में किसी भी दोष जैसे रंग, आकार, धागे की गिनती, धागे की मजबूती, रंगाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रंगों की स्थिरता आदि में दोष को एक गंभीर अपराध माना जाएगा और फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002 के प्रावधानों के अनुसार जुर्माना या कारावास या दोनों हो सकते हैं.

KKGSS (F) में बनने वाले राष्ट्रीय ध्वज की क्वालिटी को BIS चेक करता है और इसमें थोड़ा सा भी डिफेक्ट होने पर रिजेक्ट कर देता है. अगर तिरंगों की किसी एक लॉट में किसी एक ध्वज में कमी निकलती है तो पूरी की पूरी लॉट रिजेक्ट हो जाती है. हर सेक्‍शन पर कुल 18 बार तिरंगे की क्‍वालिटी चेक की जाती है. राष्ट्रीय ध्वज को कुछ मानकों पर खरा उतरना होता है, जैसे- KVIC और BIS द्वारा निर्धारित रंग के शेड से तिरंगे का शेड अलग नहीं होना चाहिए; केसरिया, सफेद और हरे कपड़े की लंबाई-चौड़ाई में जरा सा भी अंतर नहीं होना चाहिए; अगले-पिछले भाग पर अशोक चक्र की छपाई समान होनी चाहिए. राष्ट्रध्वज के बीच में चक्र को तिरंगे के दोनों ओर से छापा जाता है और यह प्रिंट आपस में पूरी तरह मैच करना चाहिए.

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फ्लैग कोड में संशोधन के बाद डिफेक्ट आ रहे सामने

लेकिन फ्लैग कोड ऑफ इंडिया, 2002 में संशोधन के बाद खादी से इतर बन रहे तिरंगों में मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट सामने आ रहे हैं. KKGSS (F) के सेक्रेटरी शिवानंद मथापति ने YourStory से बात करते हुए कहा कि पॉलिएस्टर से तिरंगा बनाने के लिए फ्लैग कोड ऑफ इंडिया, 2002 में बदलाव कर सरकार ने गलत किया है. उसमें साइज सही नहीं है, बीच में चक्र भी राउंड में नहीं है. इसके साथ ही ऊपर की स्टिचिंग भी ठीक ढंग से नहीं की गई है. फ्लैग कोड ऑफ इंडिया, 2002 में संशोधन के तहत पॉलिएस्टर के तिरंगे बनाने की अनुमति देने का खादी उद्योग से जुड़े देशभर के संगठन विरोध कर रहे हैं. शिवानंद ने कहा कि हमें डर है कि पॉलिएस्टर की मंजूरी जारी रही तो भविष्य में खादी उद्योग को नुकसान होगा.

हर साल कितने ऑर्डर

शिवानंद का कहना है कि अप्रैल से मार्च तक हर साल 3-3.5 करोड़ राष्‍ट्रीय ध्‍वज तक के ऑर्डर हमें आते हैं. हालांकि, इस बार पॉलिएस्टर तिरंगे को मंजूरी मिलने के बाद भी हमारे पास अधिक ऑर्डर आए हैं. इस साल 10 अगस्त तक ही करीब 2 करोड़ राष्‍ट्रीय ध्‍वज के ऑर्डर आ चुके हैं. अभी 26 जनवरी के ऑर्डर आने बाकी हैं. हमारे झंडे क्वालिटी के हिसाब से कुछ दो से तीन साल तो कुछ 6 से 7 साल चलते हैं, इसलिए वे हर साल नहीं खरीदे जाते हैं. KKGSS (F) का प्रमुख उत्‍पाद राष्‍ट्रीय ध्‍वज है. इसके अलावा KKGSS खादी के कपड़े, खादी कारपेट, खादी बैग्‍स, खादी कैप्‍स, खादी बेडशीट्स, साबुन, हाथ से बना कागज और प्रोसेस्‍ड शहद भी बनाता है.