सदाबहार गीतों से सबके दिलों को दीवाना बनाने वालेे गीतकार आनंद बख्शी
महान गीतकार आनंद बख्शी जो कि अपने गीतों से लोगो का समा बांध देते थे। यही नहीं उनके गाये हुए गीत आज भी लोगो की जुबान पर एक नई मुस्कान लिए खड़े हुए है, उनके गीत हमेशा एक अमर प्रेम की परिभाषा देते हैं...
बख्शी साहब बचपन से ही फिल्मों में काम करके शोहरत की बुंलदियों तक पहुंचने का सपना देखा करते थे लेकिन लोगों के मजाक उड़ाने के डर से उन्होंने अपनी यह मंशा कभी जाहिर नहीं की थी।
आनंद अपने सपने को पूरा करने के लिये 14 वर्ष की उम्र में ही घर से भागकर फिल्म नगरी मुंबई आ गए जहां उन्होंने रॉयल इंडियन नेवी में कैडेट के तौर पर दो वर्ष तक काम किया।
हम सबकी स्मृतियों में रेडियो, आकाशवाणी, विविध भारती बसे हुए हैं। एक जमाने में फरमाइशी गीतों के कार्यक्रम का अपना ही क्रेज होता था। अपने नाम से खत पढ़वाना लोगों का एक शगल हुआ करता था। रेडियो पर अनाउंसर उन गानों का पूरा डीटेल बताते थे। उनमें एक चीज बड़ी कॉमन रहती थी वो थी, और इस गीत के बोल लिखे हैं आनंद बख्शी ने। महान गीतकार आनंद बख्शी जो की अपने गीतों से लोगो का समा बांध देते थे। यही नही उनके गाये हुए गीत आज भी लोगो की जुबान पर एक नई मुस्कान लिए खड़े हुए है, उनके गीत हमेशा एक अमर प्रेम की परिभाषा देते हैं।
अपने सदाबहार गीतों से श्रोताओं को दीवाना बनाने वाले बॉलीवुड के मशहूर गीतकार आनंद बख्शी ने लगभग चार दशकों तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। आनंद बचपन से ही फिल्मों में काम करके शोहरत की बुंलदियों तक पहुंचने का सपना देखा करते थे लेकिन लोगों के मजाक उड़ाने के डर से उन्होंने अपनी यह मंशा कभी जाहिर नहीं की थी। वह फिल्मी दुनिया में गायक के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे।
सात साल के लंबे संघर्ष के बाद शिखर पर
पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में 21 जुलाई 1930 को जन्मे आनंद को उनके रिश्तेदार प्यार से नंद या नंदू कहकर पुकारते थे। बख्शी उनके परिवार का उपनाम था जबकि उनके परिजनों ने उनका नाम आनंद प्रकाश रखा था। लेकिन फिल्मी दुनिया में आने के बाद आनंद से नाम से उनकी पहचान बनीं। आनंद अपने सपने को पूरा करने के लिये 14 वर्ष की उम्र में ही घर से भागकर फिल्म नगरी मुंबई आ गए जहां उन्होंने रॉयल इंडियन नेवी में कैडेट के तौर पर दो वर्ष तक काम किया। किसी विवाद के कारण उन्हें वह नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद 1947 से 1956 तक उन्होंने भारतीय सेना में भी नौकरी की।
बचपन से ही मजबूत इरादे वाले आनंद अपने सपनों को साकार करने के लिये नये जोश के साथ फिर मुंबई पहुंचे जहां उनकी मुलाकात उस जमाने के मशहूर अभिनेता भगवान दादा से हुई। शायद नियति को यहीं मंजूर था कि आनंद बख्शी गीतकार ही बने। भगवान दादा ने उन्हें अपनी फिल्म भला आदमी में गीतकार के रूप में काम करने का मौका दिया। इस फिल्म के जरिये वह पहचान बनाने में भले ही सफल नहीं हो पाये लेकिन एक गीतकार के रूप में उनके सिने कैरियर का सफर शुरू हो गया।
अपने वजूद को तलाशते आनंद को लगभग सात वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पडा। साल 1965 में जब जब फूल खिले प्रदर्शित हुयी तो उन्हें गीतकार के रूप में उनकी पहचान बन गई। चार दशक तक फिल्मी गीतों के बेताज बादशाह रहे आनंद बख्शी ने 550 से भी ज्यादा फिल्मों में लगभग 4000 गीत लिखे।
उस 100 रुपए के नोट को ताउम्र संभालकर रखा
बॉलीवुड के जानेमाने निर्माता-निर्देशक सुभाष घई ने आनंद बख्शी को कर्मा के एक गीत, दिल दिया है जान भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए गीत की पंक्ति सुनकर इनाम के रूप में 100 रुपये दिए थे। ये 3 अगस्त 1984 का दिन था। सुभाष घई उन दिनों अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म कर्मा का निर्माण कर रहे थे। उन्होंने आंनद बख्शी को गीत की कुछ पंक्ति सुनाने को कहा। जैसे ही आनंद बख्शी ने दिल दिया है जान भी देंगे गीत की पंक्ति घई को सुनाई, वह भाव विभोर हो गए और अपने पर्स से 100 रुपये निकाल कुछ लिखा और उन्हें दे दिया।
आनंद बख्शी की यह आदत थी कि वह उन चीजों को सदा अपने साथ रखते थे जिनसे उनकी भावना जुड़ी हो। बताया जाता है कि अपने जीवन के अंतिम दिनों तक आनंद बख्शी ने सुभाष घई के नोट को संभाल कर रखा। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत फिल्म में आनन्द का यह गीत दिल दिया है जान भी देगें ऐ वतन तेरे लिए आज भी श्रोताओं में देशभक्ति के जज्बे को बुंलद कर देता है।
कभी रोमांटिक तो कभी दर्द भरे तो कभी कानों को पुरजोर सुकून देने वाले गीत लिखकर आनंद बख्शी संगीतकारों के दिल के करीब पहुंच चुके थे। उस जमाने के मशहूर संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, राहुल देव बर्मन, कल्याणजी आनंदजी, रोशन, राजेश रोशन जैसे संगीतकारों की वो पहली पसंद हुआ करते थे। आनंद बख्शी के गीत और इन संगीतकारों का संगीत जब ताल से ताल मिलाता था तो फिल्मों को हिट होने की गारंटी केवल गानों से ही हो जाया करती थी।
आनंद बख्शी के लिखे गीतों की खूबसूरती उनकी सहजता और सरलता रही। उनके गीतों में शब्दों के खिलवाड़ से ज्यादा भावनाओं का जोर दिखता था. हिंदी सिनेमा को अपने हजारों गीतों की सौगात देने वाला ये महान गीतकार 72 साल की उम्र में अलविदा कह गया। अपने गीतों से लगभग चार दशक तक श्रोताओं को भावविभोर करने वाले गीतकार आनंद बख्शी 30 मार्च 2002 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।
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