सोने से पहले बच्चों के हाथ से मोबाइल फोन छीन लेने में ही भलाई है
आगर आपका बच्चा भी मोबाईल में गेम खेलने का है शौकीन, तो हो जायें सतर्क...
देर रात बच्चों का मोबाइल फोन में लगे रहना हद से ज्यादा घातक हो सकता है। अगर आप भी हाथ में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट थमाकर अपने बच्चों की देखभाल करते हैं तो चेत जाइए।
पेन्सैट स्टेट मेडिसिन ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं के मुताबिक, बच्चे अपने स्मार्टफ़ोन पर देर तक गेम खेलना पसंद कर सकते हैं लेकिन इससे बच्चों में नींद और पोषण की समस्याओं में बढ़ोत्तरी हो जाती है।
इससे नींद की गुणवत्ता, सुबह के वक्त अधिक थकान और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का स्तर से ऊपर चले जाना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
अभी क्या ट्रेंड चल रहा है कि बच्चा रो रहा है तो फोन में कार्टून खोलकर दे दो, बच्चा बोर हो रहा है और आपके पास उसके साथ खेलने का वक्त नहीं है तो मोबाइल में ही गेम ऑन करके दे दो। हर चीज का एक आसान सा हल निकाल लेते हैं हम लोग। ये सोचना भूल जाते हैं कि ये हल कितने सही हैं और कितने खतरनाक। अगर आप भी इन आसान हलों से अपने बच्चों की देखभाल करते हैं तो चेत जाइए। देर रात बच्चों का मोबाइल फोन में लगे रहना हद से ज्यादा घातक हो सकता है।
पेन्सैट स्टेट मेडिसिन ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं के मुताबिक, बच्चे अपने स्मार्टफ़ोन पर देर तक गेम खेलना पसंद कर सकते हैं लेकिन इससे बच्चों में नींद और पोषण की समस्याओं में बढ़ोत्तरी हो जाती है। बिस्तर में जाने से पहले डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल करना सही आदत नहीं है। बच्चों की तकनीक और नींद की आदतों के बारे में माता-पिता का सर्वेक्षण करने के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि इससे नींद की गुणवत्ता, सुबह के वक्त अधिक थकान और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का स्तर से ऊपर चले जाना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
शोधकर्ता फुलर के मुताबिक, क्योंकि नींद एक बच्चे के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, ऐसे में ये बच्चे कितने अच्छे सोते थे, साथ ही साथ इस बात का उनके स्वास्थ्य के अन्य पहलुओं पर कैसे असर पड़ा, ये जानना बेहद जरूरी था। हाल के प्यू रिसर्च सेंटर के अध्ययन के अनुसार, 46 प्रतिशत अमेरिकियों का कहना है कि वे अपने स्मार्टफ़ोन के बिना नहीं रह सकते हैं। हालांकि यह स्पष्ट है, अधिक से अधिक लोग स्मार्टफोन और अन्य पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर समाचार, सूचना, गेम और यहां तक कि कभी-कभी फोन कॉल के लिए तेजी से निर्भर होते जा रहे हैं।
रेडियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका (आरएसएनए) की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत एक अध्ययन के अनुसार, शोधकर्ताओं ने स्मार्टफोन और इंटरनेट के आदी युवा लोगों के मस्तिष्क रसायन विज्ञान में असंतुलन पाया है। ज्यादातर युवा एक-दूसरे के साथ बातचीत करने के बजाय अपने फोन पर बहुत अधिक समय खर्च करते हैं, जोकि एक बढ़ती चिंता का विषय है। मस्तिष्क पर इन सबका तत्काल प्रभाव पड़ता है। इस तरह की आदतों के संभावित दीर्घकालिक परिणाम आते हैं।
दक्षिण कोरिया में कोरिया विश्वविद्यालय के न्यूरोरायोडोलोजी के प्रोफेसर हूंग सुक और सहयोगियों ने स्मार्टफोन के मस्तिष्क और इंटरनेट आदी किशोरों के बीच संबंधों के परिणाम को हासिल करने के लिए चुंबकीय अनुनाद स्पेक्ट्रोस्कोपी (एमआरएस) का इस्तेमाल किया। एमआरएस एक प्रकार का एमआरआई है जो मस्तिष्क की रासायनिक संरचना को मापता है।
शोधकर्ताओं ने इंटरनेट की लत की गंभीरता को मापने के लिए मानकीकृत इंटरनेट और स्मार्टफोन की लत परीक्षण का उपयोग किया जिस हद तक इंटरनेट और स्मार्टफ़ोन का उपयोग दैनिक रूटीन, सामाजिक जीवन, उत्पादकता, नींद के पैटर्न और भावनाओं को प्रभावित करता है, उसकी पड़ताल होना बेहद जरूरी था। शोधकर्ता नोवीक के मुताबिक, हालांकि प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के बहुत से फायदे हैं। लेकिन माता-पिता को अपने बच्चों के लिए विशेष रूप से सोने के समय तकनीक और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के उपयोग को सीमित करना चाहिए। बच्चों के स्वस्थ बचपन, विकास और मानसिक स्वास्थ्य के लिए ये सबसे ज्यादा जरूरी है।
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