न्यूयॉर्क की नौकरी में नहीं लगा मन, भारत लौटकर कालीन बिजनेस को दिलाई नई पहचान
भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा कारपेट यानी कालीन बनाई जाती हैं। लेकिन फिर भी इसे बनाने वाले बुनकरों की हालत कुछ अच्छी नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह है बुनकरों और ग्राहकों के बीच एक लंबी खाई। इस खाई को पाटने का काम कर रही है साक्षी तलवार द्वारा स्थापित कंपनी 'रग्स एंड बियॉन्ड'।
साक्षी तलवार ने अमेरिका की ब्रियंट यूनिवर्सिटी से फाइनेंस में एमबीए किया और एमबीए करने के बाद उन्हें न्यूयॉर्क की एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई। साक्षी ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से इंटरनेशनल बिजनेस स्ट्रैटिजी में सर्टिफिकेशन भी लिया।
भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा कारपेट यानी कालीन बनाई जाती हैं। लेकिन फिर भी इसे बनाने वाले बुनकरों की हालत कुछ अच्छी नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह है बुनकरों और ग्राहकों के बीच एक लंबी खाई। इस खाई को पाटने का काम कर रही है साक्षी तलवार द्वारा स्थापित कंपनी 'रग्स एंड बियॉन्ड'। यह एक ऐसा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जहां हाथ से बनी भारत की मशहूर कालीन दुनियाभर के ग्राहकों को बेची जाती है। साक्षी ने इस बिजनेस की शुरुआत लगभग 4 साल पहले 2014 में की थी। साक्षी का कहना है कि सिर्फ बिजनेस करना ही उनका मकसद नहीं था बल्कि उनकी सोच दूरदराज के गांवों में कालीन बनाने वाले बुनकरों की जिंदगी में भी बदलाव लाने की थी।
साक्षी तलवार ने अमेरिका की ब्रियंट यूनिवर्सिटी से फाइनेंस में एमबीए किया और एमबीए करने के बाद उन्हें न्यूयॉर्क की एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई। साक्षी ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से इंटरनेशनल बिजनेस स्ट्रैटिजी में सर्टिफिकेशन भी लिया। नौकरी अच्छी होने के बावजूद उनका मन वहां नहीं लग रहा था। वे बताती हैं कि क्यूबिकल में बैठना और 9 से 5 वाली दिनचर्या में ढलना उन्हें रास नहीं आया। दरअसल वे कुछ क्रिएटिव काम करना चाहती थीं।
इसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क में ही इंटीरियर डिजाइनिंग के कोर्स में दाखिला लिया और कोर्स खत्म करने के बाद 2011 में भारत लौट आईं। यहां आकर 2014 में उन्होंने 'रग्स एंड बियॉन्ड' की शुरुआत की। साक्षी के पिता हर्ष पहले से ही बिजनेस के क्षेत्र में थे इसलिए साक्षी ने भी कुछ वैसा करने का सोचा था। उन्होंने अपने एमबीए और इंटीरियर डिजाइन के अनुभव को एक कर दिया। वे बताती हैं कि दुनियाभर में बनने वाले कारपेट में भारत की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है। लेकिन यह पूरा कारोबार असंगठित तौर पर संचालित होता है। इसलिए बुनकर और ग्राहकों के बीच की दूरी को मिटाने की जिम्मेदारी साक्षी ने ले ली।
साक्षी ने जब रग्स एंड बियॉन्ड की शुरुआत की तो लोगों ने उन्हें कहा कि कारपेट काफी महंगी होती हैं। कोई भी ग्राहक उसे खरीदने से पहले छूकर देखना चाहेगा। लेकिन साक्षी का मानना था कि अब वक्त बदल चुका है और ऑनलाइन भी इसका मार्केट बनाया जा सकता है। कई लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें स्टोर तक जाने का मन नहीं करता और वे ऑनलाइन शॉपिंग करना पसंद करते हैं।
वे कहती हैं कि आज के दौर में हर एक बिजनेस की ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराना बेहद जरूरी है। उन्होंने rugsandbeyond.com नाम से एक वेबसाइट तैयार की जिसमें उन्होंने अपने ग्राहकों के लिए न केवल कालीन पसंद करने की सुविधा प्रदान की बल्कि उसे ऑनलाइन ही खरीदने का विकल्प भी रखा। इसकी वजह से फायदा भी हुआ और साथ ही दुनियाभर के ग्राहक उनसे जुड़ गए।
लोग आसानी से ऑनलाइन शॉपिंग कर सकें इसीलिए साक्षी ने वेबसाइट काफी यूजर फ्रैंडली यानी आसानी से इस्तेमाल करने योग्य बनाया है, जहां आसानी से रंग, साइज और पैसों के मुताबिक कालीन पसंद किए जा सकें। इतना ही नहीं ग्राहक अपनी जरूरत के अनुसार कारपेट को कस्टमाइज भी करवा सकते हैं। हालांकि कस्टमाइज्ड कालीन बनाने में थोड़ा वक्त लगता है मगर 3 से 4 महीने में किसी भी तरह की कालीन बनवाई जा सकती है।
वेबसाइट के डोमेन के लिए डॉट कॉम चुनने के पीछे की वजह बताते हुए साक्षी कहती हैं कि इससे आपकी पहुंच दुनियाभर के ग्राहकों तक हो जाती है और सर्च इंजन से भी आपको मदद मिलती है। साथ ही इससे विश्वसनीयता भी बढ़ जाती है। वेबसाइट का नाम चुनने के बारे में बताते हुए साक्षी कहती हैं कि रग्स का मतलब कालीन होता है और बियॉन्ड का मतलब और भी कई सारी चीजें। वे कालीन के साथ ही फाइन आर्ट से लेकर तकिया तक उपलब्ध कराती हैं।
वे बताती हैं कि बीते 4 सालों में उनके बिजनेस में काफी ग्रोथ देखने को मिली और दुनिया भर के कई देशों में उनके प्रॉडक्ट के ऑर्डर आने लगे। सबसे ज्यादा ग्राहक अमेरिका से होते हैं, लेकिन यूके, दुबई ऑस्ट्रेलिया से लेकर आईलैंड जैसे देश में भी उनके ग्राहकों की संख्या अच्छी खासी है।
हालांकि साक्षी की राह में मुश्किलें भी कम नहीं आईं। नक्कालों से भी साक्षी को निपटना पड़ा। उन्हें तब आश्चर्य हुआ जब उनकी कंपनी के नाम से मिलती जुलती कई सारी कंपनियां खुल गईं। साक्षी ने उन्हें नोटिस भिजवाया और उनमें से कई सारी कंपनियां बंद हो गईं। वे कहती हैं कि किसी को भी अपनी कंपनी शुरू करने के साथ ही अपना ट्रे़डमार्क भी रजिस्टर करवा लेना चाहिए। छोटे बिजनेस शुरू करने वालों को सलाह देते हुए साक्षी कहती हैं कि हर किसी को ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराने के साथ ही उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि डोमेन का नाम डॉट कॉम हो क्योंकि इससे विश्वसनीयता और पहुंच बढ़ जाती है। साथ ही नाम कुछ ऐसा होना चाहिए जो बिजनेस से मिलता जुलता हो।
वह अपनी कंपनी की ग्रोथ स्ट्रैटिजी बनाने से लेकर कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट और ब्रैंड को मेनटेन करने का काम स्वयं करती हैं। बाहर के देशों के ऑपरेशन्स को भी साक्षी ही संभालती हैं। वहीं क्रिएटिव फील्ड में वह अपना हाथ आजमाने से नहीं चूकतीं। इसके अलावा उन्हें लिखने का भी शौक है। वे न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे प्रतिष्ठानों में समय-समय पर लिखा करती हैं। कभी कभी वह वक्त निकालकर पेंटिंग भी करती हैं। इस पेंटिंग को बेच कर मिलने वाले पैसों को वह गरीब बच्चों के हित में लगाती हैं।
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